जाट सिर झाट खागां

मध्यकालीन इतियास नै पढां तो व्यक्तिगत अहम पूर्ति अर व्यक्तिगत वैमनस्यता री बातां तो साची निगै आवै पण जिण जातिगत वैमनस्यता अर कटुता री बातां आजरै इतियासकारां लिखी है वै सायत घणीकरीक मनघड़त अर गोडां घड़्योड़ी लागै क्यूंकै जातिगत कटुता उण जुग में सायत नीं ही अर जे ही तो ई आजरै संदर्भ में जिको मनोमालिन्य है उवो जातियां में नीं हुय’र मिनखां में हो। भलांई उण दिन मिनख कमती हा पण मिनखाचार घणो हो। क्यूंकै उण जुग में ऐड़ा दाखला पढण में नीं रै बरोबर आवै। उण जुग में एक बीजै रै पेटे सनमान, अपणास समर्पण अर अपणास खोब-खोब’र भर्योड़ी ही।[…]

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आंखड़ियांह देखां पदम

बीकानेर रो इतियास पढां तो एक नाम आपांरै साम्हीं आवै जिको वीरता, अडरता, उदारता, री प्रतिमूरत निगै आवै। वो नाम है महाराज पदमसिंहजी रो। पदमसिंहजी जितरा वीर उतरा ई गंभीर तो उतरा ई लोकप्रिय। किणी कवि कह्यो है–

सेल त्रभागो झालियां, मूंछां वांकड़ियांह।
आंखड़ियांह देखां पदम, सुखयारथ घड़ियांह।।

पछै प्रश्न उठै कै इण त्रिवेणी संगम री साक्षात प्रतिमा मुगलां रै अधीन कै उणांरो हमगीर क्यूं रह्यो?[…]

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नर लेगो नवकोट रा

मारवाड़ रो इतियास पढां तो एक बात साम्हीं आवै कै मारवाड़ रा चांपावत सरदार सामधर्मी सबसूं ज्यादा रह्या तो विद्रोही पणो ई घणो राखियो यानी रीझ अर खीझ में समवड़। मारवाड़ में चांपावतां नै चख चांपा रै विरद सूं जाणीजै। जिणांनै कवियां आंख्यां री संज्ञा दी है तो बात साव साफ है कै उणां आंख्यां देखी माथै ई पतियारो कियो-
आंख्यां देखी परसराम, कबू न झूठी होय।  अर जठै हूती दीठी उठै राज रा सामधर्मी रह्या अर जठै अणहूती दीठी उठै निशंक राज रै खिलाफ तरवारां ताणण में संकोच नीं कियो।[…]

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जंबुक ऐ क्यूं जीविया?

रोटी चीकणी जीम लैणी पण बात चीकणी नीं कैणी री आखड़ी पाल़णिया केई कवेसर आपांरै अठै हुया है। आपां जिण बात री आज ई कल्पना नीं कर सकां, उवा बात उण कवेसरां उण निरंकुश शासकां नै सुणाई जिणां रो नाम ई केई बार लोग जीभ माथै लेवता ई शंक जावता।

ऐड़ो ई एक किस्सो है महाराजा जसवंतसिंहजी जोधपुर (प्रथम) रो।[…]

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युगचेतना का प्रतिबिंब है डिंगल काव्य

राजस्थान में सांस्कृतिक चेतना व साहित्यिक संपदा को संरक्षित व संवर्धित करने में डिंगल काव्यधारा का महनीय अवदान रहा है। लेकिन प्रायः हम यह सुनते आए हैं कि डिंगल कवियों की रचनाओं में युगबोध अथवा समकालीन सोच नहीं होता है। यही नहीं इन कवियों की रचनाओं में संवेदनाओं की शुन्यता व आम आदमी की व्यथा कथा का नामोनिशान ही नहीं है। आरोपण करने वालों का कहना है कि यह काव्य केवल सामंती सोच का पक्षधर व स्तुतिपरक रचनाओं की बहुलता वाला है। यह सभी आरोप एकपक्षीय व पूर्वाग्रहों से परिपूर्ण है।[…]

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