24 अक्टूबर 1995 का सूर्यग्रहण – पुष्पेंद्र जुगतावत वणसूर

डिंगल में नवाचार

।।गीत – प्रहास साणोर।।

विगत रयो रूढीपणा तणे वड ग्रासगत,
मिळी हिंदवांण नै आज मुगती।
वरण विग्यान रौ चहुंदिश वापर्यौ,
संचरी रिवगरण रूप सगती।।1

अलौकिक रूप पेखवा अंतरीख रौ,
मिनख मनमोद सूं हुवा माता।
वोझ थी अंधविश्वास वीसारियौ,
खोज विग्यान पग किया खाता।।2

निराळा खेल परकत रमैं नितनवा,
दीह ससहर धरा धार दड़ियां।
मुग्ध म्रितलोक निरखवै मिळ मांनवी,
घणी मनरंजणी जकी घड़ियां।।3

आपरी राह नित करै आवागमन,
सीध इक होय सिरजवै रासा।
पड़ै जद एक री छिंया बीजे परां,
तद बणै गरण वाळा तमासा।।4

अमावस कातकी तणो दिन ऊगियौ,
उगीनौ चंदरमा आयौ आडौ।
प्रबळ परताप आदीत रौ लोपियौ,
ठाठ प्रथमी तणौ हुवौ ठाडौ।।5

अंस अरधांस खग्रास री अवस्था,
वैम जग चराचर जीव व्यापै।
दीसियौ रैण रौ रूप धोळै दिवस,
पेख नर बावळा केम धापै।।6

केणविध उणवखत तणौ वरणण करूं,
मूंदड़ी रच महापुरुष धांमी।
परम परकत धरी हाथ में प्रेमथी,
हेत री लाजती भरी हांमी।।7

वडौ ऊछाव तद हुवौ ब्रमांडमें,
लोक हुय मुग्ध निरखवा लागा।
शून्य में कियौ सिणगार परकत सघन,
भरम पदमण तणा ओथ भागा।।8

एहड़ी चमक थर मूंदड़ी अणूती,
अगिण हीरां तणी ओप पावै।
सकळ तिंहुलोक री सांवठी संपदा,
धकै तिणरै पड़ी धूड़ खावै।।9

सिरजणा पूर्ण साकार हुयगी सही,
ओsम रौ अहं में हुवौ वासौ।
भेद जाती धरम तणा नर भूलग्या,
प्रेम रौ वापर्यौ इसौ पासौ।।10

‘पुष्प’ सूरजगरण तणी परतीतरौ,
दाखणौ रूप हदभांत दोरौ।
कूड़रौ साथ आखै मुलक मूकियौ,
साच रै संग सूं हुवौ सोरौ।।11

~~पुष्पेंद्र जुगतावत वणसूर

Loading

One comment

  • पुष्पेंद्र जुगतावत वणसूर

    मैं अभिभूत हूं। आभार। आशा करता हूं कि डिंगल के नव सर्जकों को इससे प्रेरणा मिलेगी।