गीत महाशक्ति देवलजी रो

महाशक्ति देवल जिन्होंने अपने पिता की जागीर का चौथा हिस्सा अपने पिता के सेवक जो कि बेघड़ जाति का मेघवाल था को देकर बनाया था जमींदार। आजादी के बाद, उस मेघवाल की संतति को मिला था जागीर का मुआवजा। आज भी पश्चिमी राजस्थान के बेघड़, कागिया, पन्नू आदि उपशाखाओं की इनमें हैं अगाध आस्था—–
।।गीत – चित इलोल़।।
इल़ माड़वै हिंगल़ाज आई,
करण कवियां कार।
शुभ सदन भलियै घरै सगती,
आप ले अवतार।
तो दातारजी दातार, देवी देवला दातार।।१
बापन देथो वर्यो वरधर,
खारोड़ै जस खाट।
किरपाल़ तैं निज चरण कीधी,
धरा पवितर धाट।
धिन धाटजी धिन धाट, धरती पवितर धिन धाट।।२
अणदीठ गड़सी तणो आई,
मेटियो महमाय।
जो जिकी बातां जगत जाहर,
सुजस री सुरराय।
तो सुररायजी सुरराय, सेवी भीर में सुरराय।।३
दँड दंडणी दुसटाण देवी,
खंडणी खल़ खाग।
महि मंडणी निज दास माता,
भला करनै भाग।
तो भल भागजी भल भाग, भूमि भाणवां भल भाग।।४
कर कोप सिरहर विरम कोपी,
अवन दी उथ्थाल़।
अमराण री इल़ आप आपी,
वीसै नै विरदाल़।
तो विरदाल़जी विरदाल़, बाई देवला विरदाल़।।५
ऊ अखेसर री पाल़ ऊपर,
जुड़ै नवलख जुत्थ।
उथ ऊतरै आकाश आई,
सजण रामत सत्थ।
तो समरत्थजी समरत्थ, साची देवला समरत्थ।।६
मन मुदै पावन पेख मगरो,
दुनी जस गल्ल दाख।
तोरणँग थंभा नवै तणिया,
साच रीती साख।
तो नवलाखजी नवलाख, निमतै ऊमड़ै नवलाख।।७
मनरंगथल़ सूं मामड़ा सधु,
सबल़ बैनां सात।
आणंद आपण ऊतरी इत,
भेल़ मेहरख भ्रात।
तो भल भ्रातजी भल भ्रात, भगनी संग में भल भ्रात।।८
कामेहि नागल नमो करनल,
सैणला सुखदात।
बूट बल्लर बैचरा वल़,
बिरवड़ी बडहाथ।
बडहाथजी बडहाथ, विदगां पाल़णी बडहाथ।।९
चांपला मालण वहा चंडी,
सगत गीगल साथ।
झूल़ सगत्यां महा जोगण,
खूबड़ी विखियात।
तो विखियातजी विखियात, बांकल रूप में विखियात।।१०
होकबा हलकार होईया,
भिल़ी कर भलकार।
नमकारतो भट भैर नमियो,
करी नै किलकार।
तो किलकारजी किलकार, करनै भैरवो किलकार।।११
कीरती भैरव करै काशी,
डम्मरू डमकार।
नृतकार आगल तोर नाचै,
खेतलो खमकार।
तो खमकारजी खमकार, खमियो खेतलो खमकार।।१२
धम धूजियै धमकार धरती,
गूंजियै गयणाग।
पनंगपत्त पड़ पूजियै पग,
आय करियो आघ।
तो नम नागजी नम नाग, नमियो आयनै पत-नाग।।१३
तणणाट रमियै ताकड़ी तण,
झांझरां झणणाट।
वाव संग बणणाट वज्जियै,
गूघरां गणणाट।
तो गणणाटजी गणणाट, गूघर गूंजिया गणणाट।।१४
चंडका दूसर रूप चंदू,
धरा राखी धिन्न।
कवि गीधियै नम गीत कथियो,
मात अरजी मन्न।
तो तूं मन्नजी तूं मन्न, माता देवला तूं मन्न।।१५
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”
बहुत बहुत धन्यावाद हुक्म
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आभार आपका