स्वाभिमान और गौरव का बिंदु है जौहर

राजस्थान का नाम धारा-तीर्थ के रूप में विश्रूत रहा है। शौर्य और धैर्य का मणिकांचन संयोग कहीं देखने को मिलता था तो वो केवल यही धरती थी। ऐसे में कुछ सवाल उठते हैं कि फिर राजस्थान के रणबांकुरों को युद्ध में परास्त और यहां की वीरांगनाओं को जौहर की ज्वालाओं में क्यों झूलना(नहाना) पड़ा? क्या कारण था कि जिनकी असि-धाराओं के तेज मात्र से अरिदलों के हृदय कंपित हो उठते थे, उनको साका आयोजन करना पड़ता था?[…]

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रँग शीलां रखवाल़िया,जोर झिणकली झाड़!!

एक जमानो हो जद अठै रा नर-नारी मरट सूं जीवण जीवता अर सत रै साथै पत रै मारग बैवता। हालांकै धरती बीज गमावै नीं आज ई ऐड़ा लोग है जद ई तो ओ आकाश बिनां थांभै ऊभो है अर ऐड़ै नर-नाहरां री बातां हालै। पण उण दिनां री बातां बीजी ही। बीसवैं सईकै री बात है भाडली(जैसल़मेर) रा भाटी रुघजी मानसिंहजी रा (रुघराजजी /रुघनाथजी) धाट रै गांम छौल़ रै सोढा संग्रामसिंह अमरसिंह रां रै परण्योड़ा हुता। सोढीजी रो नाम गीतांकंवर हो। उणां री जोड़ायत सोढीजी, एक’र आपरै पीहर छौल़ गयोड़ा हा। रुघजी रै रावल़ै बात चाली कै सोढीजी नै आणो(लेने के लिए) मेलियो जावै। बात तय हुई कै जोगराजजी बीठू नै मेलिया जावै। वै जावै अर सोढीजी नै ले आवै। जोगराजजी नै बुलाय’र मा सा कह्यो कै- “बाजीसा आप ऊँठ लेय’र पधारो अर छौल़ जाय’र बीनणीसा नै ले आवो। आप तो उणरै माईत हो सो नीं उणरै संकोच री बात नीं आपरै।”[…]

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शरणागत सारू अगन रो वरण

आपांरै अठै कैताणो है कै ‘आप मरतां बाप किणीनै ई याद नीं आवै’। बात सही ई है पण अठै ऐड़ा लोग ई हुया है जिकै बाप अर बोल नै एक ई मानता अर आं माथै आंच आयां मर पूरा देता। बात झलगी तो झलगी!! पछै तो ‘तबलग सांस शरीर में, जबलग ऊंची ताण।’ जिकै ऊंची ताणै, उणांनै ईज जग जाणै। जिकै ऊंची नीं ताणै उवै आयां ज्यां ई उठ’र बुवा जावै। लारै ‘खुड़को हुवो न खोज’ री बात चालै। पण जिकै भाइयां नै सुख, सैणां नै अंजस अर आयै अवसर नै सिग चाढ’र पिता री मंशा नै पूरै, उवै ईज जगत में धनकार लेय’र जावै-

सुख भायां सैणां अंजस, आयां सिग अवसाण।
पितु मनसा पूरावियां, ज्यां जायां धन जाण।।

आपरै जनमणै नै जिकै धिन-धिन कर’र गया उणांमें एक चावो नाम है मा देमां रो।[…]

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थपिया कीरत थंब

सांचोर माथै राव बरजांगजी राज करै। बडो दातार। बडो सतवादियो। कवियां रो कद्र करणियो अर खाग रो धणी। केई चारण कवेसरां नै गांम इनायत किया। इणी कवियां में एक नाम सोडैजी मईया रो ई चावो।

इण सोडैजी मईया नै राव बरजांगजी, गोमेई गांम दियो। नैणसी री ख्यात रै परिशिष्ट में दाखलो मिलै कै उन्नीसवें सईकै में गोमेई में दो पांतीदार हा-

“कोस 9आथूण। इकसाखियो। कोसोटो हुवै। चारण करता जमांवत, चारण अभा मांनावत रै आदो-आद सो गांव बरजांगजी दीया चारण सोडै मई नै। “

जैड़ोक दाखलो आयो कै अभा मानावत रै आधोआध है। इणसूं ठाह लागै कै अभजी मईया गांम रा आधिया हा। उवै आपरी बखत रा नामजादीक कवि पण हा-

अभमल तोसूं ऊजल़ी, सो मईयां री साख।[…]

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हूं नीं, जमर जोमां करसी!!

धाट धरा (अमरकोट अर आसै-पासै रो इलाको) सोढां अर देथां री दातारगी रै पाण चावी रैयी है। सोढै खींवरै री दातारगी नै जनमानस इतरो सनमान दियो कै पिछमांण में किणी पण जात में ब्याव होवो, पण चंवरी री बखत ‘खींवरो’ गीत अवस ही गाईजैला-

कीरत विल़िया काहला, दत विल़ियां दोढाह।
परणीजै सारी प्रिथी, गाईजै सोढाह।।

तो देथां रै विषय में चावो है-

दूथियां हजारी बाज देथा।।

इणी देथां रो एक गांम मीठड़ियो। उठै अखजी देथा अर दलोजी देथा सपूत होया। अखजी रै गरवोजी अर मानोजी नामक दो बेटा होया। मानोजी एक ‘कागिये’ (मेघवाल़ां री एक जात) में कीं रकम मांगता। गरीब मेघवाल़ सूं बखतसर रकम होई नीं सो मानोजी नै रीस आई। वे गया अर लांठापै उण मेघवाल़ री एकाएक सांयढ आ कैय खोल लाया कै – “थारै कनै नाणो होवै जणै आ जाई अर सांयढ ले जाई।”[…]

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धिन चंदू राखी धरा!!

उन्नीसवों सइको राजस्थान में उथल़-पुथल़ अर अत्याचारां रो रैयो। उण काल़ खंड में केई राजावां अर ठाकरां आपरै पुरखां री थापित मरजादावां रै खिलाफ काम कियो। जिणनै केई लोगां अंगेजियो तो केइयां प्रतिकार ई कियो। उण काल़खंड में चारणां रै बीसूं सांसणां में जमर अर तेलिया होया।
चारणां नै दिरीजण वाल़ो गांम सांसण बाजतो। वो गांम हर लागबाग सूं मुक्त होवतो अर राज कोई दखल नीं दे सकतो। आ एक थापित मरजादा ही। जद जद राज मरजादावां उलांगण री हद तक आयो तो चारणां अहिंसक रूप सूं राज नै रोकण सारू धरणो(सत्याग्रह)जमर अर तेलिया किया। इण तीनूं ई स्थिति में खुद ई कष्ट पावता पण जनता कै राज संपत्ति नै किणी भांत सूं हाण नीं पूगावता।
खुद उत्सर्ग कर देता पण सरणागत कै मरजादा नै नीं डिगण देता। जदकै आज इणरै उलट है। आज केई तबका आपरै प्रदत्त अधिकारां री रक्षार्थ हिंसक होय तोड़फोड़, निर्दोषां रा भोड-भंजण सैति कितरा ई अजोगता काम करै। इणरै उलट चारण कटारियां खाय कै जमर कर सत्य समर रा अमर सेनानी बणता।
उण कालखंड रा ऐड़ा घणा किस्सा है पण एक गीरबैजोग किस्सै सूं आपनै रूबरू करावूं।[…]

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कल़ाऊ रा काचरिया याद है !!

आलाजी बारठ कल़ाऊ रैवै। कनै घणो वित्त, घणो विभो। आगो दियो पाछो पड़ै। रामजी राजी। एक दिन वे आपरै चंवरै बैठा माल़ा फेरै हा जितै एक बांमणी आपरै डावड़ै नै लियां उणांरै कनै आई अर कैयो कै – “बाजीसा म्है आपरै शरण बिखो काढण अर दिन तोड़ण आई हूं!!”

उणां उणनै पूरो आवकारो देय एक झूंपड़ो रैवण नै दे दियो अर सीधै री व्यवस्था करदी। टाबरियो पांच-सात वरसां रो हो सो उणनै उणां आपरा टोघड़िया चरावण रो काम भोल़ा दियो।[…]

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म्हारै कानां रा लोल़िया तोड़ै! तो तोड़ लेई!!

बीकानेर रो सींथल़ गांम रोहड़ियां रो कदीमी सांसण। सांसण गांम में राज रो कोई दखल नीं अर जै कोई राज रै जोम में दखल देवण री कोशिश करतो तो सोरै सास उठै रा वासी इण बात नै सहन नीं करता अर आपरो ठरको कायम राखण नै मर पूरा देता। ऐड़ी ई एक बात है सांसण गांम री टणकाई सारू मरण अंगेजण री।

बात उण दिनां री है जिण दिनां बीकानेर माथै महाराजा रतनसिंह रो शासन हो। उणां री सेना में रिड़मलसर-सागर रो एक सिपाही-मुसल़मान नूरदीन किणी छोटे-मोटै पद माथै चाकरी करतो। वो एक दिन आपरै दस-पंद्रह जिणां साथै बैतो सींथल आयो अर विंसाई खावण सारू ठंभियो। उणी बखत रुघाराम नाई रछानी (नाई का समान) लियां कनैकर निकल़िया। नरदीन उणांनै हेलो कियो कै – “इनै आ रे!”[…]

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गीत लाछां माऊ रो

।।गीत – प्रहास साणोर।।
अमर कथ करेवा पैंड जस भरेवा अहो,
समर हर नाम कर काम साचां।
मंडेवा गुमर इम नेसड़ां महिपर
लोवड़धर जचायो जमर लाछां।।1

रतनुवां दैण धिन कीरती रसापर,
धूरतां असा कज मोत धीबी।
आदलग जसा ही रीत रख इल़ा पर
जगत में बसा गी सुजस झीबी।।2[…]

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जसोड़ां रा बूंठा छोड देई

दिन अर दशा हरएक री बदल़ती रैवै, इणी कारण इणनै घिरत-फिरत री छिंयां कैयो गयो है। जिकै जसोड़ कदै ई जैसलमेर में जोरावर होता, जिणां रो राज में घातियो लूण पड़तो पण सगल़ी मिनखां री माया रा प्रताप हा!कृपारामजी खिड़िया सटीक ई लिख्यो है कै-

नरां नखत परवांण, ज्यां ऊभां संकै जगत।
भोजन तपै न भांण, रांवण मरतां राजिया!!

ज्यूं-ज्यूं मिनखां रो तोटो आयो, ज्यूं-ज्यूं जसोड़ पतल़ा पड़िया अर त्यूं-त्यूं उणां रो मरट मिटतो ग्यो।[…]

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