भुवनेशी कात्यायनी स्तुति का भावानुवाद
भुवनेशी कतियांण री, कविता कथवा काज।
आखर दीजो ओपता, मेहाई महराज।।६३३
भजां मात भुवनेश्वरी, मुकुट चन्द्र सुभ साज।
तनें नमन मां त्रंबका, मेहाई महराज।।६३४
मंद मंद मुख हास ;कर, पाशांकुश वरदा ज।
अभयप्रदा, सोहत उमा, मेहाई महराज।।६३५
देव तवन नित दाखता, गद गद कँठ सूं राज।
किनियाणी करूणाकरा, मेहाई महराज।।६३६[…]