सुण कलम सांच बोल्यां सरसी

ओ बगत बायरो बतळावै
उणसूं अणजाण कियां बणसी।
जे भाण ऊगणो भूल्यो तो
सुण कलम साच बोल्यां सरसी।।
जण-जण रै मन में भय जब्बर
रण-रण त्रासां रणकार हुवै।
भण-भण अै लोग भला भटकै
खण-खण खोटी खणकार हुवै।।
देवां रै झालर झणकारां
रैयत रुणकारां दबी पड़ी।
फांफी फणगारा फळफूलै
ईमान धरम पर मार पड़ी।।
कण-कण धरती रो कांपै है
आभो किम धीरज अब धरसी।
मरजाद धरम नै राखण हित
सुण कलम साच बोल्यां सरसी।।01।।[…]