पांडव यशेन्दु चन्द्रिका – अष्टम मयूख

अष्टम मयूख उद्योगपर्व (पूर्वार्द्ध) छंद पद्धरी बैराटसुता उतरा बिबाह, अभिमन किय करग्रह जुत उछाह। बिच सभा प्रात सब नृप पधारि, वसुदेव तनय को सुनि विचारि।।१।। शिष्टासन बैठे नृप सधीर, वैराट द्रुपद वपुवृद्ध बीर। तिनह अग्र युधिष्ठिर बासुदेव, भीमादिक तिन्हके अग्र भेव।।२।। वैशंपायन मुनि कहने लगे कि हे राजा जन्मेजय! विराटराज की पुत्री उत्तरा के विवाह में अभिमन्यू ने उत्साह पूर्वक पाणिग्रहण किया। श्री कृष्ण के विचार सुनकर सवेरे सभी राजा राजसभा में आए। इनमें वयोवृद्ध वीर विराटराज और द्रुपदराज धैर्यपूर्वक श्रेष्ठ आसन पर बैठे और उनके पास ही श्री कृष्ण एवं युधिष्ठिर ने आसन ग्रहण किया। उनके पास ही अग्रिम […]

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पांडव यशेन्दु चन्द्रिका – सप्तम मयूख

सप्तम मयूख विराट पर्व कृपापात्र इंद्रसेन से युधिष्ठिर उवाच दोहा जित पूछे तित कहहु तुम, गये सु विपिन विहार। पांच हु द्रुपदकुमारि जुत, बहुरि न पाई सार।।१।। वैशंपायन ऋषि कहते हैं कि हे राजा जन्मेजय! पाण्डवों को जब वनवास में बारह वर्ष पूरे हो गए तो उन्होंने गुप्तवास (अज्ञात वास) में जाने का विचार कर अपने कृपापात्र (सारथी) इन्द्रसेन को अश्व-रथादि के साथ द्वारिका की ओर रवाना किया और कहने लगे कि हे इन्द्रसेन! यदि तुम्हें राह में अथवा कहीं भी कोई हमारे लिए पूछे तो यही कहना कि द्रौपदी सहित पांचों भाई बन विहार को गए थे और उसके […]

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पांडव यशेन्दु चन्द्रिका – षष्टम मयूख

षष्ठम मयूख वन पर्व जन्मेजय उवाच दोहा कैसे वन में गमन किय, धर्मराज युत भ्रात। कैसे निकरे विपत दिन, गुप्त रहे कस तात।।१।। राजा जन्मेजय पूछते हैं कि हे वैशंपायन मुनि! भाइयों सहित धर्मराज ने वन गमन कैसे किया? इस विपत्ति के कठिन दिन कैसे काटे? और वे अज्ञातवास में गुप्त रीति से कैसे रहे? यह पूरा वृतान्त सुनाइये। वैशंपायन उवाच पद्धरी छंद कुरु राज बिपिन दिशि गमन कीन, उठि चले गैल पुरजन अधीन। सबको करि धर्म जु समाधान, वोहोराय दिये कहि बिबिध बान।।२।। रिषि रहे गैल छांडे न संग, नृप भयो सचिंता दुखित अंग। क्यों बनै सबन को भरन […]

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पांडव यशेन्दु चन्द्रिका – पंचम मयूख

पंचम मयूख सभा पर्व वैशंपायन उवाच दोहा मयदानव नृप धर्म की, नीके आयस पाय। सभा चतुर्दश मास में, रचिकै दई बताय।।१।। ता रक्षक अँतरिक्षचर, राक्षस अष्ट हजार। दस हजार कर मध्य तैं, चारों तरफ प्रचार।।२।। वैशंपायन मुनि कहने लगे कि हे राजा जन्मेजय! सुनो मयदानव ने राजा युधिष्ठिर से आज्ञा ले कर चौदह महिनों में (विपरीत) सभा का निर्माण कर दिखाया। जिसकी रक्षा का भार आकाश में उड़ने वाले आठ हजार राक्षसों पर था। इस सभा का चारों ओर का विस्तार दस हजार हाथ (गज का नाप) था। सभा रचना पद्धरी छंद नानात्व जलाशय विटप तत्र, चहुँ खान जीव साक्षात […]

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पांडव यशेन्दु चन्द्रिका – चतुर्थ मयूख

चतुर्थ मयूख महाभारत कथा प्रारंभ आदिपर्व विचित्रवीर्य वंशकारक और भारत ग्रंथकारक श्री वेदव्यासोत्पत्ति पद्धरी छंद भो मद्रकेत गंधर्वराज, अद्रिका त्रिया शोभा समाज। तिहि रिषि सराप झख जोनि पाय, उद्धार ऋषिहि दीनो बताय।।१।। कोउ मनुज वीर्य भजि पुत्रि होय, दंपत्ति निज गति तुम लहहु दोय।। एक मद्रकेत नामक गंधर्वों का राजा हुआ, और समाज की शोभा रूप आद्रिका नाम की स्त्री थी। उसे किसी ऋषि का श्राप था जिससे वह मछली की योनि में थी। शाप के वक्त, अनुग्रह की याचना में स्तुति करने पर, मुनियों ने उसे उद्धार का रास्ता बताया कि यदि किसी पुरुष के वीर्य के सेवन से […]

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पांडव यशेन्दु चन्द्रिका – तृतीय मयूख

तृतीय मयूख अलंकार तथा रस प्रकरण अलंकार-सूची दोहा वसु अयन विधु सर्व हैं, भेद गिनै बहु होय। अति व्याप्ति के दोष तैं, चौरासी मुख जोय।।१।। वसु-आठ, अयन-दो, विधु-एक इन अंकों से बनने वाली संख्या को उलटने पर बनी (१२८) । एक सौ अठाईस अलंकार होते हैं फिर आगे प्रत्येक भेद गिनने से यह संख्या बढ़ जाती है। अति व्याप्तता दोष से बचते हुए कहें तो (८४) चोरासी अलंकार होते हैं (अति-व्याप्ति का खुलासा आगे देखें) जाने जात जु शब्द तैं, काम परै बहु ठौर। अलंकार मुखि कहत हौं, ग्रंथ बढ़ै विधि और।।२।। जो शब्दोच्चार से जाने जाते हैं, और बहुत […]

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समानबाई के सवैया

करसै है कमान अहेरिय कान लौं,
बान तैं प्रान निकालन में हैं।
दरसै गुस्सै भर्यो स्वान घुसै,
झुरसै तन तो जगि ज्वालन में हैं।
तरसै दृग नग पै ढिग तो,
मृगी लगी लौ लघु लालन में हैं।
बरसै अँखियां दुखियाँ अति मो,
सरसै सुख स्वामि सम्हालन में हैं।।[…]

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पांडव यशेन्दु चन्द्रिका – द्वितीय मयूख

द्वितीय मयूख छंद प्रकरण दोहा ना गायो जग-मीत कौं, साहित जुत संगीत। श्रूपदास जिनके न द्वै, पूंछ रु स्रंग पुनीत।।१।। जगत-बंधु (जगत का भला करने वाले) भगवान का साहित्य एवं संगीत युक्त जिसने गुणगान नहीं किया, उनके लिए कवि स्वरूपदास कहता है कि ऐसे मनुष्य, बिना पूंछ और स्रंग के नर-पशु हैं। ऐसे लोगों से तो पूंछधारी प्राणी उत्तम हैं (यह पुनीत शब्द कहने का अभिप्राय है) छंद अलंकृत रसन को, करौं सूचिका पत्र। बहु व्यापक सामान्य पख, आदिहि वर्नन अत्र।।२।। कवि कहता है कि मैं छंद, और रसों का मात्र सूचीपत्र रच रहा हूँ। कारण कि छंद-अलंकारादि अन्य ग्रंथों […]

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पांडव यशेन्दु चन्द्रिका – प्रथम मयूख

प्रथम मयूख मंगलाचरण छंद – अनुष्टुप् गुणालंकारिणो वीरौ, धनुष्तोत्र विधारिणौ। भू भार हारिणौ वन्दे, नर नारायणो उभौ।।१।। उत्तम गुणों से विभूषित, धनुष एवं चाबुक को धारण करने वाले तथा पृथ्वी के भार को हरने वाले, नर-नारायण इन दोनों वीरों (अर्जुन एवं कृष्ण) का मैं वन्दन करता हूँ। दोहा ध्यान-कीरतन-वंदना, त्रिविध मंगलाचर्न। प्रथम अनुष्टुप बीच सो, भये त्रिधा शुभ कर्न।।२।। ध्यान, कीर्तन एवं वन्दना ये तीन प्रकार के मंगलाचरण हैं। प्रथम अनुष्टुप छंद में मंगल करने वालों का तीनों प्रकार से मंगलाचरण किया गया है-यथा त्रिविध पृथक्करण :- १. धनुष्तोत्र धारण करने वाले रूप-स्वरूप का वर्णन अर्थात् ‘ध्यान’ पूर्वक मंगलचरण है। […]

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पांडव यशेन्दु चन्द्रिका – स्वामी स्वरुपदास

मंगलाचरण

छंद – अनुष्टुप्
गुणालंकारिणो वीरौ, धनुष्तोत्र विधारिणौ।
भू भार हारिणौ वन्दे, नर नारायणो उभौ।।१।।
दोहा
ध्यान-कीरतन-वंदना, त्रिविध मंगलाचर्न।
प्रथम अनुष्टुप बीच सो, भये त्रिधा शुभ कर्न।।२।।
नमो अनंत ब्रह्मांड के, सुर भूपति के भूप।
पांडव यशेंदु चंद्रिका, बरनत दास स्वरूप।।३।।[…]

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