परतख प्रेरणा-पुंज : आपणी लोकदेवियां 

Matajiकिणी देस-समाज री पूरी अर परतख पिछाण उणरी संस्कृति सूं इज हुवै। संस्कृति रो मूळ संस्कार हुवै। संस्कारां रै सिगै ई किणी मिनख, समाज अर देस री रीत-नीत, माण-मरजादा, लेण-देण, आचार-विचार आद रो ठाह लागै। भारतीय संस्कृति मांय मिनख रै जलम सूं लेय छेहलै पड़ाव ताणी जीवण री जुगत सिखावण सारू संस्कारां, मान्यतावां, रीत-रिवाजां अर कमनीय कल्पनावां री भरमार है। इण संस्कृति मांय कांई है, इणरै साथ कांई व्हेणो चाईजै, इणरी बात पुरजोर ढंग सूं करीजी है। मिनख नैं पग-पग माथै उत्तम जीवण जीणै री प्रेरणा देवण सारू आपणी संस्कृति मांय देवी-देवता, संत-ओलियां, पीर-भोमियां, सूरां-जुझारां रै उल्लेखणजोग अर अनुकरणजोग जीवण रा दाखलां री भरमार मिलै। संस्कृति रै इण मोटोड़ै बड़लै री ठंडोड़ी छाया मांय न्यारी-न्यारी मोकळी संस्कृतियां री रिळयामणा रूंखड़ा आपरा रंग बिखेरता इणरी ओपमा नें संवारै। हर क्षेत्र, हर समाज अर हर जाति री आप-आपरी न्यारी-न्यारी संस्कृति। सगळ्यां रो मूळ तो भारतीय संस्कृति ईज है पण हरेक री आप-आपरी रुपाळी निकेवळ। राजस्थान री वीर-संस्कृति रो आपरो रौबिलो रंग। अठै रै सूरवीरां रो शौर्य, दानवीरां रो औदार्य, युद्धवीरां रो ओज, आबाल-वृद्ध सगळां री रगां मांय दौड़तो स्वातंत्र्य-भाव, वीर-मातावां री पालणां झूलतै सपूतां नैं दीरीजती अनूठी सीखां, मां जायां अर घर जायां रो समवड़ माण, शरणागत-वात्सल्य, सामधरम पाळणियां रै सम्मान अर दुभर सूं दुभर दान रा अेक सूं बढ़कर अेक उद्धरण अंजस देवै।

इणी अंजसजोग संस्कृति री अेक अद्भुत परंपरा है- शक्ति अवतार परंपरा। भारतीय संस्कृति मांय बियां तो देवी अर देवतावां री अवतार परंपरा सदा-सर्वदा सूं विद्यमान है ही पण इणसूं ई आगै आपणै अठै लोकदेवियां रै अवतार अर वांरै अनुकरणीय वरदायी जीवण री वातां, ख्यातां जीवण रै उण सुदरतम स्वरूप री सीख देवै, जिणसूं आगै सखराई री सीमावां आय जावै। आपणै समाज खास कर चारण समाज मांय भारतीय संस्कृति रै उण मूल मंत्र “यत्र नार्यस्तु पुज्यते, रमंते तत्र देवता” नैं चरितार्थ करतां हर नवजात कन्या में देवत्व रा दरसण करण री मानता थरपीजी। जुगां-जुगां सूं अखी इण परंपरा रा आज ई चारणां रै हर घर मांय जीवंत प्रमाण मिलै। चारण समाज मांय किणी डावड़ी नैं ओछै नाम सूं यानी छोरी, टींगरी आद कैवण नैं वर्जित मानीजै। बडेरां सूं चरण-स्पर्श कर’र आशीर्वाद लेवण री परंपरा रै पुरजोर पखधर चारण समाज मांय कन्यावां सूं चरण स्पर्श नीं करवाया जावै वरन उम्र मांय मोटा होवण रै बावजूद अभिभावक तकात कन्यावां रा चरणस्पर्श कर वां सूं आशीर्वाद लेवै, अैड़ी परंपरा है। इणरै पाछै सोच आईज है कै वा कन्या देवी रो रूप है। आपणै समाज मांय कन्या रूप में अनेक देवियां रो अवतार हुयो है। आद्याशक्ति हिंगळाज रै अवतार सूं लेय आजलग अणगिण शक्ति अवतार हुया है, जिकांरो जीवण पग-पग पर प्रेरणा अर प्रोत्साहन देवै। बियां तो हिंगळाज पौराणिक देवी है पण चारण समाज मांय इयांकली मानता है कै “आद्याशक्ति रै रूप में चारण जाति मांय ई हिंगळाज रो अवतार हुयो। गौरविया शाखा रा चारण हरिदास रै घरै नगरथट्टा में भगवती हिंगळाज रो अवतार हुयो। आज ई चारण समाज अर उदासीन संप्रदाय रै संन्यासियां मांय इसी मानता है कै नगरथट्टा रै हिंगळाज मंदिर री जात्रा मूळ हिंगळाज री जात्रा रै बरोबर फळदायी है।” (राजस्थानी शक्तिकाव्य : डॉ. भंवरसिंह सामौर)

पौराणिक देवी हिंगळाज अर चारण देवी हिंगळाज आपस में इतरी घुलमिल गई कै दोनां री कथावां नैं न्यारी-न्यारी करणी असंभव सी लागै। चारण समाज मांय आ प्रबल मानता है कै इण जाति मांय जितरा शक्ति-अवतार हुया है, बै आद्याशक्ति हिंगळाज रा पूर्ण या अंशावतार ईज है। अवतारां री इण कड़ी मांय बांकल, खूबड़, आवड़, खोड़ियार, गुलीदेवी, अम्बादेवी, बिरवड़ी, देवलदेवी, लालां, फूलां, केसरबाई, करनी, बैचरा, बीरी, सैणलदेवी, नागलदेवी, कामेही, सांई नेहड़ी, माल्हणदेवी, राजल, गीगाय, मोटवी, चांपल, अणदू, चंदू, साबेही, शीलां, देमां, सुदरबाई, मांगळदेवी, जैतबाई, सोनबाई, पुनसरी बाई, जीवणीबाई, जांनबाई, बोधीबाई, जाहलबाई, बाठलबाई, सोनबाई, धांनबाई, जीवां, वांनू, गौरवी, बैनल, केसरदेवी, हरियां, कागबाई, इंद्रबाई, सोनलबाई आद देवियां रा आप-आपरा परचा-परवाड़ा प्रचलित है। न्यारा-न्यारा क्षेत्रां मांय आं लोकदेवियां री मोकळी मानता है। गाम-गाम मांय आ देवियां रा थान अर मिंदर है। सज्यै सारू राजीनां री सेवा-पूजा हुवै। घर-घर मांय आं देवियां रा थान मिळै। नौरतां मांय जगदम्बा री जोत करीजै। देवियां रै जीवण अर वांरी वदतायां रा डिंगळ गीत, छंद पढीजै,   चिरजावां गाईजै। लोगां रै मन मांय आस्था इयांकली कै मोटी सूं मोटी बीमारी अर अबखाई रो ई सौरो सो निवारण आं देवियां रै नाम मांय ई है। आं देवियां नैं मां अर अंबा नाम सूं, सुरराई अर महमाई नाम सूं, दाढाळी अर मढाळी नाम सूं, धजाळी अर धाबळवाळी नाम सूं पुकारता भक्त आपरी पीड़ सुणावै अर मां वांरै सगळै दुखां रो निवारण करै। अम्बा रो नाम इयांकलो मानीजै कै जिणनै कानां सूं सुणियां अभिमान रो हरण हुवै, जीभ सूं जपियां जमारो सुधर जावै, ओ नाम आधि, उपाधि अर व्याधि रो हरण करै, आपरै भक्तां रो भंडार भरै। इण नाम रो उच्चारण संसार-सागर सूं पार उतारण वाळो है-

नाम यहे अभिराम अमाम रट्यो खुद राम तमाम चितारो।
कान परे अभिमान हरे अरु जीभ धरे सुधरेय जमारो।
आधि उपाधि वियाधि टरे गजराज भरे जगदंब भंडारो।
बार हि बार उचार अलौकिक अम्ब सुनाम उबारन वारो।। शक्तिसुत।।

चारण लोकदेवियां आपरै कर्तृत्व सूं संसार नैं सीख समपी है। आं देवियां रो जीवण शक्ति रै अजश्र स्रोत रै रूपमें आपणै सामी आवै। मन, वचन अर कर्म सूं करुणा रो विस्तार करती, स्वावलंबन री सबळी सीख देवती, साच रो साथ अर झूठ रै लात रो संदेसो देवती, सहिष्णुता, धीरज, निडरता, दानशीलता अर आत्मबलिदान री भावना नैं बधावती अै लोकदेवियां आम सूं खास हर तबकै री आस्था रो केंद्र बणी। पशुपालण आंरो मुख्य काम रैयो। पशुवां मांय ई गाय-पालण खास। आपरी गायां रा बगेला चरावण सारू आं देवियां दूर-दूर री जात्रावां करी। जठै-जठै गई वठै री राजसत्तावां सूं वां रो संपर्क रैयो पण कदैई राजसत्ता रै अनाचार अर अत्याचार रो साथ आं देवियां नीं दियो वरन उणरो प्रबळ प्रतिकार कर’र राजसत्ता नैं झुकण सारू मजबूर करी। राव कान्हां सूं लेय अणगिण उदाहरण शक्तिकाव्य मांय भर्या पड़या है। आज री युवा पीढी नैं चाईजै कै आं देवियां रै जीवण अर चरित्र सूं रूबरू हुवै। वांरै परचै-परवाड़ां नैं जाणे। आं देवियां में आपरी श्रद्धा राखै। चारण समाज रा जवानां अर किशोरां सूं म्हारो तो ओ ईज कैवणो हे कै दुनियां री और कोई मोटी सूं मोटी ताकत आपां सूं रूठ जावै तो कोई सोच नीं पण आ मावड़ी राजी रैवणी चाईजै। कळजुग री करारी मार रै बगत मांय ई पण म्हारो ओ मानणो है कै मां भगवती रो आशीर्वाद आपां पर लगोलग बण्योड़ो है, उणरै प्रति कृतज्ञता रा भाव जगावां।

अंब तोय उपकार, कोय बीजो नहिं कारण।
भल दे भारत भोम, कौम हिंदू, कुळ चारण।
सखरो स्वाभिमान, आन अरु बान अनूठी।
जाणै सकळ जहान, तिकै जगदम्बा तूठी।
चरणां और चिंता नहीं, सकल ओट सुरराय री।
मुलकिया भलां रूठो-मनो, महर चाईजै माय री।। शक्तिसुत।।

चतरायां अर कुळपतरायां रो त्याग करां। नुगराई सूं बचां अर सुगराई री राह पकड़ां। ओपती मैणत कर’र मनचायो मुकाम पावां। आओ चारण वरण री साख अर धाक नैं चौफेर फैलावां। आपणै चरित्र नैं इतरो पवित्र अर पावन बणावां कै लोग आपणां वारणां लेवै। आपणां बडेरां इयांकलो जीवण जियो हो, इण वास्तै आपां पण ओ काम कर सकां। जय माताजी री सा।

~~डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’
अध्यक्ष, स्नातकोत्तर हिंदी विभाग
राजकीय बाँगड़ महाविद्यालय, डीडवाना
जिला- नागौर (राजस्थान) 341303

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