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🌺डोकरी – गज़ल🌺
नरपत आसिया “वैतालिक”
बैठी घर रे बार डोकरी!
किणनें रही निहार डोकरी!
हेत हथाई अपणायत री,
टाबर रे रसधार डोकरी!
गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”
थाकी बैठी आज डोकरी।
राखी घर री लाज डोकरी।।
वडकां बांधी, भुजबल पोखी।
काण कायदै पाज डोकरी।।
डॉ गजादान चारण “शक्तिसुत”
हाथां पकड़्यो भाल डोकरी
मोडा खाग्या माल डोकरी
हेत जताकर जमीं हड़प ली,
फंसी कुजरबी चाल डोकरी।