आवडजी रो चित्त इलोळ गीत

।आवडजी रो चित्त इलोळ गीत।
उमा रुप अनूप अवनि, आवडां लखि आदि।
बरण चारण जलम बाढी,आप किरती अनादि।
तौ अन्नादि जी अन्नादि अंबा अवतरी अन्नादि॥1॥
तौ धन्य जैसलमेर धरती,ग्राम चाळक गण्य।
साहुआं शाख तणो सुरज,मामडो कवि मन्य।
तौ धन्य हो जी धन्य,धारी देह उण धर धन्य॥2 […]

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प्रेमहि के नहिं जाति रु पांतिहु – चाळकदान रतनू ‘मोड़ी चारणान’

प्रेमहि के नहिं जाति रु पांतिहु, प्रेमहि के दिन राति न पेखो।
प्रेमहि के नहिं जंत्र रु मंत्रपि, प्रेमहि के नहिं तंत्र परेखो।
प्रेमहि के नहिं रंग रु रूपहि, प्रेम के रंक न भूप नरेखो।
प्रेमहि को अद्भुत्त प्रकार स लोह रु पारस सों लख लेखो।। […]

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चारण का वाक् चातुर्य – ठा. नाहरसिंह जसोल संकलित पुस्तक “चारणौं री बातां” से

कच्छ की राजधानी भुज के राजमहलों में कच्छ के राव गौडजी और ओखा का राणा तेजोजी चौपड़ खेल रहे हैं। खेल पूरे यौवनावस्था में हिलोरें ले रहा है। कभी कच्छ के राव के पौ बारह पच्चीस तो कभी, ओखा के राणा के। दाव पर दाव और गोटी पर गोटी उड़ रही थी। उस समय मांडवी तालुका के काठड़ा गांव का वारू चारण हिंगलाजदान सभा कक्ष में प्रवेश करता है। वारू चारण को गौडजी बावा का मरजीदान होने से राजदरबार में आने जाने की छूट की थी। उसने गौडजी को अभिवादन करते हुए अपना स्थान ग्रहण किया। थोड़ी देर में खेल […]

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सदा ऋचावां साम री

रस मय कविता गागरी, छलके दोहा छंद।
डिंगळ री डणकार में, आठ पोर आणंद॥1

मन रो नाचै मोरियौ, आठ पोर अणमाप।
डिंगळ री डणकार में, डफ मृदंग री थाप॥2

वीण पाणि वर दायिनी, बसती अठे विशेस।
आठूं पोर उछाळती,कविता रतन हमेश॥3 […]

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शबद आराधना

शबद अमीणौ साइनो, मै शबदां रो पीर।
करुं शबद आराधना, सुरसत रे मंदीर॥1

शबद दरद, अहसास मन, वाणी, ध्वनि, लय, छंद।
यति, गति मय विध रुप धर, उर बगसे आणंद॥2

म्हूं शबदां रो जोहरी, कविता नवलख हार।
पोयी लडियां शबद री, “शारद कर स्वीकार”॥3 […]

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माताजी रा आवाहण रा चाडाउ छंद

।छंद : नाराच।

चंडी सुभद्र सद्र अद्र आसणं चडी चडी।
भुजाक डाक डैरवां वडां वडां वडां वडी।
करे हुंकार वार वार दाणवां डकारणी।
चितारतां सुपात मात चाढ आत चारणी॥1॥

नहीं सो माय बाप आप तैं ज आप ऊपणी।
सुसावित्री उमां रमां शचि अनूप रुपणी।
धिनो प्रचंड खंड मै अखंड जोत धारणी।
चितारतां सुपात मात चाढ आत चारणी॥2॥ […]

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आवाहण गीत

गोखां गिरनार हुंत गज गामण,
कामणराय आप शिव कामण,
जवाळामुखी आव जग जामण
संकट हरण महा सुर सामण॥1॥

धवळ गिरे सौधे धिणयाणी.
सिहलदीप हूंतां सूर राणी
कामरु देश कमख्य कहाणी
करि छोरु उपर किनीयाणी ॥2 […]

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