पूज मनां शिव के पद पंकज

ना डरपी लखि के निशि कालिय,
ना खल-घात हु तैं घबराए।
ना भवसंकट से हो सशंकित,
हार मती हर के गुन गाए।
आक धतूर चबाय पचाए सो,
पाप के बाप हु तैं भिड़ जाए।
पूज मनां शिव के पद-पंकज,
पाप के पंक तें पिंड छुड़ाए।।

उर मांही आस और ज़िगर जिहास अति,
आय कविलास हुतें दास को उबारिहैं।
पारबती-नाह हुके प्रेम को प्रवाह पेख,
सरण-चरण-चाह सबै काज सारिहैं।
अरे ‘गजराज’ काहे और को आवाज देय,
अटल-जहाज बैठ पार वो उतारिहैं।
मन को सँताप ताप तन हुको देवे मेट,
जटागंग हुको जाप पापपुंज जारिहैं।।

~~डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’

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