मोटी मरजादण मरुभाषा

सतियां रै सत री गाथावां
पतियां रै पत री घण बातां।
जतियां रै जंगी जूझारू
जीवण री जूनी अखियातां।।
संतां री वाणी सीख भरी
सूरां रा समर अनै साका।
वीरां वरदाई बड़भागण
मोटी मरजादण मरुभाषा।। […]

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गाँव बदळग्यो देख कोटड़ी

गाँव बदळग्यो देख कोटड़ी
छिण में छळग्यो देख कोटड़ी
जिणरै तप सूं जगत कांपतो
(वो) सूरज ढळग्यो देख कोटड़ी।
अम्बर अड़तो रोब अनूठो
पग उठग्यो सो पड़्यो न पूठो
मरजादा राखण मर मिटती
खुद्दारी रो तूं ही खूंटो। […]

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लहू से लिखने को मजबूर

पत्ती ने जिस दिन पौधे की जड़ को जड़ कह कर धमकाया।
फूलों ने खुद को पौधे का भाग्य विधाता बतलाया।
इठलाकर निज रूपरंग पर फुनगी ने डाली को टोका।
लहरों ने सागर से मिलने को आतुर नदिया को रोका।
सागर से यूं नदिया जब-जब, सहमी-सहमी दूर हुई है।
तब-तब मेरी कलम लहू से लिखने को मजबूर हुई है।। 01।।

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भलै काम रो अंत भलो – गीत सोहणो

||गीत सोहणो||

मनवा तूं दर पिछतावो मत कर
भलै काम रो अंत भलो
खूटल कर खोटा खुट जासी
चेत हेत री राह चलो
अंतस राख उसूल अटूटा
खुल़िया खूंटां मती खसै
अवसरवाद जाण मत आछो
धोल़ां नाही धूड़ धसै […]

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फेसबुक्क अर वाट्सअेप

फेसबुक्क अर वाट्सअेप रा फंडा अजब निराळा है।
वाह, चाह रै दो मिणियां री, आ वैजन्ती माळा है।
इण माळा रो इक-इक मिणियों, अणबींध्यो सो मोती हैं।
हर मोती री दिप-दिप करती, अेक जगामग ज्योती है।
ज्योती आ जगमगती जग में, अंधारै सूं आज अड़ी।
इणसूं अड़तां अंधारै री, जड़ ऊंडोड़ी उखड़ पड़ी। […]

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इसड़ी म्हारी राम कहाणी

खावण नै फगत उबास्यां है,
पीवण नै आंख्यां रो पाणी।
दुख जा दुख नै दुख सुणावै,
इसड़ी म्हारी राम-कहाणी।।

कूंपळ कूंपळ मगसी मगसी,
पत्तो पत्तो सूखो सूखो।
तितली तितली तिसी तिसी सी,
भंवरो भंवरो भूखो भूखो।।
कोयल री पांखां सा पाटा
आळां मंडराता सण्णाटा।
स्यात म्हारड़ै खातै लिख दी,
विधना जग री सकळ विराणी।। 01।।[…]

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क्रांतिवीर बारहठ केशरी सिंह

वक्त आने पर वतन पे वार दी जिसने जवानी।
और उसके खून में भी थी रवानी ही रवानी।।
बंधु के बलिदान की मां भारती खुद ले बलैयां।
क्रांतिकारी केसरी के त्याग की अद्भुत कहानी।।01।।[..]

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बदळाव

कांई फरक पड़ै कै राज कीं रो है ?
राजा कुण है अर ताज कीं रो है ?
फरक चाह्वो तो राज
नीं काज बदळो !
अर भळै काज रो आगाज
नै अंदाज बदळो !
फकत आगाज ‘र अंदाज ई नीं
उणरो परवाज बदळो !
आप – आप रा साज बदळो […]

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कैड़ी राफारोळ मची है

रचना जग री जबर रची है, बेमाता बेखबर पची है
इन्दर री आंख्या चकराई, सुंदर पोपां बणी सची है।
बाकी सगळा जाणबावळा, बाळ-बाळ बेमात बची है।
सामै ऊभो साच न सूझै, झांकै उण दिस कूड़ जची है।
इणरी उणनैं उणरी इणनैं, कैड़ी राफारोळ मची है।

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खाखी बोली खरी-खरी

करतां इज काम निकरमी बाजूं, करता मो पे गजब करी।
दिल रो दरद दुहेलो उझळ्यो, खाखी बोली खरी-खरी।।

अै नकटा, अै निपट निकरमा, अै गुँडा अै आदमखोर।
अै पापी, अै ढ़ोंगी पक्का, अै पाखंडी, नामी चोर।।
जग रै मूंढै आ जस गाथा, कहो किसी तपतीश करी।
रंज’र रीस टीस बण रड़कै, खाखी बोलै खरी-खरी।।

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