वंदनीय वीर बलूजी चांपावत रा छंद

स्वाभिमान, साहस, शौर्य अर सनातनी जीवण मूल्यां री रक्षार्थ आखै जीवण आपरी तरवार रो तेज बताविया वंदनीय वीर चांंपावत बलूजी गौपाल़दासोत री वंदनीय वीरता नैं समर्पित डिंगल़ रचना।
महान वीर बलूजी चांपावत अपने स्वाभिमान के लिए तो प्रसिद्ध है ही साथ आऊवा धरणै में गोपालदासजी चांपावत के सुयश को अक्षुण्ण रखने के लिए चारणों के रक्षक के रूप में अग्रपंक्ति में थे।
।।दूहा।।
मंडण धरती सरस मन, खंडण दुसटां खाग।
गढपत सुत गोपाल़ रै, पवित रखी बल पाघ।।1
मुचण न दीधो मांण नै, कायम घरवट कांण।
राखण रजवट बलड़ रँग, भल़हल़ कोमी भांण।।2
सूर डरण नह सीखियो, मरण सीखियो मांम।
वरण सीखियो धरण बल, करण सपूती कांम।।3
स्वाभिमान स्वधरम रो, प्रिथी बलू परकास।
सीस सटै रखियो सधर, सांमधरम साबास।।4
।।छंद रेंणकी।।
चावो गोपाल़ चहुंदिस चांपो, सुतन आठ घर थाट सही।
सांप्रत रजवाट हाट उर साहस, मोद कोम जस खाट मही।
दुसमण दल़ दाट कोट नव दुणियर, भड़ अड़ लीधी आप भलू।
तोड़ण मुगलांण मांण कज तणियो, वणियो मरवा वींद बलू।।1
ऊदल जोधांण पातवां ओपर, कोपर सांसण जबत किया।
पाली जद तेड़ पाल दल़ पाधर, लाजधार अपणाय लिया।
सजियो कर हाक धाक सूं सूरो, पूरो अरियण हुवो पलू।
तोड़ण मुगलांण मांण कज तणियो, वणियो मरवा वींद बलू।।2
आठूं अवनाड़ पाल रा अवनी, राखण आंठूं जोर रसा।
जांणै ह़िदवाण आंण जग जाहर, ऐ नर नाहर उपन असा।
बचको बलभद्र ऊपरै बंधव, खल़ दल़ मारण सीस खलू।
तोड़ण मुगलांण मांण कज तणियो, वणियो मरवा वींद बलू।।3
नरपत अमरेस जबर नागांणै, तपधर तपियो गजन तणो।
मींढा कर कोड पाल़तो मारू, बड ठाकर रखवाल़ बणो।
नटियो बलभद्र मूंछबल़ नामी, हूं नहीं ऐवड़ लार हलू।
तोड़ण मुगलांण मांण कज तणियो, वणियो मरवा वींद बलू।।4
आवै जद सांम मुगल दल़ उरड़ै, करड़ै वैणां कटक कियां।
राखूं तिणवार पिंड राठौड़ी, मरट मेट सूं भेट मियां।
टोरूं जवनाण हाक जिम टाटां, झाटां लेसूं गात झलू।
तोड़ण मुगलांण मांण कज तणियो, वणियो मरवा वींद बलू।।5
छोडी नागौर खीझ नै छत्री, डगर पैंड मेवाड़ दिया।
नैणां कस लाल देख नैं निजरां, कोड ऊदैपुर नाथ किया।
भोगूं निज पटो भुजांबल़ भारथ, भणिया बल्लड़ वचन भलू।
तोड़ण मुगलांण मांण कज तणियो, वणियो मरवा वींद बलू।।6
बणियो अवसाण आय झट वसुधा, अमर आगरै जा अड़ियो।
विटल़ो मुख खांन सलावत बोल्यो, चूगल विवादां यूं चड़ियो।
मलफी जमदाढ सुदरसन माफक, तूटी गरदन एक टलू।
तोड़ण मुगलांण मांण कज तणियो, वणियो मरवा वींद बलू।।7
डरियो दरबार रैयत सब डरपी, पतसा भगियो ऊभ पगां।
हिलियो दिल जदै आगरो हैकँप, खिझियो अमरो झेल खगां।
घटिया उण गौड़ घात सूं घाती, घाव अमर रै दियो घलू।
तोड़ण मुगलांण मांण कज तणियो, वणियो मरवा वींद बलू।।8
सुणियो नर बलू अमर गो सुरगां, चठठ जदै चख चल़ चढी।
उफण्यो मन जोस मरण इण अवसर, क्रोध मांय करवाल़ कढी।
देख्यो रजपूत दूत जम डरिया, डकर जोध सब ग्या दहलू।
तोड़ण मुगलांण मांण कज तणियो, वणियो मरवा वींद बलू।।9
माची हहकार आगरो मरघट, साहजहां मन कियो सँको।
रूठै भड़ पाल तणो हद राटक, दाटक बलियै दियो डँको।
आण्यो तन अमर गुमर सूं अडरै, चरचा अजतक बहै चलू।
तोड़ण मुगलांण मांण कज तणियो, वणियो मरवा वींद बलू।।10
मोड़ी घड़ मुगल तणी भट मांटी, भुई जिणरी भल साख भरै।
पूगो अमरेस लार सुरगा पथ, कहियै कथनां साच करै।
धिन धिन रै बलड़ हुवो सब धरती, गुणियण बांचै सुमर गलू।
तोड़ण मुगलांण मांण कज तणियो, वणियो मरवा वींद बलू।।11
हिंदवापत ऊपर रूठ नैं हेकर, औरंग फौजां ले अड़ियो।
देबारी कमध पमँग चढ अदरस, लाज उबारण आ लड़ियो।
अस रो अहसान चुकायो इणविध, अधपत कायम कर अमलू।
तोड़ण मुगलांण मांण कज तणियो, वणियो मरवा वींद बलू।।12
रंग रै तो तात मात धिन रंग दूं, धरती रंग दूं देह धरी।
चांपां री प्रीत कारणै चारण, कीरत गिरधरदान करी।
रहसी जग नाम काम थिर रहसी, बहसी सूरज चांद बलू।
तोड़ण मुगलांण मांण कज तणियो, वणियो मरवा वींद बलू।।13
।।छप्पय।।
रंग रै चांपा राव, बलड़ धर ऐह बखांणै।
निडर पणै रो नूर, जगत जाहर जस जाणै।
सबल़ पणै तैं.सूर, अमर रो मरण उजाल़्यो।
धरण रखी थिर धाक, प्रण कीधो जिम पाल़्यो।
राण रै करज लड़ियो रसा, दुरस देबारी देखियो।
गिरधरै ख्यात सँभल़ी गुणी, पूर सनातन पेखियो।।
~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी