मौज करीनै मूल़िया!

कविवर झूंठाजी आशिया कह्यो है कै भीतां तो एक दिन धूड़ भैल़ी हुय जावैली पण गीत अमर रैवैला-

भींतड़ा ढह जाय धरती भिल़ै, गीतड़ा नह जाय कहै गांगो।

आ बात एकदम सटीक है जिण लोगां मोटी पोल़ां चिणाई उणां रा नाम आज सुणण में कदै-कदास ई आवै पण जिकां मन-महराण ज्यूं राख्यो, उणांरो नाम आज ई हथाई में नित एक-दो बार तो आ ई जावै तो ब्याव-बधावणां में ई तांत रै तणक्कां माथै उवां रा ई गीत सुणण नै मिलै क्यूंकै-

गवरीजै जस गीतड़ा, गया भींतड़ा भाज।

जिणांरा गीत प्रीत रै साथै गाईजै उवां में एक उदारमना हा मूल़जी कर्मसोत।[…]

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सांईदीन दरवेश – एक ओल़खाण

मध्यकालीन राजस्थानी काव्य में एक नाम आवै सांईदीन दरवेश रो। सांईदीनजी रै जनम विषय में फतेहसिंह जी मानव लिखै कै- “पालनपुर रियासत रै गांम वारणवाड़ा में लोहार कुल़ में सांईदीनजी रो जनम हुयो। सांईदीनजी बालगिरि रा चेला हा। ”

सूफी संप्रदाय अर वेदांत सूं पूरा प्रभावित हा। भलांई ऐ महात्मा हा पण पूरै ठाटबाट सूं रैवता। अमूमन आबू माथै आपरो मन लागतो। तत्कालीन घणै चारण कवियां माथै आपरी पूरी किरपा ही। आपरी सिद्धाई अर चमत्कारां री घणी बातां चावी है। जिणां मांय सूं एक आ बात ई चावी है कै ओपाजी आढा नै कवित्व शक्ति आपरी कृपादृष्टि सूं मिली। सांईदीनजी रै अर ओपाजी रै बिचाल़ै आदर अर स्नेह रो कोई पारावार नीं हो।[…]

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भइयो भाटी भैर!

दिन ऊगां दातार, आखै जस सारी इल़ा।
सूमां रो संसार, नाम न जाणै नाथिया।।

कवि कितरी सतोल अर सखरी बात कैयी है कै दातार भलांई कदै ई हुयो हुसी पण उणरो नाम सारी धरती जाणै अर सूमां रो नाम कोई लैणो ई नीं चावै। इणी खातर तो ईसरदासजी नै ई कैणो पड़्यो कै ‘दियां रा देवल़ चढै’ देवै सो अमर अर नीं देवै तो कवियां निशंक कह्यो है-

सर्वगुन ज्ञाता होय यद्यपि विधाता हो पे,
दाता जो न होय तो हमारे कौन काम को?[…]

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नवल हुतो जद नैरवै

थलवट भांयखै रो गांम जुढियो समृद्ध साहित्यिक परंपरा रै पाण आथूणै राजस्थान में आपरी ठावी ठौड़ राखै। एक सूं बध’र एक सिरै कवि इण गांम में हुया जिणां राजस्थानी डिंगल़ काव्य नै पल्लवित अर पुष्पित कियो। उणरो हाल तांई चिन्योक ई लेखो-जोखो नीं हुयो है।

इणी गांम में सिरै कवि नवलदानजी लाल़स रो जनम हुयो। जद ऐ फखत आठ वरस रा ईज हा तद इणां रै मा-बाप रो सुरगवास हुय चूको हो। चूंकि इणांरा पिताजी रेऊदानजी लाल़स पाटोदी ठाकरां रा खास मर्जीदान हा सो इणांरो आगै रो पाल़ण-पोषण उठै ईज हुयो। उठै ईज दरवेश सांईदीनजी इणांनै आखर ज्ञान दियो।[…]

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गीत पालवणी

कुरसी तूं तो सदा कुमारी।
थिर तन लचक बणी रह थारी।
बदन तिहारै सह बल़िहारी।
वरवा तणै विरध ब्रह्मचारी।।1

कुण हिंदू कुण मुल्ला-काजी?
तूं दीसै सगल़ां नै ताजी।
रूप निरख नै सह रल़ राजी।
बढ बढ चहै मारणा बाजी।।2[…]

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कीरत कज कुरबान किया

आदू कुल़ रीत रही आ अनुपम,
भू जिणरी भल साख भरै।
महि मेवाड़ मरट रा मंडण,
सौदा भूषण जात सिरै।।1

दिल सूं हार द्वारका दिसिया,
वाट हमीरै राण वरी।
माता वचन बारू मन मोटै,
केलपुरै री मदत करी।।2[…]

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रहसी रै सुरताणिया!

वीरता अर वीर आज ई अमर है तो फखत कवियां या कविता रै पाण। क्यूंकै कवि री जबान माथै अमृत बसै अर उण जबान माथै जिको ई चढ्यो सो अमर हुयो। भलांई उण नर-नाहरां रो उजल़ियो इतियास आज जोयां ई नीं लाधै पण लोकमुख माथै उण सूरां रो सुजस प्रभात री किरणां साथै बांचीजै।

ऐड़ो ई एक वीर हुयो सुरताणजी गौड़। हालांकि कदै ई गौड़ एक विस्तृत भूभाग माथै राज करता पण समय री मार सूं तीण-बितूण हुय थाकैलै में आयग्या।

इणी गौड़ां मांय सूं ई ऐ सुरताणजी गौड़ हा।[…]

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गीत वेलियो चावा चारण कवियां रो

आज पुराणा कागज जोवतां अचाणचक एक बोदो ऐड़ो कागज लाधो जिणमें म्हैं एक वेलियो गीत वर्तमान चावै डिंगल़ कवियां माथै दिनांक 23/5/92 जेठ बदि 6, 2049 नै लिख्यो अर आदरणीय डॉ.शक्तिदानजी कविया नै मेल्यो। हालांकि म्हैं इणगत तारीख लिख्या नीं करूं पण आ लिखीजगी जणै याद ई रैयगी।

सांभल बात कायबां भल सांभल़,
पाल़ण डींगल़ पेख्या प्रीत।
ज्यांरो आज बुद्धिसम जोवो,
गढव्यां तणो बणावूं गीत।।1[…]

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प्रीत पुराणी नह पड़ै

हिंदी-राजस्थानी के युवा प्रखर कवि व लेखक डॉ.रेवंतदान ‘रेवंता’ की आदरणीय डॉ.आईदानसिंहजी भाटी पर सद्य संस्मरणात्मक प्रकाशित होने वाली पुस्तक के लिए ‘फूल सारू पांखड़ी’—-

मैं यह बात बिना किसी पूर्वाग्रह के कह रहा हूं कि राजस्थानी लिखने वाले तो ‘झाल’ भरलें उतने हैं परंतु नवपौध को सिखाने वालों की गणना करें तो विदित होगा कि ये संख्या अंगुलियों के पोरों पर भी कम पड़ जाए। या यों कहें तो भी कोई अनर्गल बात नहीं होगी कि राजस्थानी में उन लेखकों की संख्या पांच-दस में ही सिमट जाती हैं जिनसे नई पीढ़ी प्रेरित होकर उनका अनुसरण करें।[…]

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कविराज दयालदास सिंढायच

….दयालदासजी का स्थान राजस्थान के उन्नीसवीं शताब्दी के लेखकों में आदरणीय व अग्रगण्य है। गद्य के गजरे में बीकानेर के यशस्वी इतिहास को गूंथकर जो सुवास भरी वो आज भी महकती हुई तरोताजा है। नामचीन ख्यातकार, गजब के गीतकार, विश्वसनीय सलाहकार व प्रखर प्रतिभा के धनी दयालदासजी बीकानेर रियासत के देदीप्यमान नक्षत्र थे। जिन्होंने अपनी, प्रभा का प्रकाश चतुर्दिक फैलाया। ऋषि ऋण परिशोध की भावना से शोध के क्षेत्र में अभिरूचि रखने वालों को ऐसे मनीषी के साहित्यिक व ऐतिहासिक रचनाओं के शोध हेतु अग्रसर होना चाहिए ताकि इनकी लुप्त प्राय रचनाएं प्रकाश में आ सकें।[…]

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