देवीअथर्वशीर्षम् का भावानुवाद

आखर अथर्व शीर्ष रा, देवी दाखूं आज।
उकती दीजो अंबिका, मेहाई महराज।।४५६
सकल देव सुरलोक रा, कहियो करणी मां ज।
कहो आप किनियांण कुण, मेहाई महराज?।।४५७
पुरूख प्रकृति पुहमि पर, जगत चराचर म्हां ज।
शुन अशुन्न सब हीज हूं, मेहाई महराज।।४५८
मात वदी निज मुख मधुर, आखर शुभ रिधु राज।
ब्रह्मरूप हूं भगवती, मेहाई महराज।।४५९[…]

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आखर आखर आप रा

रचना म्हारी री रिधू, लोवडधर रख लाज।
आखर आखर आप रा, मेहाई महराज।।४४८
रचना सुध मन सूं रची, आखर थारी आ ज।
म्हारी हूं कह किम कहूं, मेहाई महराज।।४४९
सकळ जगत है स्वारथी, जूठा सभी सगा ज।
आखर आखर है खरा, मेहाई महराज।।४५०
सकल जगत है स्वारथी, जूठा सभी सगा ज।
आखर आखर आख ले, मेहाई महराज।।४५१[…]

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तंत्रोक्त रात्रिसुक्तम का भावानुवाद

रात्रि सुक्त तंत्रोक्त रा, मायड भासा मांझ।
आखर मांडूं ओपता, मेहाई महराज।।४१६
जोगण निद्रा आपरा, कथूं प्रवाडा राज।
उकती शुभ दो अंबिका, मेहाई महराज।।४१७
अखिल जगत अधिराजिनी, धारण वळै धरा ज।
उतपति थिति लय कारणी, मेहाई महराज।।४१८
अनुपम सगती इश री, नींद कहै दुनिया ज।
आवड वपु खुद अंबिका, मेहाई महराज।।४१९[…]

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ॠगवेदोक्त रात्रिसुक्तम भावानुवाद

रात्रि सुक्त ॠगवेद रा, आखर माडूं आज।
शुभ उकती मां समपजो, मेहाई महराज।।३९९
व्यापक वपु वसुधा तथा, जीव चराचर मांझ।
रात राजराजेस्वरी, मेहाई महराज।।४००
ईहग मन आलोकिणी, धारण सकळ धरा ज।
जथा करम फलदायिनी, मेहाई महराज।।४०१
अमरबेल रे जिम अमर, छाई बिरछ घटा ज।
रात राजराजेस्वरी, मेहाई महराज।।४०२[…]

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सांझ रूप माता स्वयं

लखी ललित शुभ लालिमा, अरुणिम अंबर आ ज।
सांझ रूप माता स्वयं, मेहाई महराज।।३९२
देशाणा मढ मांय नें, सरस पडी है सांझ।
आवड ने अरदा, मेहाई महराज।।३९३
रात प्रात री ब्हैनडी, वय संधिन् वळ सांझ।
चहूदिश चमकै चांदणी, मेहाई महराज।।३९४
पंछी पाछा आविया, वळिया माळा मांझ।
रात रूप रिधु मां नमूं, मेहाई महराज।।३९५[…]

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ॠगवेदोक्त देवीसुक्तम् का भावानुवाद

रहस कहण ॠगवेद रा, देवी सुक्तम राज।
आखर दीजो अम्बिका, मेहाई महराज।।३५२
सिर पर जिण धरियो ससी, सिंह सवारी साज।
मुख मणिमरकत कांतिमय, मेहाई महराज।।३५३
चौभुज चंडी चक्र धनु, शंख बाण धरिया ज।
तरण तारणी त्रंबका, मेहाई महराज।।३५४
बाजूबंध धर दुय भुजां, कंकण मांहि करां ज।
हीरक गळ बिच हारलो, मेहाई महराज।।३५५[…]

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नरपत खुद लिखिया नँही

नरपत खुद लिखिया नँही, मां रा आखर मां ज।
लिखिया लोवडवाळ खुद, मेहाई महराज।।३३१
म्हारै मन में उमडिया, आखर बणे अवाज।
मुख सूं तद में भाखिया, मेहाई महराज।।३३२
द्रग देखो देशाणपत, रसन रटो रिधु राज।
करण सुणो किनियांण रव, मेहाई महराज।।३३३
सरळ ह्रदय री डोकरी, रखो नोकरी राज।
तूं अधिपत तिहुलोक री, मेहाई महराज।।३३४[…]

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अर्गलास्तोत्रम् का भावानुवाद

अजब अर्गला स्तोत्र रा, कथूं कवित मँह राज।
सबद समप सुभकारिणी, मेहाई महराज।।३०४
काळी भद्र कपालिनी, स्वाहा स्वधा शिवा ज।
सचर अचर संचालिनी, मेहाई महराज।।३०५
छिमा, मंगला धातरी, जयँती अर दुरगा ज।
सूर चंद्र कोटि प्रभा, मेहाई महराज।।३०६
दे जय देवी चामुँडा, हारी वपु पीडा ज।
काळरात सब दिश-गता, मेहाई महराज।।३०७[…]

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सिध्धकुंजिकास्तोत्रम् का भावानुवाद

सिध्धकुंजिका सांतरी, करण सकळ शुभ काज।
गुरुचाबी गढवी तणी, मेहाई महराज।।२७२
चँडी जाप है चारणी, तारण भव जळ मां ज।
अवल नाम आणँद घण, मेहाई महराज।।२७३
कवच अरगला कीलकां, रो सब है मां राज।
रिधू राज राजेस्वरी, मेहाई महराज।।२७४
सुकत ध्यान अर न्यास सब, अरचन वंदन आ ज।
सरस नाम सुखरूप है, मेहाई महराज।।२७५[…]

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कहो केथ हो डोकरी

रण वन गिरवर समदरां,आपूं थनैं अवाज।
कहो केथ हो डोकरी,मेहाई महराज।। २५७
किनियाणी कूकै रियौ,आई सुणौ अवाज।
सुण ! सांची जग री सगत,मेहाई महराज।। २५८
क्यूं बोळी किनियाण ह्वी,जबर फँसी मां जाज।
कूक कूक कायो भयौ,मेहाई महराज।। २५९ […]

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