गजल – मिनख नै मिनख ई मानणो भाई!

मिनख नै मिनख ई मानणो भाई!
जात रो जंजाल़ नीं जाणणो भाई!!

कूड़की धजा तो कदै ई उतरगी!
अबै क्यूं चींथड़ो ताणणो भाई!!

भरम रै भंतूल़ै कदै तक भटकसो!
करो उर साच रो चानणो भाई!!

भारती मात रा पूत सह अपां तो!
पछै क्यूं भेद कर छाणणो भाई!!

बडै अर छोटै रो फरक तो छल़ावो!
फूट रो बीज क्यूं बावणो भाई!!

करै तो राग अनुराग री करीजै!
धेख रो गीत क्यूं गावणो भाई!!

प्रेम रो नेम तो पाल़ मत छोडणो!
बणै क्यूं गिडंकड़ो खावणो भाई!!

~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”

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