🌷रांगड़ रँग रै तो रघुवीर!!🌷

🌷गीत वेलियो🌷
किण सू हुई नह हुवै ना किणसूं,
हिवविध राम तिहारी होड!
कीधा काम अनोखा कितरा,
छिति पर गरब उरां सूं छोड!!1

बाल़पणै दाणव दल़ वन में,
रखिया कुशल़ सकल़ रिखिराज।
कातर नरां अभै भल कीधा,
सधरै धनुस करां में साज।।2[…]

» Read more

वीरां माऊ वंदना

सिरुवै जैसल़मेर रा रतनू हरपाल़जी समरथदानजी रा आपरी बगत रा स्वाभिमानी अर साहसी पुरस हा। इणां री शादी रतनुवां रा बही राव, रावजी पूनमदान नरसिंहदानजी बिराई रै मुजब गांम सींथल़ रा बीठू किशोरजी डूंगरदानजी रां री बेटी वीरां बाई साथै होई।

जद जैसलमेर रा तत्कालीन महारावल़ जसवंतसिहजी (1759-1764वि)अर भाटी तेजमालजी रामसिंहोत रै बीच अदावदी बढी उण बगत हरपालजी ई भाटी तेजमालजी रै साथै हा। महारावल़ अर भाटी तेजमालजी रै बिचाल़ै हाबूर री गेह तल़ाई माथै लड़ाई होई उण बगत भाटी तेजमालजी संजोगवश निहत्था सो वीरगति(1763वि.बैसाग 8)नै पाई। (संदर्भ जैसलमेर भाटी शासक उनके पूर्वज एवं वंशजों का क्रमबद्ध स्वर्णिम इतिहास-गोपाल सिंह भाटी तेजमालता) महारावल़ उणां री पार्थिव देह नै अग्नि समर्पित करण सूं सबां नै मना कर दिया। उण बगत रतनू हरपालजी हाबूर ऊनड़ां साथै मिल़र महारावल़ री गिनर करियां बिनां दाग दियो-

झीबां पाव झकोल़िया, उडर हूवा अलग्ग।
पह रतनू हरपाल़ रा, प्रतन छूटा पग्ग।।[…]

» Read more

गीत तेमड़ाराय रो

।।गीत-प्रहास साणोर।।
करां झूल़ तिरशूल़ ले चढै तूं केसरी,
लेसरी नहीं अब ढील लाजै।
हेर सत सेवगां सीर हरमेसरी
ईसरी नेसरी भीर आजै।।1

भगत रा देख नित मनां रा भावड़ा,
तावड़ा, छांह कर तुंही टाल़ै।
मदत तैं आजलग करी नित मावड़ा,
पेख मग आवड़ा बो ई पाल़ै।।2[…]

» Read more

गीत झिणकलीराय शीलां माऊ रो

।।गीत प्रहास साणोर।।
तूं शंकर रै सदन अवतार ले शंकरी,
पखो नित धार रखवाऴ पातां।
जगत में जाण जयकार मुख जापियो,
साच सुख सार ज्यां दियो सातां।।1

ताकड़ी बहै इम केहरी ताणवां,
सिमरियां भाणवां साय शीलां।
पाणवां शूऴ धर रचै हद प्रवाड़ा,
हाणवां उपाड़ै हियै हीलां।।2[…]

» Read more

म्हांरै जीवतां डंड भरावै! उणां री भुजां में गाढ चाहीजै!!

भारत रै इतिहास अर विशेषकर राजस्थान रै इतियास में चहुवांणां रो नाम ऊजल़ो। गोगदेव, अचल़ेश्वर पृथ्वीराज, कान्हड़देव, वीरमदेव, मालदेव बणवीर, हम्मीर, कान्हो डूंगरोत, सांवल़दास-करमसी जैड़ा अनेक सपूत चावा रैया है। किणी कवि कैयो है-

गोकल़ीनाथ जग जापिये, कान्हड़दे मालम करै।
ए राव सुखत्री ऊपना, चवां वंश चहुवांण रै।।

चहुवांणां री एक शाखा ‘वागड़िया चहुवांण’। इण शाखा में मुंधपाल मोटो मिनख होयो। इणी मुंधपाल री वंश परंपरा में बालो अर बालै रै डूंगरसी होयो। डूंगरसी, राणै सांगै रै मोटै सामंतां में शुमार। जिणरै बदनोर पटै। डूंगरसी कई जुद्धां में आपरी वीरता बताई।[…]

» Read more

खरी-खरी सुण ! महाराजा कोपग्या

महाराणा अमरसिंहजी रो बेटो भीम सिसोदिया आपरी बगत रो महावीर होयो। जिणनै राजा रो खिताब हो। शाहजादा खुर्रम कानी सूं लड़तां थकां समरांगण में आमेर जयसिंहजी अर जोधपुर गजसिंहजी (1676-1695) री संयुक्त सेना सूं जिण अदम्य साहस सूं मुकाबलो कियो बो इतियास रै पानां में अमिट है। भीम रै आपाण सूं डर र एक र तो दोनूं महाराजावां रा पग काचा पड़ग्या अर सेनावां में अफरातफरी मचगी। छेवट महाराजा गजसिंहजी रै हाथां ओ वीर वीरगति नै प्राप्त होयो। जद लोगां महाराणाजी नै भीम रै पौरस रै विषय में बतायो तो उणां रो काल़जो फूल र चवड़ो होयग्यो। उणां उठै उपस्थित आपरा खास मर्जीदान कवि (नाम याद नहीं) शायद दधवाड़िया जाति रा चारण हा नै भीम री वीरता विषयक गीत सुणावण रो कैयो। उणांरै गीत री छेहली ओल़ी ही – “पांडूं तणो पाड़ियो नीठ”
इण “पाड़ियो” सबद नैं सुण र उठै ई सभा में बैठा चुतरोजी मोतीसर आपरो माथो धूणियो।
जद महाराणा पूछियो कै “आप माथो कीकर धूणियो? कांई गीत में कोइ कमी रैयगी!”[…]

» Read more

पछै म्हारो बेटो होवण री ओल़ख क्यूं नीं दी!!

ढांढणियै रा लाल़स रामचंद्रजी उन्नीसवें सईकै रा नामचीन कवि। उणांरी घणी रचनावां चावी। जोगी जरणानाथजी रा छंद बेजोड़-

जोगी जग जरणा करुणा करणा,
इल़ नहीं मरणा अवतरणा!!

इणां री काव्य प्रतिभा अर वाक शक्ति सूं रीझ र नगर रावतजी – भेडाणा अर आंबल़ियाल़ी नामक दो गांम तो आकली अर अरणियाल़ी जैड़ा दो ई गा़म गुड़ै राणाजी साहिबखांनजी दिया। रामचंद्रजी आपरो परिवार लेय ढांढणिया सूं आकली बसग्या।
साहिबखांनजी मिनखपणै री आभा सूं मंडित अर उदारता रा प्रतीक पुरुष हा।
किणी कवि कैयो है-

धोबी कनै धुवाय, कईक नर गाहड़ करै।
मैली डगली मांय, सुजस तिहारो साहिबा।।

इणी कारण कवि रो गुड़ै राणाजी रै अठै ईज घणकरोक समय व्यतीत होवतो। इणसूं रावतजी नाराज रैता अर आ नाराजगी काढण सारू किणी मोकै री उडीक में हा।[…]

» Read more

🌷भँवर समोवड़ भांण!🌷

आद वरण री उतन आ, पुणां धरण पिछमांण।
सगत भगत घण सूरमा, उतपन किया अमांण।।1
अवनी आ आवड़ करी, पग रज मात पवीत।
रमी रास मन खास रँज, अहर निसा अघजीत।।2
आसकरण तिणराव उत, कुशललाभ कविराय।
सांगड़ रँगरेलो सिरै, ठावी कविता ठाय।।3
आसाणद ईसर अखां, सकव वडो हरसूर।
आणद करमाणद उठै, मही पात मसहूर।।4[…]

» Read more

गूदड़िया छोड अबै तो गैला

।।गीत-वेलियो।।
गूदड़िया छोड अबै तो गैला,
लोयण धार जरा सी लाज।
ऊगो अरक ऊंग तज आल़स,
कर रै चारण घर रो काज।।१

पूरी रात गमाई पीतां,
चूस्या गूडल़ घणेरै चाव।
पड़ियो मंझ रातरो प्रीतम,
दिनकर अब तो दियो दिठाव।।२[…]

» Read more

बस!करोड़ इता ई होवै!!

बारठ दूदाजी रै च्यार बेटा होया-महपोजी, चाहड़जी, थिरोजी अर अमरोजी। थिरोजी अर अमरोजी कविवर्य चांनणजी खिड़िया रा भाणेज हा। इणी थिरोजी रो तोगोजी अर तोगोजी रै बारठ शंकरदासजी अथवा बारठ शंकरजी होया।

शंकरजी प्रतिभा संपन्न अर प्रज्ञा पुरूष होया। उण दिनां बीकानेर माथै महाराजा रायसिंह जी रो राज। रायसिंहजी काव्य प्रेमी अर उदार मिनख हा। बारठ शंकर आपरी रचना “सूर दातार रो संमादो” जैड़ी छोटी पण भावां सूं उटीपी रचना लेयर रायसिंहजी रै अठै हाजिर होया अर रचना सुणाई-

तन वीजूझल़ पल़ समल़, सिव कमल़ हंस.हूर।
ऐता दीन्हां बाहिरो, मोख न पावै सूर।।
जल़ थल़ महियल़ पसु पँखी, सूर घणा ई होय।
दाता मानव बाहिरो, सुण्य़ो न दीठो कोय।।

महाराजा रायसिंहजी इण रचना सूं इता रीझिया कै हाथोहाथ आपरै दीवाण करमचंद बच्छावत नैं आदेश दियो कै कवि नै करोड़ पसाव कियो जावै! पण दीवाण सोचिय़ो कै दरबार नै एहसास करायो जावै कै करोड़ रुपिया कोई बापड़ा नीं होवै ! जिको इणविध कवितावां माथै लुटाया जावै![…]

» Read more
1 24 25 26 27 28 50