कीरत रै खातर कवि सूं कोरड़ा खाया

कवि अर कविता री कूंत रा मध्यकालीन उदाहरण आज ई बेजोड़ है। ऐड़ो ई एक उदाहरण है कणवाई रा ठाकुर खंगारसिंह लाडखानी अर मूंजासर रा बीठू उदयरामजी रो। उदयरामजी अमल रा जितरा मोटा बंधाणी। उतरा ई मोटा कवि। घण जोड़ै कवि रै रूप उदयरामजी री ख्याति चौताल़ै चावी। घूमता घूमता एकर कणवाई पूगा। कणवाई रा ठाकुर खंगारसिंह कविता रा कद्रदान अर कवियां रा गुणग्राहक। उदयरामजी ठिकाणै आयां ठाकुर साहब रो मन राजी होयो। जोरदार हथाई जची। इतिहास अर साहित्य री सरस चर्चा चाली। रात रा कवि विश्राम करण सोया। आधीक रात रा डोकरै रै होकै री बायड़ उठी। अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम। वाल़ी बात डोकरै रै आधी रात रो कुण होको भरै। हाजरिया जाय सूता। डोकरै सूतै-सूतै ई हाजरियै नैं हेलो कियो पण आधी रात रा नींद में गैल़ीजिया हाजरिया किणरी गिनर करै! उणां कवि नै कोई पूगतो जवाब नीं दियो। कवि रो हेलो रावल़ै पोढिया ठाकुर साहब रै कानां पड़ियो।[…]
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