गीता रौ राजस्थानी में भावानुवाद-अठारहवौ अध्याय

अठारहवौ अध्याय – मोक्षसंन्यासयोगः ।।श्लोक।। सन्न्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम्। त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन।।१।। ।।चौपाई।। हे ताकतवर! अन्तर्यामी! विघन हरण करवाळा स्वामी। न्यारा न्यारा तत्व गिणाऔ मम सन्यास’र त्याग बताओ।।१।। ।।भावार्थ।। अर्जुन कैवै हे महाबाहौ!(ताकतवर, सामर्थ्य वान), हे अन्तर्यामी!, हे!विघन नै दूर करण वाळा वासु देव म्हैं सन्यास अर त्याग रा न्यारा न्यारा तत्व जाणणी चाहूं हूँ। ।।श्लोक।। काम्यानां कर्मणां न्यासं सन्न्यासं कवयो विंदु:। सर्वकर्मफलत्यागं प्राहुस्त्यागं विचक्षणा:।।२।। ।।चौपाई।। काम्य कर्म रु त्याग व्है रासा गिणै गुणी इण ने सन्यासा। सर्व कर्म फल तज गिण त्यागा केइ विद्व इण मत रा लागा।।२।। ।।भावार्थ।। भगवान् श्रीकृष्ण कैवै-कितरा ई पण्डित जन तौ काम्य कर्मां […]

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