किरण जिसा किरदार कठै

कालू के किरण जी नाहटा की स्मृति में राजस्थानी अकादेमी की मुख्य पत्रिका जगतीजोत में प्रकाशित मेरा संस्मरण आलेख

अणगिण मिनख फिरै अवनी पर, आप आपरी गरज अठै।
गुणगाही राही गरबीला, ‘किरण’ जिसा किरदार कठै ?
(शक्तिसुत)

‘‘अरे भाया! ओ थारो घर है, जचै जणा आज्याई। कोई असुविधा कोनी। उळटो म्हनैं ज्यादा आछो लागसी कै तूं अठै म्हारै कनैं ई रुकसी। सावळसर हथाई करस्या। तो पछै परसों दोपारा ताईं पूगज्या, म्हैं उडीकूं भलो! भोजन सागै ई लेस्यां।’’ अणमींती आत्मीयता अर पारिवारिक भाव सूं सराबोर मायतपणै रै महनीय धणियाप साथै म्हनैं बीकानेर आवण रो आदेस देय बां फोन काट दियो। आ बात सन 2004 री है। म्हनैं म्हारी पीएचडी री स्नोप्सिस बणावण सारू डॉ. किरणचंद जी नाहटा री मदद री दरकार ही। म्हारै शोध निदेशक डॉ. तेजसिंहजी जोधा रो ई ओ हुकम हो कै अेक’र नाहटाजी सूं राय जरूर करणी है। म्हारै शोध रो विषय ‘नानूराम संस्कर्ता रो साहित्य’ हो। नानूरामजी अर नाहटाजी दोनूं अेक गाम रा। नाहटाजी बियां तो सम्पूर्ण राजस्थानी साहित्य रा ई गंभीर अध्येता हा पण लोकसाहित्य में वांरी रुचि घणी ही, इण दीठ सूं नानूरामजी संस्कर्ता रै साहित्य रा बै गहन अध्येता अर आधिकारिक विद्वान हा। म्हे आपस में पड़ोसी। वांरै गाम काळू अर म्हारै नाथूसर रै बिचाळै फगत दो कोस रो आंतरो। बाळपणै सूं ई संस्कर्ताजी अर नाहटा जी रै साहित्यिक सिरजण री चरचावां सुण वांरै प्रति अेक अपणत्व भर्यो आदरभाव मन में हो। उणीं भाव सूं हूंस लेय म्हैं डीडवाणा सूं बीकानेर जावण री तेवड़ी अर तीन-च्यार दिन रुक’र स्नाप्सिस बणावण रै सागै साहित्य संकलण रो काम ई सरू करण रो मन बणायो। श्री करणी चारण छात्रावास में रुकण री योजना बणाई। अब नाहटाजी नैं फोन लगायो कै वै समै दे देवै तो उण मुजब बीकानेर जाऊं। म्हारै पिताजी रो नाहटा परिवार सूं आत्मीय जुड़ाव हो, इण कारण स्कूल री भणाई रै टेम ई नाहटाजी सूं मिलण रो मौको मिलेड़ो हो अर पछै स्कूल में मास्टरी करतां ई कई बार छोटा-मोटा कार्यक्रमां में मुलाकात होती। कॉलेज व्याख्याता री भरती रै समै दो-च्यार बार म्हैं लूणकरणसर सूं बीकानेर गयो। दो-दो, च्यार-च्यार घंटा वां सूं पाथेय लेवण रो सोभाग म्हनैं मिल्यो। पण अबकाळै काम कीं मोटो हो। च्यार-पांच दिनां ताणी रोजीनां खासा-खासा टेम चाईजै हो।

गाम अर शहर रै लोगां सारू म्हारै मन में न्यारी-न्यारी साफ छवियां सदा सूं है अर बै आज ई कायम है। पण गाम या छोटै कस्बां रा लोग जका बाद में शहरां में जाय बस्यां, वां लोगां नैं ले’र म्हारै मन में अेक दोगाचींती सदा सूं रैयी, वा उण दिन ई ही अर आज ई मिटी कोनी। बा दोगाचींती गाम अर शहर री मानसिकतावां रै मेळ री है। ठेठ ग्रामीण संस्कारां में पळण रै कारण म्हैं जद ई कोई सूं बात करूं तो अेक तर्कातीत अधिकार भाव मन में आवै कै सामलै आदमी पर म्हारो गाढो अधिकार है, उणनैं म्हैं कोई पण काम रो कैय सकूं। पण आगलै ई खिण आ बात ई मन में आवै कै सामलै रो परिवेस बदळग्यो। शहर रा रहण-सहण, बठै री भाग-दौड़, छोटी जाग्यां, संकड़ैलो अर पछै सबसूं खतरनाक आज रै तथाकथित आधुनिक लोगां री प्राईवेसी। दूजो आदमी घर में आवतां ई प्राईवेसी नैं परेसानी हुवै। इण दुविधा रै कारण ना तो सामलै पर अधिकार जमाईजै अर ना ई अेकदम शहरी बण’र फगत ‘आपरै मतलब री बात’ करीजै। बीं दिन नाहटाजी सूं बात करतां भी म्हारी मनःस्थिति इण ढाळै ई ही। म्हैं प्रणाम कर’र घर-परिवार री सुख-साता रा समाचार पूछ्यां-बतायां पछै बात सरू करी कै म्हारै पीएचडी करण सारू आपरी मदद री दरकार है। म्हैं बीकानेर आवणी चावूं। आपनै सुविधा हुवै बै तिथियां बता दिराओ। दिन में कुणसो टेम आप म्हारै सारू निकाळ सकोला ताकि म्हैं उणी टेम आपरी सेवामें हाजिर हो ज्याऊं। संकतै-संकतै ई सही पण म्हैं म्हारी बात अेक ई सांस में पूरी करी। नाहटाजी री परकत ब्होत ठीमर ही। बै सामलै री बात पूरी हुयां पछै ई बोलता। म्हारी बात ई बै चुपचाप सुणै हा। वांरी चुप्पी सहज अर स्वाभाविक ही पण म्हारै मन में गादड़ो बड़ग्यो। म्हनैं लाग्यो कै जरूर नाहटा साहब म्हनैं चाती मान’र कोई बायनो करसी। म्हैं सोच्यो जे बै म्हारै रुकण अर रोटीबाटी री खेंचळ री सोचता हुवै तो पैली खुलासो करद्यूं कै म्हारै रुकण अर खावण-पीवण री व्यवस्था दूजी जाग्या करेड़ी है ताकि बै म्हारै कारण आपरै घर में कोई भांत रो व्यवधान महसूस नीं करै। पण बात अेकदम म्हारी समझ सूं विपरीत निकळी। म्हैं जियां ई दूजी जाग्यां व्यवस्था री बात करी तो अेकदम सूं बोल्या ‘‘क्यूं? चारण छात्रावास में क्यूं रुकणो? कोई काम है तो पैली पछै कर लेई। रुकणो अठै ई है। बीकानेर में थूं दूजी जाग्यां कियां रुक सकै ?’’ अर आगै अरे भाया! ओ थारो घर है ़़़़़़लाडी! ‘लाडी’ सबद नाहटाजी रै जुबान जच्योड़ो हो। बीकानेरवाटी में ओ सबद घणो काम में आवै अर घणा सारा संबंधां में समान रूप सूं सरड़ाटै चालै। टाबर नै कैवणो हुवै तो लाडी, यार-भायलै नैं कैवणो हुवै तो लाडी, लड़कै-लड़की दोनां सारू लाडी, घरनार सूं बात करां तो लाडी, घरधणी नैं लाडी, सब जाग्यां लाडी सबद चावो-ठावो। बियां अै सगळा लाडी रा पर्यायवाची सबद कोनी है। पण आं सगळां सागै लाड सूं लाडी लगायो जावै अर कैवणियै-सुणणियै नैं अणहद आणंद आवै। नाहटाजी घणै लाड सूं अनौपचारिक चरचा रै दौरान इण सबद रो बार-बार प्रयोग करता। वांरी हर बात री सरूआत देख लाडी, अैं हैं इयां नहीं लाडी, ना लाडी आद सूं हुया करती।

म्हारै मन रो भारी बोझ हळको हुग्यो। हूंस चोगुणी बधगी। नाहटा साहब रै प्रति श्रद्धा सवाई होगी। म्हैं तय समै पर बीकानेर गयो अर च्यार दिन रुक्यो। वां च्यार दिनां में किरणचंदजी रो जको स्नेहमयी परामर्श मिल्यो, वो म्हारै जीवण री अणमोल थाती है। महाविद्यालयी शिक्षा रा वरिष्ठ व्याख्याता, ख्यातनाम लेखक, सखरा समालोचक, सामाजिक संस्थावां रा सक्रिय पदाधिकारी अर सदस्य, आर्थिक रूप सूं विरासतन अमीर, आघा दिया पाछा आवै पण साव सामान्य रहण-सहण। कोई तरै रै अहंकार का पछै दिखावै रो दूर दूर ताणी नाम ई नीं। शहर में रैवण रै बावजूद शुद्ध शाकाहारी अर सात्विक भोजन। गाम वाळां री पसंद री केर, सांगरी, लोया, टींडसी, खेलरी, फोफिळया आद री सब्जियां। दिनूंगै कलेवै में सादा परांठा, मोगर, पापड़, दही अर चाय-दूध। दिन में कदै ई मतीरै री गिरी तो कदै पपीतो खावै। भाभीजी रो सभाव ई घणो आछो। बेटो विक्रांत सखरो सपूत अर संस्कारी। पुन्न री बेल हरी हुवै, उणरै मीठा फळ ई लागै। आछा करमां सूं जाया आ आया सगळा संस्कारी मिलै। नाहटाजी रै पुत्रवधू आई है तो वा ई वांरी साख नैं सवाई करण वाळी ई है। आया-गयां नैं अणहद आदर देय कोड कर-कर जिमावै। खैर! उण दिन री बात करां। म्हारै सारू और अंजस री बात तो उण टेम हुई जद नाहटाजी आपरी जोड़ायत नैं बतायो कै गजादान रै गांव नाथूसर सूं म्हारै नाहटा परिवार रो पुराणो अर गाढो प्रेम रैयो है, अेक टिकड़ो (परांठो) म्हारै नाम रो और जीमसी। उण टेम भाभीजी बीच में ई बोल्या के नाथूसर वाळां रो तो सबसूं पुराणो अर सबसूं ज्यादा नेड़ो जुड़ाव म्हारी सांड हवेली सूं रैयो है। म्हनैं थोड़ी ताळ तो समझ में कोनी आई पण पछै अेकदम समझ में आई कै नाहटाजी रो सासरो ई काळू में ई है अर काळू रा सांड अेक टेम में नामी सेठ हुया करता। भाभीजी री बात साव साची ही म्हारै गाम रा नाहटा परिवार सूं ई ज्यादा नेड़ा अर नेह रा रिश्ता सांड परिवार सागै हा। भाभजी आगै बोल्या कै टाबरपणै म्हारै घर में बापूजी सूं सुणेड़ी है कै नाथूसर रा बारठ गरीब भलां ई हुवो पण बात रा ब्होत पक्का है। बै आपरी जुबान सूं कदै ई टाळो नीं ले सकै। जापै, जमावणै पर विश्वास रो घी नाथूसर रै बारठां रो ई मानीजतो। पुराणो टेम हो। सेठां, श्रीमंतां अर किसानां रा परापरी संबंध घणा गाढा हा। अेक दूजै रै प्रति अपणत्व अर सम्मान रो भाव हो। वां में आज वाळी अवसरवादिता अर स्वार्थपरता कोनी ही। हेत री हाटां में कपट री बाटां जळावण अर लोगां री आंख्या में धूळ झोकण रो बोपार वां दिनां कोनी हो, उण दिनां री अपणायत अर भेळप वाळै अधिकार भाव री अेक सहज सी अभिव्यक्ति नाहटा दंपति रै मूंढै सुण हरख हुयो। नाहटाजी तो हरेक री बात नैं पूरो सम्मान देवता। अेकदम सूं कोई री बात नैं खारिज कोनी करता। बै बोल्या हां थांरै परिवार सूं ई आंरा संबंध रैया हूसी, पण म्हारा तो पक्का ई हा अर है, बाकी तो गजादान बतासी। अबै गजादान के बतावै? म्हैं दोगाचींती में पड़ग्यो। बात दोनां री ई साची ही। इण कारण म्हैं बिचाळलो गेलो काढतां बोल्यो ‘‘म्हैं आप दोनां री मनवार रा अेक-अेक परांठा और जीम लेस्यूं’’। खैर! बात हंस’र पूरी हुई। पण सोचण वाळी बात आ ही कै म्हारै जिस्यो अेक गाम रो आदमी, जको ना वांरो रिश्तेदार, ना जातभाई, ना रिपिया-पीसां रो सुवांज, ना राजनीति में कोई दखल, लिखण-पढण रो ई कोई घणो लोतर कोनी। कुल मिला’र म्हारै सूं नाहटाजी नैं या नाहटाजी रै परिवार नैं कोई तरै रै फायदै री उम्मीद कोनी हो सकै अर म्हारो गायलो ई कोनी हो उणरै बावजूद म्हारै सागै जिण आत्मीयता सूं जुड़ाव राख्यो वो म्हारै सारू आज ई वरेण्य है।

आपरी विमळ अर विशिष्ट छवि रै पाण आखै राजस्थानी साहित्यिक जगत में अेक निकेवळी ओळखाण बणावण वाळा व्हाला कलमकार डॉ किरणचंद जी नाहटा आज आपां बिचाळै नीं है पण वांरी जीवण-जात्रा रा मोकळा प्रसंग इस्या है, जिका पग-पग पर आपांनैं सखरी अर सदराह बैवण री प्रेरणा देवै। राजस्थानी भाषा री मान्यता री पीड़ पाळ्या कन्हैयालाल सेठिया, विजयदान देथा, नानूराम संस्कर्ता, कानदान कल्पित, रानी लक्ष्मीकुमारी चूंड़ावत, नृसिंह राजपुरोहित, बेजनाथ पंवार दांई अेक और मौन तपसी रो महाप्रयाण होयग्यो। रात रा तीन-साढी तीन बज्यां नाहटा साहब रै सेलफोन सूं फोन आयो। घंटी सुण नींद खुली, नाहटा साहब रो नाम देख, झट सी फोन उठायो। फोन पर वांरै लाडेसर विक्रांत रो रुंआसो स्वर ‘‘भाईसाहब! पापा नैं सौ बरस पूगग्या’’ सुणीज्यो। सुणतां ई काळजो कांपग्यो। तीन दिनां पैली ई तो फोन पर बात हुई, सगळा समाचार पूछ्या। म्हारै छोटो सो अपरेशन हुयो, उणरी चिंता करतां सावळ परहेज राखण री हिदायत देवतां लोकदेवता तेजाजी पर राजस्थानी गंगा रो आगलो अंक निकाळण री योजना पूरी करण बाबत चरचा हुई। गरमी कीं कम पड़्यां डीडवाणा आवण अर तेजाजी रै जीवण सूं जुड़्यै गामां खरनाळ, सुरसुरा, पनेर आद री जात्रा करण री इच्छा जाहिर करी। शिवचंद्र भरतिया ग्रंथावली रै संपादन-प्रकाशन री बात हुई। बातां बातां में म्हनैं लडावता बोल्या लाडी! थारी ऊरमा पर म्हनैं पूरो भरोसो है। डीडवाणा अर नागौर में म्हारै संपर्क अर व्यवहार सूं बै खासा राजी हा। अठै कई बार कार्यक्रमां में वांरो आवण रो काम पड़्यो, हर बार म्हारी पीठ थपथपावता अर म्हारी हूंस बधावता। सदाई कैया करता ‘लाडी! कीं सागै नीं चालणो है, लोगां सूं निस्वार्थ नेह रा संबंध बणाओ। जितो हो सके भलो करो, कोई सूं अड़ी-ईसको नीं राखणो।’ वांरो मानणो हो कै साहित्य सिरजण कदेई सामयिक अर तात्कालिक टिप्पणियां रो हामी नीं हुवै। वै ठावा अर ठीमर काम करण रा पखधर हा।

विक्रांत फोन रख दियो हो पण म्हैं बिस्तर माथै बैठो चितबगनो सो हुयोड़ो म्हारै फोन नैं देखतो रैयो। सगळी बातां री रील आंख्यां सामी घूमण लागगी। म्हारै 01 मई नैं ई अपरेशन हुयो हो, जात्रा किणीं सूरत में संभव कोनी ही, म्हनैं लाग्यो कै ओ म्हारो काठो भाग हो कै उण महामनीषी नैं दोय मुट्ठी लकड़ी देवण अर वांरा अंतिम दरसण करण नैं ई म्हैं नीं पूग सक्यो। सन 2016 मई री 03 तारीख बीती अर 04 लागी। आ तारीख इसी अभागी, जकी राजस्थानी रै उण लाडलै सपूत नै खागी, जिको मायड़ भाषा री मान्यता रा सांतरा सपनां देखतो आवण वाली पीढियां नै नेह नीत अर परापरी री रीत रो मारग दिखावतो हियै हरखावतो। मायड़ भाषा रो वो कोडिलो कुंवर डॉ किरण चन्द नाहटा, जिणरी अनुसन्धान दीठ अर साहित्यिक समझ रै सामी आखो साहित्यिक समाज नतमस्तक हो, वो आपरा सगळा सोच्योड़ा सपनां अर अंगेज्योडा संकल्पां नै अधूरा छोड़ क्रूर नियति रै हाथां काळ रो कवो बणग्यो। साहित्यिक जगत री सगळी मण्डिळयां अर खेमां सूं साव अळगो आपरी निकेवळी सृजन वाट रो वो बटाऊ किण दिश कूच करग्यो, आ सोच-सोच मन समंदर हबोळा खावतो उझळ-उझळ पड़ै। पण नियति पर किणरो जोर।

रह-रह रड़कै रात-दिन, क्रूर काळ री घात।
अनाघात अधरात रै, बगत बिगाड़ी बात।।
नयणज निरझर ज्यूं बहै, हियो हबोळा लेय।
कीरण करग्यो कुजरबी, अधबिच धोखो देय।।
सखरी सीख समपता, गहरो देता ज्ञान।
वै नाहटाजी नीठग्या, कीनो स्वर्ग पयान।।

समय री इण कुटळाई भरी चाल वाळै दौर में स्वार्थपरता सूं दूर, आत्मीयता रा संबंधां रो बरोबर निभाव करणियो, भावी पीढ़ी नैं संस्कार हस्तांतरण री सबळी सीख देवणियो अर सब कुछ होतां थकां भी खुद नैं छोटो मान सामलै रो आघमान करणियो, मायड़ भाषा री सेवा सारू तन मन अर धन हर दीठ सूं सदा समर्पित रेवणियो राजस्थानी रो गम्भीर अध्येता, शोधकर्ता, समालोचक, निबन्धकार, पत्रकार डॉ किरणचन्द नाहटा वां लोगां सारू अेक आदर्श है, जिका साहित्य रा साचा हेताळू है। पुरस्कार अर माळीपानां सूं सदा-सर्वदा दूर रैवणियां, आपरी न्यारी निकेवळी सोच अर अनुभवी दीठ रै बळबूतै नया लिखारां नैं सावळ राह बैवण री सीख देवणियां नाहटाजी जेड़ा महापुरखां री कमी हर खिण खिन्नता देवै पण ‘समै करे सो, सह्यां सरै’। आपरी बात रै प्रति पूरी तरह जिम्मेदार रेवण री वां री खास आदत ही। नाहटा जी साथै बात कर’र एक आत्मीय सन्तुष्टि मिलती। धीर गम्भीर व्यक्तित्व रा धणी, साहित्यिक संस्कारां रा सारथी, लोकसंस्कृति रा चतुर चितेरा, ग्रामीण जीवण अर मूल्यां रा मोटा पखधर, मौन तपस्वी विराट मनीषी डॉ किरणचंदजी नाहटा जेड़ा लोगां री आज घणी कमी है। दुनियां री मोकळी भीड़ मांय मिनखपणै सूं मंडित मिनखां री पोळछ दीखै। आज राजस्थानी भाषा अर साहित्य री ओपती अंवेर करण सारू किरणचंदजी जिसा किरदारां री सख्त जरूरत है, पण है कठै ?

झुरै घरनार परिवार में अपार दुःख, करै हाहाकार सारे मीत यार नाहटा।
कौन करे सार सत्कार सदसाहित को, कौन दे दुलार मान मनुहार नाहटा।
करत गुहार बार बार सो संभार देख, भाषा अरु साहित पे मोटी मार नाहटा।
‘गजादान’ कहे अेक बार आ’र गल्ल कर, ‘लाडी’ कह पुकार यूं उतार भार नाहटा।

~~डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’

 

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