Month: February 2020
थथूंबा ई आवै है निगै

सरणाटां रो शंखनाद
हांफल़िया
कदै सुणै मिनख?
सूनोड़ी सड़कां
रात भर रूनोड़ी
धरती रै
आंसुवां भीनोड़ी
हांफल़िया
कदै सुणै मिनख?
सूनोड़ी सड़कां
रात भर रूनोड़ी
धरती रै
आंसुवां भीनोड़ी
मिनखाचार मिल़ै तो भाई!

परख पारखू
बिनां फरक रै
तरकां वाल़ा तीर न्हांख नै
भेल़प वाल़ी
कथा बांचतो
मेल़प वाल़ी
रमत मांडतो[…]
बिनां फरक रै
तरकां वाल़ा तीर न्हांख नै
भेल़प वाल़ी
कथा बांचतो
मेल़प वाल़ी
रमत मांडतो[…]
झूंपड़ियां मिटा मोथाई

हंसवाहणी थारो मंदर
अंदर अंतस म्हारै
जठै आरती
जुगत जोड़ सूं
उगत आखरां
भल़हल़ भावां
छंद चढावां
सबरस जोतां
अंदर अंतस म्हारै
जठै आरती
जुगत जोड़ सूं
उगत आखरां
भल़हल़ भावां
छंद चढावां
सबरस जोतां
युगचेतना का प्रतिबिंब है डिंगल काव्य

राजस्थान में सांस्कृतिक चेतना व साहित्यिक संपदा को संरक्षित व संवर्धित करने में डिंगल काव्यधारा का महनीय अवदान रहा है। लेकिन प्रायः हम यह सुनते आए हैं कि डिंगल कवियों की रचनाओं में युगबोध अथवा समकालीन सोच नहीं होता है। यही नहीं इन कवियों की रचनाओं में संवेदनाओं की शुन्यता व आम आदमी की व्यथा कथा का नामोनिशान ही नहीं है। आरोपण करने वालों का कहना है कि यह काव्य केवल सामंती सोच का पक्षधर व स्तुतिपरक रचनाओं की बहुलता वाला है। यह सभी आरोप एकपक्षीय व पूर्वाग्रहों से परिपूर्ण है।[…]
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