भोपा भंडण रो गीत

जुग चेतना रा प्रतीक कवि ऊमरदानजी लाल़स आपरी रचना ‘खोटै संतां रो खुलासो’ में लिखै –
तंडण कर कविता तणो, घालू चंडण घूब।
भंडण जोगै भेखरो, खंडण करणो खूब।।
ज्यूं ऊमरदानजी चादर रै मोर्चे में मौज माणणियै या चादर रै चिलकै में खिलको करणियै खोटै संतां नैं साच री आरसी बताई, इयां ई इण जुग रा सिरै कवि आसूदानजी माड़वा ‘भोपा भंडण’ में भोल़ी जनता नैं भरमाय जागा जागा भोमियां अर पितरां रा थान थपाय रोग नैं दोष बतावणियै भोपां रो जोरदार खंडण कियो है –
भोपा भंडण भाखऊं, खंडण मुख सूं खोल।
जुग नैं डंडण जोयलो, धूंपां मंडण ढोल।।
यूं तो भोपां रा अफंड आपनै लगै टगै सगल़ी जागा मिल़ेला पण आथूणै राजस्थान में इण ठगां री जमात री जितरी पूछ है, बा शायद ई दूसरी जागा मिल़ै! ज्यूं कै भंवरदानजी झिणकली आपरी रचना ‘बगत आयग्यो खोटो’ में सही ई लिखिय़ो है-
कारीगर बेगारां करता, घर में रैता घाटा।
दस कल़ंदर दैनगी देवै, चाय चिलम नैं चाटा।
धाप्यो नाढ देवता धोकै, आंगण ठांणो ओटो।
कातरचंद करवतजी कूकै, बगत आयग्यो खोटो।
कवि कितरी खारी पण खरी कैयी है कै नाढ कनै ज्यूं ई पईसा आवैलो बो आपरै किणी न किणी मृत प्रिय रो थान आपरै घरै थपावैलो! भलांई बो कदै ई अर किणी भी हालत में सुरग नैं प्राप्त होयो होवै ! जैड़ो कै म्है एक जागा लिखियो –
कालै मरिया खुरा रगड़ता!
आज भोमिया उगड़्या देखो!
इण भोपां अर भोपियां रा काल़ा कारनामा म्हनै ई देखण नैं मिल़िया। अपढ अर गरीब जनता सूं बकरा अर दारू आपरी ठगाई रै पाण म्है ई इणां नैं खावता देखिया हूं। हालांकि म्है खुद नीं तो ऐड़ै ठगां नैं मानिया अर नीं कदै ई किणी सैण नैं इणां रै कुड़कै में फसण री सलाह दी। जद म्है, म्हारै अग्रज कवियां नैं पढिया तो म्हारै ई जची कै इण भोल़ी जनता नैं ठरकै रै पाण ठगणियै ठगां री ठकराई सूं बचण री सैणां नैं सुभग सलाह दी जावै। इणी भावना रै वशीभूत आपनै एक डिंगल़ रो प्रहास साणोर गीत भेज रैयो हूं जे आपनैं किंचित मात्र ई दाय आयग्यो तो ओ श्रेय म्हारी आगली पीढी नैं अर दाय नीं आवै तो राठौड़ पृथ्वीराजजी रै आखरां में-
रूड़ो जिको प्रताप रावल़ो
भूंडो तिको अमीणो भाग।
गीत भोपा भंडण रो – गिरधरदान रतनू दासोड़ी
ऐह आंखियां लाल कर भाव हद अणावै
भगतपण जणावै देख भोपा।
सरम तज झूठ नैं साच कर सुणावै
खूब ऐ बणावै किता खोपा।। 1
आछटै भोमियां थांन थल़ आगल़ै
कोमियां सबां में जाय कूड़ा।
अभोमियां घणां नुं पटक नैं भरम में
धूत चख पोमियां नांख धूड़़ा।। 2
पोल मे हाथल़ां पटकवै पापिया
मनां में थापिया सुपन मीठा।
छापिया लोट बिन कमाई छाकटां
धापिया सीरै सूं देख धीठा।। 3
बगावै गपीड़ा जाजमां बैठनै
साच सठ ठिगावै पेट सारू।
मँगावै बाकरा चढावो मांस कज
देख ऐ लगावै भोग दारू।। 4
कदै तो जोर जूझार रा कसीदा
कदै तो भैरवानाथ नामी।
अंग में कदै तो जोगणी अणावै
थाट सूं भोमियां ओट थामी।। 5
अंग रै नीर नीं लगावै आपरै
पाप रै मांय तो कल़्या पाजी।
थल़ी में फैलाया पितर के थापरै
रुगट अणमापरै रहै राजी।। 6
प्रसन्नचित रहै नित देखनैं पीड़ियां
सिटल़ बिन भीड़ियां नहीं सारै।
विटल़पण रात दीह फूंकवै बीड़ियां
मोकल़ी कीड़ियां थाप मारै।। 7
रोगनै दोष ऐ जतावै रुगटपण
धतावै मरण तक झूठधारी।
साकणी डाकणी कितां नैं संतावै
भलां में बतावै भूत भारी।। 8
अंधविश्वास री बात आअजैतक
मूढ वै पजैतक साच मांनै।
लुच्चापण लजै नी भजै नी लेसपण
ठगाई तजै नीं इधक ठांनै।। 9
नीच इण नरां सम धरा कइ नारियां
झाड़ रो धारियां वेस जोपी।
कूदती मलफती करै किलकारियां
भरम दुखियारियां भरै भोपी।। 10
रीत मरजाद निज कोम री रेटदै
सांम रो मेटदै सफा संको।
विटल़ परिवार घरबार नैं फेटदै
डकर दै दिल्ली तक ठेठ डंको।। 11
जाजमां बैठनैं चूरमा जीमणी
भोल़ियां वींदणी बणै भोपी।
जोड़ निज धणी रै बैठणी जीमणी
खीमणी आंखियां बता खोपी।। 12
दखै कवि गिरधरो आंखियां देखनै
पखै महमाय रै बात पूरी।
लखै को सैण तो सांप्रत लेवज्यो
दोगलां भोपां सूं जिकै दूरी।। 13
~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी