पुस्तक समीक्षा – विडरूपता अर विसंगतियां रै चटीड़ चेपतो : ‘म्रित्यु रासौ’

यूं तो शंकरसिंह राजपुरोहित साहित्य री केई विधावां में लिखै पण इणां री असली ओळखाण अेक नामी व्यंग्य लेखक रै रूप में बणी। इणां रो पैलो व्यंग्य-संग्रै ‘सुण अरजुण’ बीसेक बरसां पैली छप्यो। औ व्यंग्य-संग्रै राजस्थानी साहित्यिक जगत में आपरी जिकी लोकप्रियता बणाई वा इणां रै समवड़ियै लेखकां नैं कम ई मिली। अबार शंकरसिंह राजपुरोहित जको व्यंग्य-संग्रै चर्चित है उणरौ नाम है- ‘म्रित्यु रासौ’।
‘म्रित्यु रासौ’ में कुल बीस व्यंग्य है। बीसूं ई व्यंग्य अेक सूं अेक बध’र अवल। बीसूं ई व्यंग्यां में मध्यम वर्ग री अबखायां अर भुगतभोगी यथार्थ जीवण रो लेखो-जोखो है तो दोगलापण, विडरूपतावां, देखापो, भोपाडफरी, छळछंद, पाखंड, अफंड आद रो सांगोपांग भंडाफोड शंकरसिंह राजपुरोहित कर्यो है।[…]