फागण रा दूहा

तन तो पिव मैं रंग लूं,मन रंगूं किण भाँत|
इण फागण आया नहीं,धणी करी घण घात||१
फागण फूल उछाळतौ,अलबेलौ अणपार|
आयौ मन रे आंगणै,करै प्रेम मनुहार||२
फागण इतरो फाट मत,फूल न मौ पर फैक|
विरहण धण री वेदना,समझ करे सुविवेक||३
फागण औ फाट्यो घणौ,फाट्यां फिरतां फूल|
फाट्यौ बिरहण काळजौ,फाट्यां चीर दुकूल||४
फागण थूं घण फूटरो,मत कर मन्न गुमेज|
थूं फूलों रो राजवी,(तौ) मौ राजंद रंगरेज||५
फिर फिर फागण आवतौ,वळ वळ फेर बसंत|
फिर फिर होळी रंग री,साजण सुधि न लहंत||६
फागण औ घण फूटरो,पिचकारी पचरंग|
खेलत होळी राधिका,सदा श्याम रे संग||७
पिचकारी मारी खरी,दुलारी वृषभान|
मुरलीधर भिंज्या मघुर ,सुंदर श्याम सुजान||८
लाल कसुंबल जांबली,उडै रंग ! उछरंग|
खेले राधा स्याम खुब,रंग रे फागण रंग||९
फागण आयौ फूटरौ,चित री बाजी चंग|
आज पिया बिन हे अली!,किणसूं खेलूं रंग||१०
फागण आयौ फूटरो,बजिया चंग मृदंग|
किंशुक री बिगसी कळी,सब जग रंग बिरंग||११
तन रँग मन रँग रँग रंग रँग,अँग अँग माँहि अनंग|
चँग मृदंग डफ बाजिया,रंग रे फागण रंग||१२

~~वैतालिक

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