सांप नेस आवड मढ रो वर्णन
गीर रा गाढ ओरण रे मांय एक जगह है जिणरो नाम सांप नेस है। उठै भगवती आवड जी रो थान है। मैं मारी रचना “आवड आखै आसिया” रे मांय उण जगह री प्राकृतिक छटा रो वर्णन दोहा , सोरठा, तुंबेरा दोहा अर बडा दूहा रे माध्यम सुं करण री कोशिश करी है। आप सब लोगों सारू औ रचना सादर ।
सांप नेस साकंभरी,बैठी आवड जेथ।
हरियल हरियल रूंखडा,हरियल डूंगर तेथ॥241
नवहथ नागण आवडा,फरती रहै हमेश।
गाढ गीर रे वन मँही,सदा सांप रे नेस॥242
तरू तमाल’र सीमळो,किंशूक ताड खजूर।
सांप नेस आवड तखत,है जग में मशहूर॥243
सांप नेसडै आवडा,नवकुळ ले सँग नाग।
विचरत हरियल घास विच,देखत वो बडभाग॥244
चारण कुळ री आवडा,दादो जेण महेश।
मामो शेस महाबली,सात सगत इण नेस॥245
भेळो भैरव भ्रात ले,सांप नेस रहतीह।
मात सात री मंडळी,निश दिन रुमझुमतीह॥246
सांप नेस पर राफडा,उरगां तणा अनंत।
जाणक हठ जोगी तपै,तन धूडां ढाकंत॥247
नागण निज रे पांण,वन में धाक जमावती।
इम आवड आपांण,जगत वाजती जोगणी॥248
सांप नेस में बांस वन, रहती आवड मात।
सात बैन रे साथ,नागण बण निरभय फरै॥249
नेस सांप में नागणी,आवड मावड आप।
बण विचरण करती रहै,धाबळ धर धणियाप॥250
चंपौ डोलर मोगरो, केवड कुंद सुगंध।
आठं प्हौरां मात रे,सांप नेस आणंद॥251
जूही पारीजात अर,विध विध फूल बकूल।
आवड रे अनुकूल़,सांप नेस में मोकळा॥252
बोरसली रा बिटप घण,रात-राण महकंत।
सांप नेस आवड सगत,जेण मस्त दरसंत॥253
द्रोण पुहप दीसै घणा,कमळ सलिल विकसंत।
जाणक आवड आंगणै,गंधी हाट लगंत॥254
बिली विटप झाझा अठै,धावड आवड काज।
गाढा वन में मावडी,रीझावै नटराज॥255
वडला री बडवाइ रो,करनें हींडौ मात।
सातूं बहनां साथ,नागण बन झूल्या करै॥256
सांप नेस में घास पर,पवन चले अणमाप।
जाणक नागण लहरती,आवड बण खुद आप॥257
सांप नेस रे घास पर,झाकळ घण झबकंत।
हीरक जाणक हांसली,आवड री चमकंत॥258
भृंगराज अपमार्ग अर,डाभ घणौ इण ठौड।
जिण ने सदा निहाळता,कर मन आवड कोड॥259
शेलडियां रा खेत घण,वेलडियां अणपार।
जिण पर लडियां ओस री, मणियां नवलख हार॥260
चडै रूंख रे टूंकडै,मधरा गहकै मोर।
आवड मां रो नाम जिम,जपता जोगी जोर॥261
रैवर्तक परबत अठै,लोग कहै गिरनार।
आवड नाम अराधता,जंगम सिध्द हजार॥262
सिध्ध हठी जंगम मलँग,आवड रा अणपार।
जपत निरंतर जोगणी,सगत वडी सरकार॥263
जटी धुरजटी सिध हठी,नदी तटी मठवास।
आवड नें अरदास, करत विश्व कल्याण कज॥264
सांप नेस सांपा तणां,करे नेतरां आइ।
घमर बिलोवण फेरतां,आवड रोज रवाइ॥265
मांखण तारव मोकळो,गोळी मँह हथ फेर।
बाजर सोगर मांय दे,आवड सांझ सबेर॥266
मलक काठियावाड में,भूलो पड भगवान।
मावड रो महमान,बणतौ सांपा नेसडै॥267
जाळां मकडी रा घणां, झाडी झंखर माय।
जाणक आवड मावडी,सुतर कतै सदाय॥268
आवड मावड आपरो ,कतियांणी इक नाम।
विध विध मकडी जाळ बुण,सांचौ करे सलाम!॥269
दीमक लागी बांबियां,ध्यान मगन जिम सिध्ध।
जपै अहरनिश जोगणी,प्हाडां तणा प्रसिध्ध॥270
किरण किरण करुणामयी,वनराई नें चीर।
औ आवड रण धीर,बिचरत सापां नेसडै॥271
वनराई गाढी विटप,छेद किरण अणपार।
जाण आवडा तावडा,री छांटै रस धार॥272
गाढी वनराई गजब,चीरै जिणने वाढ।
आवड री जमदाढ,सूरज सांपां नेसडै॥273
मनहरणां हरणां सदा,तरणां चरता रोज।
अनपुरणा मां आवडा,मन कर देखत मोज॥274
सर पर उडता विहग पुनि,अडै सलिल री ओर।
जाणक सुर तबला बजत,थाप लगत घण जोर॥275
तिरकिट तिरकिट तुम तुतक, तिरकिट तिरकिट साद।
आवड कर आह्लाद,सुणती सांपा नेसडै॥276
बांस पान वाजै घणा,खड खड खड आवाज।
जाणक आवड हालता,रुम झुम मढ अधिराज॥277
व्याल बांडियौ बांस वन,करतौ रहै अवाज।
झणकै जाणक झांझरां,रुण झुण रुण झुण राज॥278
सांपां वाळै नेसडै,नवलख नागण रोज।
रमै रास हर रोज,रुम झुम रथडै नीसरै॥279
तरणां पर करणां पडे,मन हरणां उण चित्र।
आवड रचती नित्त,आणंदित हुय आसिया॥280
सरां बूंद टिप टिप पडै, बणै जेण वरतूल।
जाणक आवड जल मही,पद धर झारे धूल॥281
गजब गीर रो बांस वन ,अणियाळो अखियात।
महिखासुर जिम मारवा,शैल आवडां हाथ॥282
थोर केरडो बोरडी,बांका शूळ बबूल।
कांटा झाडी झंखरा,तण आवड तरशूळ॥283
जबर जटी जिम जोगियां,एम विटप वडवाइ।
आवड नें आराधता,गहन गीर वन माय॥284
बैठर गढ गिरनार मढ,नजर करै चहुफेर।
आवड मां प्हेरो भरै,हरपळ सांझ सवेर॥285
जोगी जंगम सिध्द जन,हरपळ मन धर हेत।
आवड नाम अराधता,मुक्ति भुक्ति मां देत॥286
जबर जटाळा जोगियां,रो गीर में रहवास।
राखत मां आवड खबर,हिव धर करै हुलास॥287
बुढौ बड बडवाई जुत,जाणक सिध्द्ध जटीह।
बैठौ नदी तटीह,आवड आखै आसिया॥288
~~वैतालिक