अलूजी लाळस रा बारहमासा

औ एक साची घटना है। गांव रो अर इण कविता रे रचण वाळा रो ठा नी। एक गांव रे माय कोई नथुजी लाळस नामरा बूढा चारण रेवता। उणारो एक रो एक जवान जोध कुळ दीपक जिणरो नाम अजमाल हो, अर अजमाल जी रे एक छोटो बेटो हो जिणरो नाम आलणजी हो।

किणी अगम्य कारण वश नथु जी रो मोटियार दिकरो अजमाल गुजर गयो। उण घटना रे बाद नथुजी लाळस रो पोतो आलण पण इणीज तरह सूं अगम्य कारणजोग बिमारी सूं गुजर गियो। इण घटना सूं नथु जी रे माथे जाणै दुःख रा भाखर गिरिया।

नथूजी रे एक जाचक मोतीसर वा घटना जद जाणी तो वो घणो दुःखी हुयो अर वो नथु जी लाळस ने दिलासो दिलायो के “हे नथु जी भले आपरो वंश इण दुनिया मै नी रह्यो पण मै म्हारी कविता सूं आपने आपरा बेटा अर आपरा पोता ने जुगां जुगां लग इण दुनिया रे माय अमरता प्रदान करुलां। मोतीसर जात रा वा अनामी कवि एडो जबरो मरसियो जोडियो के जिण मै नथुजी लाळस, अजमाल और आलण इम तीन पीढी रां नाम आय जावै।

बारहमासा वाळो औ मरसियो आप सब डिंगळ प्रेमी ने सादर। रचना म्हारा लग पुगाइ मीठे खां मीर, डभाल।

॥दूहा॥
राग झकोळा तान रंग, तंत ठणंकै ताल।
कावा पीवण केसरा, आवो घर अजमाल॥ 1 ॥
विध विध खट रत वरणवों,सरस सुणों दिन सांझ।
सहल तणी रत सैलकर, रंग भीना नथराज॥ 2 ॥
बापइया मुख बोलिया, पिहु पिहु परदेश।
उण रत थुं अजमाल रा, सांभरियो अलणेश॥ 3 ॥
गिरंदां मोर झिंगोरियां, महल थडक्कै माढ।
बरखा री रुत वरणवां , आयो मास अषाढ॥ 4॥

॥छंद रोमकंद॥
अषाढ घघुंबिय लुंबिय अंबर बादळ बेवड चोवळियं।
महलार महेलीय लाड गहेलिय नीर छळै निझरै नळियं।
अंद्र गाज अगाज करे धर उपर अंबु नयां सर उभरियां।
अजमाल नथु तण कुंवर आलण सोहि तणी रत सांभरिया ।
म्हानै सोहि तणी रत सांभरिया॥ 1 ॥

नवखंड निलाणिय पावस पाणीय वाणीय दादुर मोर वळै।
सब दास चढावण पुजाय शंकर सावण मास जळै सजळै।
प्रस नार करै नित नावण पुजाय शंकर रा व्रत सो धरियां।
अजमाल नथु तण कुंवर आलण सोहि तणी रत सांभरिया ।
म्हानै सोहि तणी रत सांभरिया॥ 2 ॥

रंग भाद्रव मास घटा रंग रातिय रंग लीलंबर रेत सजै।
फळ फूलय प्रबब्ळ प्रम्मळ फोरत वेल अनोप अनेक वजै।
पितृ सो सह लोक लहै ध्रम पोंखत, कागरखी मख ध्रमकियां।
अजमाल नथु तण कुंवर आलण सोहि तणी रत सांभरिया ।
मनां सोहि तणी रत सांभरिया॥ 3 ॥

अन्न सात पकायाय आसोज आयाय नीर ठरे घण नितरियां।
जळ ऊपर कम्मळ खिलत जैम रु पावस दाह पटंतरिया।
मझ छीप झरे जळ जामत मोतिय ठीक झळोमळ नंग थयां।
अजमाल नथु तण कुंवर आलण सोहि तणी रत सांभरिया ।
म्हानै सोहि तणी रत सांभरिया॥ 4 ॥

दिवाळीय कातीय मासक दीपक माळिये जाळिये दीप मझै।
जरकस्सीय अंबर पेरिया जामाय सुंदर हीरक चीर सजै।
लिगनां दिन आयाय व्रप लखायाय बारण तोरण बांधविया।
अजमाल नथु तण कुंवर आलण सोहि तणी रत सांभरिया ।
म्हानै सोहि तणी रत सांभरिया॥ 5 ॥

जग ऊदम लाभ ज राजहि राजत सुख अप्रंपर ध्रम सजै।
दखणं दिस छोड उत्तर तणि दिस उगण भांण ऐठाण हुआ।
अजमाल नथु तण कुंवर आलण सोहि तणी रत सांभरिया ।
मनां सोहि तणी रत सांभरिया॥ 6 ॥

बन भार अढार जळे बन पानाय कै जळ ताप अपार कुवा ।
घण लागत टाढ ध्रुजत्त धरोहर हिम उलट्ट प्रगट्ट हुआ।
पवरांण उतांण झट्टपट पोषत सोते नभे नर ताप सह्यां
अजमाल नथु तण कुंवर आलण सोहि तणी रत सांभरिया ।
म्हानै सोहि तणी रत सांभरिया॥7॥

जमना जळ जाहिय माह उमाहिय सुख सराहिय लख्ख सरां।
थिर ध्रम्म ठराहिय पाप प्रजाळिय नाहिय रा दिन नार नरां।
पशुआं फंद ठंड बसंत प्रगट्टिय दन्न उगै सनमान दिया।
अजमाल नथु तण कुंवर आलण सोहि तणी रत सांभरिया ।
म्हानै सोहि तणी रत सांभरिया॥ 8 ॥

फहोरे घण फागण किंशूक फोरियां अंब मंजरियां म्होर उगां।
कह फाग मुखोमुख राग कळावंत लाल गुलाल उडण्ण लगा।
पिचकारिय पाणीय रंग भर्योडिय फेर अठै भमरा फरिया।
अजमाल नथु तण कुंवर आलण सोहि तणी रत सांभरिया ।
म्हानै सोहि तणी रत सांभरिया॥ 9 ॥

चतरंग तणी रत फालिय वेलिय डोलर फूल गुलाब घणा।
बहु भांत महक्कत चंपक मोगर पुहप भांत अढार वनां।
तरु बैठर कोकिल खूब टहूकत सुंदर गीत ज्युं निसरिया।
अजमाल नथु तण कुंवर आलण सोहि तणी रत सांभरिया ।
म्हानै सोहि तणी रत सांभरिया॥ 10॥

बइशाख तणी रत फूकत वायु वै धूप अतिशय धोम धरै।
करि लेपण चंदण राज करंतल केसर आड लिलाट करै।
छिडकाव फुवारिय हौज चलावत ल्हैर तरुवर छांह लियां।
अजमाल नथु तण कुंवर आलण सोहि तणी रत सांभरिया ।
म्हानै सोहि तणी रत सांभरिया॥ 11 ॥

जग जेठ ग्रही खम वख्खत जे रुत धेनु वसूकि वसूकि धरा।
गरभै जळ सूरज देव तपै घण सुखगया नद नीर धरा।
अंब शाख फळै बदळां दळ ऊमड अंद्र तणा दन फेर आया
अजमाल नथु तण कुंवर आलण सोहि तणी रत सांभरिया ।
म्हानै सोहि तणी रत सांभरिया॥ 12 ॥

यह रचना हमै आधार भूत पुस्तक से नही मिली इस लिए कुछ गलतीया संभव है। मागसर महिने के छंद मे एक लाइन कम है। किसी के पास हो तो शेयर करे।

मीठेखा मीर का इस रचना के लिए फिर से शुक्रिया।

~~नरपत दान आसिया “वैतालिक” द्वारा प्रेषित

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