म्है देता कै लेता ?

मेवाड़ रै महाराणा जगतसिंह जी रै भरियै दरबार में आय खारोड़ा (अमरकोट, सिंध) रा चारण नेतसी देथा अर खेतसी देथा महाराणा नैं मुजरो कियो अर अरज करी कै ‘म्हें तीन घोड़ा लाया हां।’ दरबार पूगतो सम्मान देय आपरै राजकवि रै समरूप सम्मानित खेमसूरजी सौदा सूं ओल़खाण कराई। खेमसूरजी मेवाड़ रै महाराणा रा मानीता कवि। हाथ में स्वर्ण जड़ित चुटियो राखै। कोई पण चारण उणांं सूं जंवारड़ा करण नैं हाथ आगो करतो तो खेमसूरजी आपरा हाथ नीं मिलाय र आपरी चुटियो उण चारण रै हाथ सूं लगायर आपरो मोटापणो दरसावता, अर चारण ई महाराणा रा मानैतड़ अर मोटा मिनख मानर आपरा हाथ चुटियै रै लगायर जंवारड़ां रो संतोष मानता।[…]

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मुरधर नगर मथाण

पहर एक परभात रा, अमर रुकूंली आण।
पण पूरै परमेसरी, मुरधर नगर मथाण।।1
आई राखै आजतक, मह वचनां रो माण।
पहर राजै प्रभात री मुरधर नगर मथाण।।2
मोटो कीधो मेहजा, पात परै रख पाण।
इल़ साखी अमरेस री, मुरधर नगर मथाण।।3
चाखड़ियां निज चावसूं, जगतँब राखी जाण।
साजै ज्यांरी सेवना, मुरधर नगर मथाण।।4[…]

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गीत सूंधा माता रो – दल़पत बारठ

स्वंय पिडं ब्रहमंड भुज डंड ईकवु सस,
दयतां डंड प्रचण्ड दाता।
सकल़ विहमंड चंड कुण कर सकै,
मंड ज्यां मंडी चामण्ड माता।।
आठ सिध थापणी थाल़ आसाएवां,
आपणी माल नवनिध अनूंधा।
रिधव रूक दे मूंघा न व्है रायहर,
सकत सूंधा तणी राय सूंधा।।[…]

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ગરબો-ખોડિયાર રમવા ને આવે-કવિ આપા ભાઈ કાળા ભાઈ બાળદા

કોઇ તાતણીયા ધરાથી તેડાવો મારી બેનુરે….
ખોડીયાર રમવા આવે…
કોઈ માટેલ જઇને મનાવો મારી બેનુ રે..
ખોડીયાર રમવા આવે…ટેક

હા…આસોના ઉજળા આવ્યા છે નોરતા મનડે કોડ નથી માતો..
માં ના તેહવારનો મહિમા છે મોટો સૃષ્ટીમાં નથી સમાતો..
હવે સૃષ્ટીની શોભા વધારો મારી બેનુ રે..
ખોડીયાર રમાવા આવે…[…]

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इश-महिमा-सवैया – कवियत्रि भक्तिमति समान बाई

।।सवैया।।
शत्रुन के घर सेन करो समसान के बीच लगाय ले डेरो।
मत्त गयंदन छेह करो भल पन्नग के घर में कर गेरो।
सिंह हकारि के धीर धरो नृप सम्मुख बादि के न्याय नमेरो।
जानकीनाथ सहाय करे तब कौन बिगार करे नर तेरो।।१

खग्ग उनग्गन बीच कढौ गिरी झांप गिरौ किन कूप अँधेरो।
ज्वाल करालन मध्य परो चढती सरिता पग ठेलि के गेरो।
राम सिया उर में धरि के प्रहलाद की साखि ते चित्त सकेरो।
जानकीनाथ सहाय करे तब, कौन बिगार सके नर तेरो।।२[…]

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घनश्याम मिले तो बताओ हमें -कवियत्रि भक्तिमति समान बाई

ऐसे घनस्याम सुजान पीया, कछु तो हम चिन्ह बतावें तुम्हें।
सखि पूछ रही बन बेलन ते घनश्याम मिलै तो बताओ हमें।।टेर।।

मनि मानिक मोर के पंखन में, जुरे नील जराव मुकट्टन में।
जुग कुण्डल भानु की ज्योति हरै, उरझाय रही अलके उनमें।
उन भाल पे केसर खौरि लसे रवि रेख दीपै मनु प्रात समै।
सखि पूछ रही बन बेलन ते घनश्याम मिलै तो बताओ हमें।।१[…]

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welcome -2000

साहिर लुधियानवी मेरे पसंदीदा शायर है। उनकी एक रचना की एक पंक्ति को आधार बनाकर मैंने भी एक नज्म लिखी थी। welcome 2000 इक्कीसवी सदी के स्वागत हेतु। साहिर की पंक्ति थी – “आओ कि कोई ख्वाब बुनें कल के वासते” उस पंक्ति के बाद की कल्पना मेरी है।

🌺welcome -2000🌺

आओ कि कोई ख्वाब बुनें कल के वासते,
क्योंकि हमारा कल ही आने वाला आज है।
हर आने वाला लमहा जो सपनों में पला हो,
ऐसे हसींन पल का निराला अंदाज है।
आओ कि कोई ख्वाब बुनें कल के वासते।[…]

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सिंधु-सौरभ – डॉ. शक्तिदान कविया

।।दूहा।।

दीवै सूं थांनक दिपै, पुसप सुगंध प्रमाण।
मोती ज्यूं दरियाव मझ, सिंध में त्यूं सोढाण।।1।।

पाळ धरम रण पौढियौ, खळ दळ जूंझे ख़ास।
सिंध में दाहिरसेन रौ, अमर हुवौ इतिहास।।2।।

धरा सिंध अवतार धिन, लीनौ झूलेलाल ।
चावौ ‘चेटी चंड’ रौ, सुभ उच्छब हर साल।।3।।

सिंधी भगतां में सिरै, राजै टेऊराम।
प्रेम प्रकासी सत्पुरुष, निकस्यौ चहुं दिस नाम।।4।।

साहू जांमां जमर सज, दोखी कर दहवाट।
हड़वेची बेहूं हमें, धर पूजीजै धाट।।5।।[…]

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मालण माताजी रा त्रिभंगी छंद – कवि डा. शक्तिदान कविया

।।दोहा।।
देवी दूलाईह, सुरराई शगत्यां शिरै।
मालण मंहमाईह, वसै विराई विसहथ।।

।।छंद – त्रिभंगी।।
देवी दूलाई, अंबे आई, परचां छाई प्रभुताई।
पावक प्रजाळाई, उठर आई, पग अरुणाई, प्रगटाई।
बाळापण बाई अम्ब उपाई पुनि पलटाई नींब प्रथी।
मालण महामाई, सदा सहाई, है सुरराई विशहथी।
जिय है वरदाई विशहथी॥1॥
टीकम टणकाई सुजस सवाई पह परणाई तिण पुलही।
गायां घेराई सिंध सराई वाहर धाई बिलकुल ही।
कव जीत कराई हुतब हलाई जमदढ खाई गळै जथी।
मालण महमाई सदा सहाई है सुरराई वीसहथी।
जिय है वरदाई वीसहथी॥2॥[…]

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परंपरा-पच्चीसी

चारणां में रतनू चावी जात है, जिणरो उद्गम पुष्करणां बांमणां री पुरोहित शाखा सूं होयो। तरणोट रै राजकुमार देवराजजी नैं बिखमी में शरण देवण अर उणांरै भेल़ै भोजन करण सूं बामणां रतनैजी नै त्याग दिया। कालांतर में देवराजजी शासन थापियो जद रतनैजी नैं आपरा मोटा भाई मान अणहद सम्मान दियो। चारण बणाय आपरा पोल बारहठ बणाया। इणी रतनैजी री संतति चारणां में रतनू चारण है। रतनैजी रै पिताजी वासुदेवायतजी सूं लेयर फगत म्हारै (गिरधर दान रतनू दासोड़ी) वडेरां रो अर म्हारै तक रो प्रमाणिक विवरण आप तक पूगाय रैयो हूं। लंबी कविता भेजण सारु आंगूच माफी।

।।परंपरा-पच्चीसी।।
वीसोतर चारण वसू, विद्याधर विदवान।
ज्यां में रतनू जात इक, रसा गुजर रजथान।।1
सामधरमी सतवादिया, दिपिया के दातार।
भगत केक धरती भया, जबर कई जोधार।।2[…]

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