ॠगवेदोक्त रात्रिसुक्तम भावानुवाद
रात्रि सुक्त ॠगवेद रा, आखर माडूं आज।
शुभ उकती मां समपजो, मेहाई महराज।।३९९
व्यापक वपु वसुधा तथा, जीव चराचर मांझ।
रात राजराजेस्वरी, मेहाई महराज।।४००
ईहग मन आलोकिणी, धारण सकळ धरा ज।
जथा करम फलदायिनी, मेहाई महराज।।४०१
अमरबेल रे जिम अमर, छाई बिरछ घटा ज।
रात राजराजेस्वरी, मेहाई महराज।।४०२[…]