श्री आवड़ माँ का गीत गग्घर निसांणी – श्री सालुजी कविया गांव बिराई

।।गग्घर निसांणी।।
आवड़ मढ अच्छं, विमल विरच्छं, मिल मंजर महकन्दा हैं।
तरवर शुभ सज्जं, फरहर धज्जं, दीपक थान दिपन्दा हैं।
प्रतमा गह पूरं, चड़त सिन्दुरं, सुचंगे पाटम्बर ओपन्दा हैं।
कुण्डळ करणालं, रूप रसालं, जगमग ज्योत जगन्दा हैं।।१।।

हिंगळ गलहारं, मणि मुक्तारं, कण माणक भळकन्दा हैं।
कंचन चुड़ालं, वीस भुजालं, खाग त्रिसूल खिवन्दा हैं।
खेतल मिल खेला, संग सचेला, प्याला मद पीवन्दा हैं।
खप्पर खल खाणं, पल रगताणं, जोगण दळ जीमन्दा हैं।।२।।[…]

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देवी अंबाजी की स्तुति – छंद त्रिभंगी – शंकर दानजी जेठी दानजी देथा(लींबडी)

।।छंद – त्रिभंगी।।
जय जगरायाजी, महामायाजी, शुचिकायाजी, छायाजी।
होवे शिशु पाजी, तउ क्षमाजी, कर तुं हाजी, हा हाजी।
प्रीति नित ताजी, नह इतराजी, वाह माताजी, वाह वाहजी।
रह राजी राजी, हमपर माजी, अजा ऊमाजी, अंबाजी।।1

धवळांबर धरणी, उजळ वरणी, शंकर घरणी, शं करणी।
निज जन निरझरणी, रक्षा करणी, अशरण शरणी, अघ हरणी।
वासी गिरिवरनी, शिव सहचरणी, हिम भूधरनी दुहिताजी।
रह राजी राजी, हमपर माजी, अजा ऊमाजी, अंबाजी।।2।।[…]

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🌷रांगड़ रँग रै तो रघुवीर!!🌷

🌷गीत वेलियो🌷
किण सू हुई नह हुवै ना किणसूं,
हिवविध राम तिहारी होड!
कीधा काम अनोखा कितरा,
छिति पर गरब उरां सूं छोड!!1

बाल़पणै दाणव दल़ वन में,
रखिया कुशल़ सकल़ रिखिराज।
कातर नरां अभै भल कीधा,
सधरै धनुस करां में साज।।2[…]

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जोगण चाळकनेच जयो – महादान महडू

।।छन्द – रूप मुकून्द।।
शुभभाळक देव संभाळक सेवक झाळ बंबाळक रोख झड़े।
विकराळक सिंह चढे बिरदाळक खेतरवाळक अग्र खड़े।
चख नख सरूप रचे चिरताळक दानव गाळक शंभु दयो।
प्रतपाळक बाळक रोग प्रजाळक जोगण चाळकनेच जयो।।१।।

रणताळक झाळ शत्रां सिर राळक के महिपाळक सेव करे।
चमराळक शीश ढुळाळक चौसठ तेज ऊजाळक भांण तरे।
अकड़ाळक थाट लग ओपत थाट थड़ांलग जांण थयो।
प्रतपाळक बाळक रोग प्रजाळक जोगण चाळकनेच जयो।।२।।[…]

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આઈ કામબાઈ (आई कामबाई) – ઝવેરચંદભાઈ મેઘાણી

જાંબુડા ગામના ચારણો ઘોડાની સોદાગરી કરતા આઠ મહિના દેશાવર ખેડી ખેડી ચોમાસુ ઘરને આંગણે ગાળતા. કંકુવરણી ચારણિયાણીઓ દુઝાણાં વાઝાણાં રાખીને ઘરનો વહેવાર ચલાવતી, ઉનાળાની શીળી રાતે રોજ રાસડે ઘૂમતી અને ગામનાં, ગામધણીનાં, રામનાં ને સીતાનાં ગીતો ગાતી કે- જામ! તારું જાંબુડું રળિયામણું રે પરણે સીતા ને શ્રી રામ આવે રાઘવ કુળની જાન. – જામ. પ્રભાતનો પહોર ઉગમણી દિશામાં કંકુડાં વેરે છે. જાંબુડા ગામની સીમ જાણે સોને ભરી છે. તે ટાણે કામબાઈ નામની જુવાન ચારણી કૂવાકાંઠે બેડું ભરે છે. કાળી કામળીમાં ગોરું મોં ખીલી રહ્યું છે. ઉજાગરે રાતી આંખો હીંગળેભરી ભાસે છે. એની આંખો તો રોજની એવી રાતીચોળ રહેતી: લોક કહેતા […]

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रंग रे दोहा रंग – जोगमाया को रंग

शक्ति की भक्ति का पर्व चैत्र नवरात्र अपने चरमपर है। और अभी अभी ही फागुन और बसंत बीता है। लगता है फागुन के पलाश का रंग हमारे तन मन से अभी उतरने का नाम ही नहीं ले रहा है। जैसा कि पहले ही बता चुका हूं। राजस्थानी दोहा साहित्य में रंग के दोहों की एक भव्य परंपरा रही है। यह परंपरा आज भी आप किसी सुदूर थली थार के रेगिस्तान में गांव, चौपाल, ढाणी आदि के सुबह सुबह के मेल मिलाप (रेयाण)आदि में आप को ढूंढने पर जरूर दिखाई पडेगी।[…]

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