रघुवरजसप्रकास [11] – किसनाजी आढ़ा
— 266 —
अथ गीत उवंग सावझड़ौ लछण
दूहौ
सगण सोळ मत प्रथम तुक, दो गुर अंत दिपंत।
आंन च. . . वद. . . अख, उभै वीपसा अंत।।१८९
अरथ
पै’ली तुक रै आद तौ सगण नै सोळै मात्रा होय। और साराई गीत री पनरै ही तुकां मात्रा चवदै होय। तुकांत दोय गुरु अखिर होय जिण सावझड़ा गीत नै उमंग कहीजै तथा कोई कवि उवंग पण कहै छै। चौथी तुक में दोय वीपसा आवै छै।
अथ गीत उवंग सावझड़ौ उदाहरण
गीत
जगनाथ अंतरतणौ जांमी, गाहणौ खळ गुरड़ गांमी।
साच वायक सिया सांमी, भुजां भांमी भुजां भांमी।।
थूरण रिण दैतां थोका, लाज रक्खण संत लोका।
रांम रिण दसमाथ रोका, करां झौका करां झौका।।
देण सेवग लंक दाता, घल्ल व्याध कबंध घाता।
बिसू रखण क्रीत वातां, हद्द हातां हद्द हातां।।
मीढ ना अज इस माधौ, थाह दिल नावै अथाघौ।
देव दीनां कसट दाधौ, रंग राघौ रंग राघौ।।१९०
अथ गीत अरधगोखौ सावझड़ौ वरण छंद लछण
दूहौ
रगण जगण गुरु लघु हुवै, जिगरै तीन तुकंत।
होय वीपसा चवथ तुक, अरघ गोख आखंत।।१९१
अरथ
जिण गीत रै पै’ली दूजी तीजी तीनां तुकां तो पै’ली रगण गण। पछै जगण गण। पछै गुरु लघु। ई क्रम सूं आठ अखर तीन तुकां होय। चौथी तुक पै’ली रगण। पछे जगण छ अखिर होय। ईं क्रम सूं च्यार तुकां होय सौ अरधगोख वरण छंद सावझड़ौ कहीजे नै जींके ईं क्रम सूं आठ तुकां होय जिणनै व्रधगोख कहीजै, सौ व्रधगोख तौ आगै कह्यौ ईज छै सौ देख लीज्यौ।
— 267 —
अथ गीत अरधगोखौ सावझड़ौ उदाहरण
गीत
बंद पाय राघवेस, जोध मेघनाद जेस।
बंध वांमणी विसेस, सेस सेस सेस।।
पाड़िया जुधां बिपच्छ, रांम पाय सेव रच्छ।
और मेर रूप अच्छ, लच्छ लच्छ लच्छ।।
सूर धीर तास संत, मांण पांण तेज मंत।
दाहणौ जुधां दयंत, नंत नंत नंत।।
चीत प्रीत क्रीत चाह, दैत राज सेस दाह।
लेण रांम सेव लाह, वाह वाह वाह।।१९२
अथ गीत धमळ तथा रिणधमळ, सम तथा असम चरण लछण
दूहा
धुर तुक मत छाईस धर, छै बीजी छाईस।
तीस मत तुक तीसरी, चौथी मात्र चौवीस।।१९३
अवर दवाळा अवर विध, नहीं मत्त निरबाह।
ईसर बारठ अक्खियौ, असम चरण यणराह।।१९४
१९३ धुर-प्रथम। तुक-पद्य का चरण। मत-मात्रा। छाईस-छब्बीस। छै-है। बीजी-दूसरी। मझ-मध्य, में। दवाळा-गीत छंद के चार चरण का समूह।
१९४. अवर-अन्य। निरवाह-निर्वाह। अक्खियौ-कहा। यणराह-इसके।
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अथ धमळ गीत अन्य विध लछण
दूहा
वदिया लछण अवर विध, खट तुक होय विसक्ख।
चवद प्रथम दूजी चवद, अठाईस त्रिय अक्ख।।१९५
चवदह चौथी पांचमी, छट्ठी वीस विचार।
असम चरण तौपण अवस, वद यम धमळ विचार।।१९६
त्रकुटबंधरी आद तुक, पांच देख परमांण।
उभै तुकां मिळ अंतरी, जुगत धमळ यम जांण।।१९७
अरथ
धमळ गीत कै मात्रा वरण प्रमांण नहीं जिणसूं असम चरण छै। पै’ली तुक मात्रा छाईस होय। दूजी तुक मात्रा छाईस होय। तीजी तुक मात्रा तीस होय। चौथी तुक मात्रा चौबीस होय। बाकी रा और दूहा ईं प्रकार तथा और ही तरै मात्रा होय पण सम मात्रा को निरबाह नहीं। आगै बारठजी स्री ईसरदासजी क्रत गीत धमळ स्री परमेसर में छै सौ पण इण तरै छै जींनै देख नै मैं कह्यौ छै तथा और लछण करनै मात्रा कौ निरूपण करां तौ पण असम चरण छै। और विध मात्रा प्रमांण करां छां। छ तुक करने सौ कवेसर देख विचार लीज्यो।
गीत रणधमळ कै छ तुकां हुवै छै। पै’ली तुक मात्रा चवदै। दूजी तुक मात्रा चवदै। तीजी तुक मात्रा अठावीस। चौथी तुक मात्रा चवदै। पांचमी तुक मात्रा चवदै। छठी तुक मात्रा चौबीस। अंत लघु तौ पिण रणधमळ असम चरण छंद छै और सुगम लछण कहां छां। गीत त्रकुटबंधरी पांच तुकां तौ आदरी नै दोय तुकां दूहा रै अंत री, अेक कंठ री नै अेक दूजी यां दोयां री अेक तुक करणी। यां छ ही तुकां नै भेळी कर पढजै, सोही धमळ जांणणौ। सोई ग्रंथ में पण त्रकुटबंध कह्यौ छै सौ देख लीज्यौ। इति रणधमळ गीत लछण निरूपण समापत। इण गीत रौ नांम धमळ कह्यौ छै।
१९६. तौ पण-तो भी। अवस-अवश्य। वद-कह। यम-इस प्रकार। आद (आदि)-प्रथम। उभै-दो, दोनों। जुगत-युक्ति। पण-परन्तु। पण-भी। निरूपण-विचार, निर्णय। कवेसर-कवीश्वर।
१९७. अठावीस-अठाईस। आदरी-आदि की। कंठ-अनुप्रास। यां-इन। दोयांरी-दोनों की।
भेळी-साथ।
— 269 —
अथ गीत धमळ उदाहरण
गीत
सांमाथ तूं सुरनाथ तूं, रिमघात तूं रघुनाथ।
रघुनाथ तूं दसमाथ रांमण, भांजवा भाराथ।।
अणबीह तूं नरसीह ओपै, लीह संतां नकूं लोपै।
ईस वात अघात हाथां, व्रवण रंकां आथ।।
लंकाळ सेवग तूझ लांगौ, भ्रात लिछमण खळां-भांगौ।
पती-कुळ स्वारथी पांगौ, करण असह निकंद।।
जांनकी नायक जंग में, रोसेल बीरत रंग में।
बिरदैत जस रथ धमळ बँका, निमौ दसरथनंद।।
जुध दुसह दस सिर जारणा, मह कूंभसा खळ मारणा।
धनुबांण धारण पांण धजबंध, जबर जोम जिहाज।।
जटजूट सिर बन पट झलै, अंग अघट रजवट ऊझळै।
अणभंग जैतां जंग आसुर, रंग कोसळराज।।
रख पय भभीखण रंकरा, लहरे’क आपण लंकरा।
काकुसथ खळदळ भसम कर, साधार-सरण सभेव।।
निज बिरद नाथ अनाथरा, सुज धरण भुजां समाथरा।
किव ‘किसन’ बेग सुनाथ कीजै, दीनबंधव देव।।१९८
— 270 —
अथ गीत त्रिभंगी लछण
दूहौ
धुर अठार बी बार धर, ती सोळह चव बार।
बि गुरु अंत सौ पूणियौ, सोय त्रिभंगी सार।।१९९
अरथ
त्रिभंगी गीत रै पै’ली तुक मात्रा अठारै। दूजी तुक मात्रा बारै। तीजी तुक मात्रा सोळै। चौथी तुक मात्रा बारै होय। पछै सारा ही दूहां पै’ली तुक मात्रा सोळै। दूजी तुक मात्रा बारै। ईं प्रमाणै होय सौ गीत त्रिभंगी कहावै नै सोई पूणियौ सांणोर कहावै। नांम दोय छै। लछण दोय नहीं जींसूं पूणियौ सांणोर आगै पहली कह दीधौ छै जींसूं नहीं कह्यौ छै। कांम पड़े तो सात सांगोरां मांय देख लीज्यौ।
अथ गीत सीहलोर लछण
दूहौ
सीहलोर पिण पूणियौ, सुध लछणां सुभाय।
अठ दस बारह सोळ अख, बार बि गुरु पछ पाय।।२००
अरथ
सीहलोर पिण पूणियौ सांणोर छै। इणमें कोई भेद नहीं। पै’ली तुक मात्रा अठारै। दूजी तुक मात्रा बारै। तीजी तुक मात्रा सोळै। चौथी तुक मात्रा बारै। तुकांत दोय गुरु। पछला दूहां पै’ली तुक मात्रा सोळै। दूजी तुक मात्रा बारै। ईं क्रम होय। त्रिभंगी सीहलोर अे दोई पूणिया गीत छै। नांम कौ भेद, लछण भेद नहीं जींसूं आगै पूणियौ कह दीधौ छै सौ फेर नहीं कह्यौ। इति सीहलोर लछण निरूपण।
अथ गीत सारसंगीत लछण
दूहौ
गीत बडा सांणोर गण, सकौ सार संगीत।
तेवीसह अट्ठार मत, वीस अठार अठार अवीत।।२०१
अरथ
सार संगीत गीत नै बडौ सांणोर गीत एक छै। नांम दोय छै। लछण एक। पै’ली तुक मात्रा तेवीस। दूजी तुक मात्रा अठारै। तीजी तुक मात्रा बीस। चौथी तुक मात्रा अठारै अंत लघु। सौ बडौ सांणोर सोई सारसंगीत कहावै। सौ आद में सुध सांणोर सतसर कह्यौ छै सौ देख लीज्यौ। इति गीत सारसंगीत निरूपण।
२०१. सकौ-वही, वह। अट्ठार-अठारह। मत-मात्रा।
— 271 —
अथ गीत सीहवग सांणोर लछण
दूहौ
धुर अठार चवदह धरौ, सोळ चवद गुरु अंत।
वेखह सोई सीहवगौ, किव सांणोर कहंत।।२०२
अरथ
जिण गीत रै पै’ली तुक मात्रा अठारै होवै। दूजी तुक मात्रा चवदै होवै। तीजी तुक मात्रा सोळै होवै। चौथी तुक मात्रा चवदै आवै सौ सोहणौ सांणौर, सोई सीहवग कहीजै। नांम भेद छै, लछण भेद नहीं। पै’ली सांणोर कह्यौ छै सो देख लीज्यौ। इति सीहवग गीत निरूपण।
अथ गीत अहिगन सांणोर लछण
दूहौ
धुर अठार मत्त सुधर, पनर सोळ पनरेण।
अंत लघु सौ अहिगन, जपै वेलियौ जेण।।२०३
अरथ
गीत अहिगन नै वेलियौ सांणौर अेक छै। नांम में भेद छै, लछण में भेद नहीं। पै’ली तुक मात्रा उगणीस तथा अठारै होय। दूजी तुक मात्रा पनरै होय। तीजी तुक मात्रा सोळै होय। चौथी तुक मात्रा पनरै होय। तुकांत लघु होय। पछै मात्रा सोळै, पनरै होय। ईं क्रमसूं होय सौ वेलियौ सांणोर, सोई अहिगन सांणोर, पै’ली आगे सांणोरां में कह्यौ छै सो देख लीज्यौ। इति अहिगन गीत निरूपण।
अथ गीत रेणखरौ लछण
दूहौ
रटां गीत रेणखरौ, सौं जांणजै प्रहास।
तिल भर भेदन तेण में, सुध लछण सर रास।।। २०४
अरथ
रेणखरौ गीत नै प्रहास सांणोर दोन्यूं गीत अेक छै। नांम दोय छै। लछण एक छै। पै’ली तुक मात्रा तेवीस। दूजी तुक मात्रा सतरै। तीजी तुक मात्रा बीस। चौथी तुक मात्रा सतरै होय। अंत दोय गुरु पछै बीस सतरै इण क्रमसूं मात्रा होवै छै। आगै सांणोर में प्रहास कह्यौ छै सो देख लीज्यौ। इति रेणखरा गीत निरूपण।
२०३. पनर-पनरह। पनरेण-पनरह से। जेण-जिसको। सोळै-सोलह। पछे-पश्चात, बाद में। सोई-वही।
२०४. तेणमें-उसमें। अगाड़ी-पहिले। ज्यां-जिन। हर-अर, और। सोई-वह, वही।
— 272 —
अथ गीत मुड़ियल सावझड़ौ लछण
दूहौ
मुड़ियल सावझड़ौ हुवै, पालवणीस दुमेळ।
सावझड़ौ जयवंत सौ, सुध लछणां समेळ।।२०५
अरथ
मुड़ियल गीत सावझड़ौ दुमेळ तथा पालवणी तथा जयवंत नांम सावझड़ौ। अगाड़ी पै’ली प्रथम तीन सावझड़ा कह्या ज्यां मध्ये जयवंत सावझड़ौ जिणनै दुमेळ कर पढणौ। सोई पालवणी, हर सोई मुड़ियल कहावै। मात्रा प्रमांण। पै’ली तुक मात्रा उगणीस तथा मात्रा अठारै होय और पनरै ही तुकां मात्रा सोळै सोळै री होय। तुकांत दोय गुरु अखिर आवै सौ मुड़ैल (मुड़ियल) सावझड़ौ तथा पालवणी दुमेळ जयवंत अेक छै। आगै जयवंत पालवणी कह्या छै सौ कांम पड़े तो देख लीज्यौ। इति मुड़ियल गीत निरूपण।
अथ गीत प्रौढ सांणोर निरूपण लछण
दूहौ
सोरठिया हर प्रोढ मझ, भेद रती नह भाळ।
सोरठियौ यण ग्रंथ मझ, दीधौ प्रथम दिखाळ।।२०६
अरथ
प्रोढ सांणोर हर सोरठियौ सांणोर अेक छै। यांरा लछण अेक छै। रती भेद नहीं। नांम दोय छै। मात्रा प्रमांण पै’ली तुक मात्रा उगणीस तथा सोळै। बीजी तुक मात्रा दस। तीजी तुक मात्रा सोळै होय। चौथी तुक मात्रा दस होय। तुकांत लघु होय। पछै मात्रा इग्यारै, दस, सौळै दस ईं क्रम सूं होय। आगे इण ग्रंथ में कह्यौ छै सौ देख लीज्यौ। इति गीत प्रोढ निरूपण।
— 273 —
अथ गीत दीपक वेलियौ सांणोर लछण
दूहा
दीपक सोही वेलियौ, भेद अधिक तुक हेक।
तीजी तुक व्है बेवड़ी, वद तुक पंच विवेक।।२०७
धुर उगणीस अठार धर, पनरह दुती पढंत।
त्रती चवथी सोळ मत, पंच पनर पुणंत।।२०८
अरथ
गीत दीपक नै गीत वेलियौ सांणोर अेक होवै छै। यणां में इतरौ भेद छै। वेलिया सांणोर रै तुक च्यार होवै छै। पै’ली तुक मात्रा अठारै तथा उगणीस होवै। दूजी तुक मात्रा पनरै होवै। तीजी तुक मात्रा सोळै होवै। चौथी तक मात्रा सोळै होवे। पांचमी तुक मात्रा पनरै होवे। इण भांत दीपक रै पांच तुकां दूहा एक प्रत होवै। दूजा दूहां मात्रा सोळै पनरै सोळै सोळै पनरै ईं प्रमांण होय। तुकांत लघु होय सौ गीत दीपक। वेलिया रै च्यार तुक यौई फरक। इति दीपक लछण।
अथ गीत दीपक उदाहरण
गीत
सुंदर तन स्यांम स्यांम वारद सम, कौटक भा रद कांम सकांम।
नायक सिया दासरथ नंदण, विमळ पाय सुरराजा वंदण।
रीझवजै महराजा रांम।।
कमर निखंग पांण धनु सायक, सुखदायक संतां साधार।
कीधां कहर माथदस कापे, अेकण लहर लंक गढ आपे।
आठ पहर जिण नांम उचार।।
२०८. दूती-दूसरी। पढंत-पढ़ते हैं। त्रती-तीसरी। चवथी-चौथी। पुणंत-कहते हैं। पण-परन्तु। इण भांत-इस प्रकार। योई-यही।
२०९. वारद-बादल। सम-समान। कौटक-करोड़। भा-हुए। दासरथ-दसरथ। नंदण-पुत्र। विमळ-पवित्र। पाय-चरण। सुरराजा-इन्द्र। रीझवजै-प्रसन्न कीजिए। निखंग-तर्कश। पांण-हाथ। धनु-धनुष। सायक-तीर, बांण। सुखदायक-सुख देने वाला। साधार-रक्षक। कीधां-करने पर। कहर-कोप। माथदस-रावण। कापे-काट दिये, मारा। आपे-दे दिया।
— 274 —
ते रज पाय तरी रिख तरणी, मझ वेदां बरणी भ्रहमेण।
डहिया विरद वडा भुजडंडे, तीख करे मिथळापुर तंडे।
जटधर चाप विहंडे जेण।।
जनकसुता मनरंजण जगपत, भंजण खळ रांवण भाराथ।
सरणसधार काज जन सारण, ‘किसन’ अहौनिस गाव सकारण।
नृप रघुनाथ अनाथां नाथ।।२०९
अथ गीत अहिबंध वरण छंद लछण
दूहा
रगण सगण अंतह गुरू, तुक खट यण बिध कीन।
यगण रगण अंतह लघु, चौथी आठम चीन।।२१०
अठाईस पूरब अरध, ऊतर अठाईस।
अेम गीत अहिबंध अख, बरण छंद बरणीस।।२११
अरथ
अहिबंध गीत बरण छंद छै, मात्रा छंद नहीं। तिण रै गण तथा तुक प्रत अखिरां री गिणती छै। दूहा अेक प्रत तुक आठ आठ होवै। तुक अेक प्रत अखर सात सात होवै। दूहा एक प्रत आखर छपन होवै। सारा गीत रा दूहा च्यार आखर दोय सौ चौबीस होवै। पै’ली तुक दूजी तीजी तुक रगण सगण अेक गुरु सवाय होवै। यूंही तुक पांचमी छठी सातमी तुक रगण सगण अेक गुरु होवै। तुक चौथी और आठमी यगण रगण अेक लघु सवाय होवै। आठ ही तुकां प्रत आखर सात सात होवै। तुक पै’ली दूजी तीजी रा तुकांत मिळै। तुक चौथी तुक आठमी सूं मिळै। यण प्रकार गीत अहिबंध कहीजै। जूं बंध हुवौ थकौ साप संकड़तौ चालै जूं तुकां ठसती संकड़ती चालै, जीं ताबै गीत रौ नाम अहिबंध छै। गीत अड़बड़ाट सूं पढ्यौ जावै, जीं ताबै नांम रौ यौ लछण लख्यौ है।
२१०. यण-इस। विध-प्रकार। कीन-की, रची।
२११. अख-कह। यूंही-ऐसे ही
— 275 —
अथ गीत अहिबंध उदाहरण
गीत
राम नांम रसा रे, जाप संभ जसा रे।
बोल तू म बिसा रे, पहारै कौड़ पाप।।
सेस भ्रात सही रे, कंज जात कही रे।
दैत थाट दही रे, चहीरै बांण चाप।।
तेण संत तराया, गाथ बेदस गाया।
लेख हाथ लगाया, दळां आसंख दाट।।
तार बांम रखीते, सू चंदर सखीते।
पाळ दीन पखीते, कळेसां सत्र काट।।
कोसकेस कंजारां, लीध वंस लजारां।
हांण दैत हजारां, धजारां ब्रद धार।।
ग्राह गोह गयंदां, देख ब्याध मदंधां।
पेख ग्रीध पुलिंदां, पयोध नध पार।।
आच साह अनेकां, कीध वार वसेकां।
मांण राख वमेकां, करे के संत कांम।।
हेळ पाप हताजे, जमंवार जीताजे।
माह ऊंच मताजे,. . . .. . . . . .।।२१२
२१२. जाप-जप कर। संभ (शम्भु)-महादेव। जसा-जैसा। म-मत, नहीं। बिसारे-भूलना। पहारै-मिटाता है। सेस-लक्ष्मण। कंज जात-ब्रह्मा। दैत-दैत्य। थाट-दल, समूह। दही रे-नाश किया। गाथ-कथा। बांम-स्त्री। रखी-ऋषि। सूर-सूर्य। चंद-चंद्रमा। सखी ते-साक्षी दी। पाळ-पालक। पखी ते-पक्ष करने वाला। हांण-हानि। धजांरां-ध्वजा, ऊंचा। गोह-गुह नामक निषादराज। गयंदां-गज, हाथी। पुलिंदां-एक प्राचीन पिछड़ी जाति। पयोध (पयोधि)-समुद्र।
— 276 —
अथ गीत अरट मात्रा छंद लछण
दूहौ
धुर अठार ग्यारह दुती, सोळ त्रती चव ग्यार।
सोळै ग्यार क्रम अंत लघु, अरट गीत उचार।।२१३
अरथ
अरट गीत सांणोर गीत है पण सात सांणोर गीतां सूं भिन्न छै। दूजी चौथी तुक ग्यारै मात्रा, यौ भेद छै जींसूं जुदौ कही दिखायौ छै। पै’ली तुक मात्रा अठारै होय। दूजी तुक मात्रा ग्यारै होय। तीजी तुक मात्रा सोळै होय। चौथी तुक मात्रा ग्यारै होय। पछै सोळै ग्यारै ईं क्रम सूं पाछली तीन ही दूहां मात्रा होय। दूजी चौथी तुकरै तुकांत लघु होय, जीं गीत नै अरट नांम सांणोर कहीजै। कोई ईनै उमंख नांम गीत पिण कहै छै। त्राटकौ पण योही कहीजै, जींसूं त्राटको पण जुदौ नहीं कह्यौ है।
अथ गीत अरट सांणोर उदाहरण
गीत
धन राघव हाथ अभंग धुरंधर, आथवरीस असंक।
दीघ भभीखण आस्रय देख कर, लीध बिना दत लंक।।
बाळ महाबळ घायक भूबळ, सारंग सायक संठ।
भ्रात कहेस किकंधपुरी भल, कीध नरेस सुकंठ।।
संत अनाथ. . . . . . दस सायक, धू पहळाद उधार।
कांम उबारण आय सकारण, बारण तारण बार।।
कोट गयंद सतौल निधे कर, तोलण हेक तराज।
पात ‘किसन’ अडोल रघुपत, बोल गरीबनवाज।।२१४
नोट-रघुनाथरूपक में जो त्राटका गीत है वह गीत इस गीत से भिन्न है।
२१४. आथवरीस-रुपयों का दान देने वाला। दीध-दिया। भभीखण-विभीषण। लीध-लिया, ली। दत-दान। बाळ-बालि वानर। घायक-संहारक। सारंग-धनुष। सायक-तीर, बाण। संठ-मजबूत, दृढ़, जबरदस्त। किकंधपुरी-किष्किंधापुरी। भल-ठीक। कीध-किया। नरेश-राजा। सुकंठ-सुग्रीव। धू-भक्त ध्रुव। पहलाद-भक्त प्रह्लाद। बारण-गज। तराज-समान, तुल्य।
— 277 —
अथ गीत अठताळौ लछण
दूहौ
ले धुरसूं तुक सोळ लग, चवद चवद मत चीत।
अंत गुरु जस नांम अख, गण अठताळौ गीत।।२१५
अरथ
जिण गीत रै पैली तुक सूं लगाय नै च्यार ही दूहां री सोळै ही तुकां में चवदै-चवदै प्रत तुक मात्रा होय। अंत गुरु होय। सावझड़ौ होय, जिण गीत नै अठताळौ कहीजै।
अथ गीत अठताळौ सावझड़ौ उदाहरण
गीत
अंग धार आरख ऊजळा, करतार चित चढती कळा।
विसतार जस चहूँवैवळा, साधार सेवग सांवळा।।
सिर-जोर खग दत संजणा, पह रोर आंमय पंजणा।
भड़ जुध असंतां भंजणा, रघुराज संतां रंजणा।।
विपळ सत सघण नवीनरा, अत गाय दुज आधीनरा।
भुज दहण खळ जस भीनरा, दिल महण बंधव दीनरा।।
मह सीत वर महराज रे, लख जनां राखण लाज रे।
किव ‘किसन’ वसै सकाज रे, रघु चरण सरणे राज है।।२१६
२१६. आरख-चिन्ह, लक्षण। चहूंवैवळा-चारों ओर। साधार-रक्षक। रोर-निर्धनता। आंमय-रोग। पंजणा-मिटाने वाला। भंजणा-नाश करने वाला। रंजणा-प्रसन्न करने वाला। दुज (द्विज)-ब्राह्मण। महण (महार्णव)-सागर। सोत-सीता। लेख-देवता।
— 278 —
अथ गीत काछौ मात्रा समचरण छंद लछण
दूहा
धुर-अठार चवदह दुती, बारह तीजी बेस।
तीन कंठ धुरतुकतणा, मत चौमाळ मुणेस।।२१७
मुण बी तुक छाबीस मत, तीन कंठ तिण माह।
पूरब अरध तुकंतरै, अंत लघु आ राह।।२१८
तुक तीजी अठवीस मत, बेद छबीस बिचार।
त्रण त्रण कंठ तुकंत लघु, चौथीतणै उचार।।२१६
अन दूहां धुर तुकतणै, मत चाळीस मंडांण।
छावी बीजी चतुरथी, ती अठवीस प्रमाण।।२२०
अनुप्रास गुरु अंत अख, भण तुकंत लघु भाय।
जपियां आछौ रांम जस, काछौ गीत कहाय।।२२१
अरथ
काछा गीत तुकां च्यार दूहा प्रत जिण रै मात्रा प्रमांण। पै’ली तुक मात्रा चौमाळीस। कंठ तीन पै’ली तुक में होय। पहलौ कंठ तौ मात्रा अठारै ऊपर होवै। दूजो अनुप्रास मात्रा चवदै पर होवै। तीजौ अनुप्रास मात्रा बारै पर होवै। पै’ली तुक तीन अनुप्रास गुरुवंत होवै। मात्रा चौमाळीस होवै। तुक दूजी मात्रा छाईस होवै। अनुप्रास तीन। पै’ली कंठ मात्रा नव पर। दूजी कंठ मात्रा सात पर। तीजी कंठ मात्रा दस पर। तीसरौ पूरवारध नै उतरारध दोनों ही लघु अंत होय। तुक तीजी मात्रा अठावीस (अठाईस) तीन कंठ होय। चौथी तुक मात्रा छाईस तीन कंठ होय। यूं ही सारा गीत री अेक तुक प्रत कंठ तीन तीन गुरु कंठ होय। दूहा रै तुकंत लघु होय। और सारा ही गीत रा दूहां प्रत मात्रा प्रमाण कहां छां। पै’लो तुक मात्रा चाळीस होवै। दूजी तुक मात्रा छावीस होवै। तीजी तुक मात्रा अठावीस होवै। चौथी तुक मात्रा छावीस होवै। यूं तीन ही लारला दवाळां मात्रा होवै, जिण गीत नै काछौ कहीजै। चार ही तुकां मात्रा सम नहीं, जीसूं असम चरण छंद छै।
२१८. मुण-कह। बी-दूसरी। छाबीस-छब्बीस। तिण-उस। माह-में।
२१९. अठवीस-अठाईस। बेद-चार, चतुर्थ। छबीस-छब्बीस। त्रण-तीन। चौथीतणै-चौथी के।
२२०. अन-अन्य। दूहां-गीत छंद के चार चरणों के समूह का नाम। धुरतुकतणै-प्रथम चरण के। मंडांण-रख। छावी-छब्बीस। बीजी-दूसरी। ती-तीसरी। अठवीस-अठाईस।
२२१. अख-कह। यूं-ऐसे। गुरुवंत-जिसके अन्त में गुरु वर्ण हो। छाईस-छब्बीस।
— 279 —
अथ गीत काछौ उदाहरण
गीत
पहपत रघुपती दत झौक पांणां।
वदत सुज कथ वेद-वांणां सधर पांणां साहणौ।
सारंग बांणां, जुध सझांणौ पण मुड़ांणां पूठ।।
सुखवर सुरांणां, गौ दुजांणां माघवांणां सुख मिळै।
मह जिग मंडांणां थांणथांणां दैत घांणां दूठ।।
धनक सायक भुजाधारी, तेण रज रिख नार तारी,
पायचारी पंथ में।
मिथळाविहारी स्रीमुरारी रमां नारी रंज।।
पह छत्रधारी मिळ अपारी मांग हारी मंडळी।
धनु जेणवारी रांवणारी जटाधारी भंज।।
पित आय सचित प्रकासे, वीर वट-पंच वासे,
असुर नासे आहवां।
भय मेट दासे विरद भासे, खळां त्रासे खूर।।
पड़ लंक पासे जंग जासे, अत प्रकासे आवधां।
ग्रीधां ढीगासे मांस ग्रासे, सुज हुलासे सूर।।
करण भूपत देव काजा, मांण रख गौदुज समाजा,
क्रीत पाजा दध कहै।
ते सुकव ताजा ब्रवण बाजा, गजां राजा गांम।।
छज ऊंच छाजा दिलदराजा, जेत वाजा जंगियं।
लख राख लाजा संत साजा, महाराजा रांम।।२२२
२२२. पहपत (पृथ्वीपति)-राजा। दत-दान। झौक-धन्य-धन्य। पांणां-हाथों। वदत-कहता है। सुज-वह। कथ-कथा। वेद-बांणां-वेदवाणी। सधर-दृढ़। साहणौ-धारण करने वाला। सारंग-विष्णु के धनुष का नाम। वांणां-तीरों, बाणों। सुरांणां-देवताओं। दुजांणां-ब्राह्मणों। माघवांणां-इन्द्र। मह-पृथ्वी, महान। जिग-यज्ञ। मंडांणां-रचा गया। थांणथांणां-स्थानों-स्थानों। दैत-दैत्य। घांणां-नाश। दूठ-दुष्ट। धनक-धनुष। सायक-बाण, तीर। तेण-उस। रज-धूलि। रिख-ऋषि। पायचारी-पदचारी। पंथ में-मार्ग में। रमां-शत्रुओं। रंज-दुख। पह-योहा। छत्रधारी-राजा। अपारी-असीम। मांण-मान, गर्व। मंडळी-समूह। धनु-धनुष। जेणवारी-जिस समय। जटाधारी-महादेव। भंज-तोड़ दिया। वट-पंच-पंचवटी। वासे-निवास किया। नासे-नाश किया। आहवां-युद्धों। खळां-राक्षसों। खूर-समूह। ढीगासे-ढेर, समूह। ग्रासे-भक्षण किया। हुलासे-प्रसन्न हुए। सूर-सूर्य। दुज-ब्राह्मण। क्रीत-कीर्ति। पाजा-पुल। दध-समुद्र, सागर। ब्रवण-देने को। बाजा-घोड़े। छज-शोभा। ऊंच-ऊंची। छाजा-शोभा देती है। दिलदराजा-उदार दिल, दातार।
— 280 —
अथ गीत सवैयौ वरण छंद लछण
दूहौ
दोय सगण पद च्यार दख, पंचम चव सगणांण।
सावझड़ौ कह चरण ब्रती, जिकौ सवायौ जांण।।२२३
अरथ
सवायौ गीत वरण छंद होय जिणरै तुक पांच, दूहा अेक प्रत होय। तुक अेक प्रत सगण दोय आवै। अखिर छ आवै। इसी तुक च्यार होय। पांचमी तुकमें च्यार सगण गण पड़ै। अखिर बारा होय। पांच ही तुकांरा मोहरा मिळै, जिणसूं सावझड़ौ सवायौ गीत जांणजै।
अथ गीत सवैयौ उदाहरण
गीत
थिर बूध थटौ क्रतहीण कटौ, दुख ओघ दटौ मह पाप मटौ।
रिववंसतणौ रिव रांम रटौ।।
तन खेत तजौ मत सुद्ध मजौ, सुभ रीत सजौ वड संत वजौ।
भव तारण कौसळनंद भजौ।।
हिय लोभ हरौ धख पुन्य धरौ, क्रत ऊंच करौ सुरराज सरौ।
रघुनायक दायक मोख ररौ।।
मन भाव मढौ दुज सेव दढौ, गुरु वेण गढौ चित रंग चढौ।
पतसीत सप्रवीत सप्रवीत पढौ।।२२४
२२४. थिर-स्थिर, अटल। बूध-बुद्धि। थटौ-धारण करो। क्रतहीण-पाप। कटौ-काट डालो। ओघ-समूह। दटौ-नाश कर दो। मह-महान। मटौ-मिटा दो। रिववंसतणौ-सूर्यवंशका। रिव-सूर्य। खेत-क्षेत्र। तजौ-छोड़ दो। वजौ-कहे जाओ, प्रसिद्ध हो। भव-जन्म, संसार। कौसळनंद-श्री रामचंद्र भगवान। धख-इच्छा। क्रत ऊंच-उत्तम कार्य। सुरराज-इन्द्र। दुज-ब्राह्मण। दढौ-दृढ़ करो। पतसीत-श्री रामचन्द्र। सप्रवीत-पवित्र।
— 281 —
अथ गीत सालूर लछण
दूहौ
धुर अठार वारह दुती, सोळै त्रति चव बार।
आद वेद मिळ बी त्रती, यूं सालूर उचार।।२२५
अरथ
पै’ली तुक मात्रा अठारै होय। दूजी तुक मात्रा बारै होय। तीजी तुक मात्रा सोळै होय। चौथी तुक मात्रा बारै होय। पै’ली तुक नै चौथी तुक मिळै दु गुरु तुकंत होय। बीजी तुक नै तीजी तुक मिळै। लघु तुकंत होय सौ सालूर गीत कहीजै।
अथ गीत सालूर लछण
गीत
सुज बीजै नर पकां मनह सीधौ।
जनक तांम मुख जापत, आ जौ महमा काळ अमापत।
क्रत पण खंडत कीधौ।।
तायक लखण पयंपै तेथी।
वायक रोस विरुता, है नर बीर जनक मुखहूंता।
जंप न राघव जेथी।।
मुनि मित्त आयस राघव मंगे।
छक घण रोम ऊछाजै, बूटै खित्रवट नूर विराजै।
ऊठै सूर उमंगे।।
चाप उठाय नमाय चहोड़ै।
तोड़ै खळां अतंका, बरी सिया दासरथी बंका।
राघव डंका रोड़ै।।२२६
२२६. महमा-महिमा। अमापत-अपार। खंडत-खंडित। कीधौ-किया। लखण-लक्ष्मण। पयंपै-कहता है। तेथी-वहां। विरुता-पूर्ण। मुखहूंता-मुख से। जंप-कह। राघव-रामचन्द्र भगवान। जेथी-जहां। छक-जोश। चहौड़े-चढ़ाते हैं। अतंका- आतंक।
— 282 —
अथ गीत त्रिबंकौ लछण
दूहौ
सोळ कळा धुर सोळ बी, ती बतीस गुरवंत।
त्रि बखत उलटै तुक त्रती, कविस त्रिबंक कहंत।।२२७
अरथ
पै’ली तुक मात्रा सोळै होय। दूजी तुक मात्रा सोळै होय। तीजी तुक मात्रा बतीस होय। जिण तीजी तुक रै दोय मात्रा तौ आद नै पछे दोय चौकळ गण ज्यांनै तीन बखत पढणा उलट-पलट करनै, जठा पछै छ मात्रा फेर हुवै, तुक तीन का मोहरा मिळै। एक दोय गुरु कौ तौ नेम ही नहीं पिण तुकंत गुरु होवै सौ त्रबंकौ गीत कहीजै।
अथ गीत त्रबंक उदाहरण
गीत
रे राखै ऊजळ भाव रदा, गहिया कज नीरज चक्र गदा।
सुज रे मन राघव रे मन राघव, रे मन राघव जाप सदा।।
गजग्राहै जाहर ग्राहांणी, जिण बाहर कीधी जग जांणी।
मह माधव केसव केसव माधव, माधव केसव पढ प्रांणी।।
लंका हण रांवण जुध लीजै, दत दीन भभीखण नूं दीजै।
रे कौसळनंदण नंदण कौसळ, कौसळनंदण समरीजै।।
पै रज रिखघरणी गति पाई, वळ तरणी झीवर तिरवाई।
भण सीता रघुबर रघुबर सीता, सीता रघुबर भण भाई।।२२८
२२८. भाव-विचार। रदा-हृदय। कज-कमल। नीरज-शंख। जाप-जप, स्मरण कर। जिण-जिस। वाहर-रक्षा। कीधी-की। माधव-विष्णु। दत-दान। दीन-गरीब। भभीखणनूं-विभीषण को। नंदण-पुत्र। समरीजै-स्मरण कीजिए। पै-चरण। रज-धूलि। रिख-ऋषि। घरणी-गृहिणी। गति-मोक्ष। वळ-फिर। तरणी-नौका। झीवर-मल्लाह। भण-कह।
नोट-त्रिबंक गीत के लक्षण रघुनाथरूपक में अधिक स्पष्ट हैं। यहाँ पर उसकी नकल दी जाती है। त्रिबंक गीत में प्रत्येक पद में सोलह मात्राएँ होती हैं। प्रथम, द्वितीय और चतुर्थ पद के तुकांत मिलाये जाते हैं। तीसरे पद में आदि में दो मात्राएँ मध्य में दो चौकल और अंत में एक षटकल रखना चाहिए। तीसरे पद में जो चौकल आवे वह पलट कर चौथे पद में भी आनी चाहिए। उदाहरण देखने से स्पष्ट हो जायेगा।
— 283 —
अथ गीत धमाळ लछण
दूहौ
पूरबारध मत भाख पढ़, ऊपर नव मत अक्ख।
है तुकंत लघु गुरु हरख, सौ धमाळ विसक्ख।।२२९
अरथ
भाख गीत सावझड़ा गीत री तुक मात्रा चवदै री होवे सौ भाख गीत री तुक सवाय मात्रा नव होवै। लघु गुरु तुकंत होवै। च्यार ही मोहरा मिळै सौ धमाळ गीत कहावै।
अथ गीत धमाळ उदाहरण
गीत
कवसळ सुता राजकंवार, कत जन काजरा।
दरसै चखां दत खग दोय लंगर लाजरा।।
जपां कमण नृप ता जोड़ अधपत आजरा।
बंदां मघादिक सुर ब्रंद रघुबर राजरा।।
२३०. क्रत-काम। चखां (चक्षु)-नेत्र, नयन। दत-दांन। खग-तलवार। लंगर-पैरों को बांधने का बंधन विशेष, पैरों का एक आभूषण। कमण-कौन। ता-उस। जोड़-समान बराबर। अवधपत-श्रीरामचंद्र भगवान। मघादिक-इंद्र आदि। सुर-देवता। ब्रंद-समूह।
— 284 —
छत्रवट तूझ दसरथ नंद ओप अच्छेहड़ा।
बाढे खगां रिण दसमाथ कर धड़ बेहड़ा।।
वळमुखहूंत निकसै वैण आखर वेहड़ा।
जुग पद घसै मुगट सहीव सुरपत जेहड़ा।।
वेढक फरसधर विकराळ बंक त्रबंकसा।
सुज जिण कीधा रांम नरेस सूधसणंकसा।।
लहरे हेक दीधी लछीस थांनक लंकसा।
सुज पय नमै अविरळ सीस सुरप असंकसा।।
दखूं किसूं हे महाराज दासां दास रे।
वरणूं जीभहूं बुध जोग नित जसवास।।
हिरदै वसौ ध्यांन हमेस रूप हूलास रे।
जपै ‘किसन’ रख रघुराज, औ पण आस रे।।२३०
— 285 —
अथ गीत रसावळ लछण
दूहौ
प्रथम तीन तुक चवद मत, मोहरे रगण मिळाय।
चवथ ग्यार मत सगण मुख, रसावळौ खगराय।।२३१
अरथ
जिण गीत रै प्रथम री तीन ही तुकां मात्रा चवदै चवदै होय। मोहरे रगण गण होय। तुक पै’ली मात्रा चवदै, तुकांत रगण होय। तुक दूजी मात्रा चवदै, तुकांत रगण होय। तुक तीजी मात्रा चवदे, तुकांत रगण होय। तुक चौथी मात्रा अग्यारै, तुकांत मोहरे सगण होय सौ गीत नाग कहै छै। हे खगराज गरुड़ सौ गीत रसावळौ कहावै छै।
अथ गीत रसावळौ उदाहरण
गीत
सझ भुजां निज धानंख सरा, मझ अड़ै भूहां मौसरा।
रिण रांम नृप दसमाथरा, खित वेध लगा खरा।।
उण दसा राखस आहुड़ै, भड़ भाल कपि यण दस भड़ै।
लूथबथ अह घणसुर लड़ै, गज धरा नभ गड़ड़ै।।
कोमंड कीधां कुंडळां, वरसाळ सर दुत वीजळा।
खळ कुंभ राघव खंडळा, झड़ नयण आग झळा।।
भड़ रांम दस सिर भंजिया, दत लंक सरणागत दिया।
विभ अवध सिय ले आविया, कळ चंदनांम किया।।२३२
२३२. धानंख-धनुष। सरां-बाण, तीर। मझ-मध्य। मोसरा-श्मश्रु, मूंछें। दसमाथरा-रावण का। खित-पृथ्वी। वेध-युद्ध। दसा-ओर, तरफ। राखस-राक्षस। आहुड़ै-भिड़े। भड़-योद्धा। भाल-रीछ। कपि-बंदर। यण-इस। दस-तरफ, ओर। लूथबथ-परस्पर भिड़ने की क्रिया, द्वन्द युद्ध। अह-लक्ष्मण। घणसुर-मेघनाद। गड़ड़ै-गुंजायमान हुए। कोमंड-धनुष। वरसाळ-वर्षा। सर-तीर, बाण। द्रुत-द्युति। वीजळा-बिजली, तलवार। दससिर-रावण। दत-दान। विभ-वैभव। अवध-अयोध्या। सिय-सीता। कळ-युद्ध। चंदनामा-यश।
— 286 —
अथ गीत सतखणा लछण
दूहा
लघु सांणोर क पूणियौ, धुर अठार बी बार।
सोळ बार क्रम मत सरब, दु गुरु तुकंत बिचार।।२३३
सोळ मत तुक पंचमी, संबोधन धुर मध।
तुक छठी मझ नव कळा, सौ सतखणौ प्रसिध।।२३४
अरथ
गीत छोटौ सांणोर तथा पूणियौ सांणोर पै’ली तुक मात्रा अठारै। दूजी तुक मात्रा बारै। तीजी तुक मात्रा सोळै होय नै बीच संबोधन रेकार शब्द पांचमी तुक रै आद मध्य आवै नै तुक छठी मात्रा नव होवै जिणनै गीत सतखणौ कहीजै।
अथ गीत सतखणौ उदाहरण
गीत
प्रांणी सौ झूट कपट चित परहर, गुण हर कोय न गावै।
जमदळ आय फिरेलौ जाडौ, आडौ कोय न आवै।
रे दिन जावै रे दिन जावै, लाहौ लीजिये।
बेखै मात पिता त्रिय बंधव, कुळ धन धंधव काचौ।
चौरंग मझ जम हूँत बचायब, साहिब राघव माचौ।
रे जग काचौ रे जग काचौ, लाहौ लीजिये।।
अंत दिनां आडौ खम आसी, साचौ जनां संबंधौ।
डिग चित अवरां दिसी म डोलै, बोलै लिछमण बंधौ।
रे जग धंधौ रे जग धंधौ, लाहौ लीजिये।।
धू पहळाद भभीखण सिंधुर, अपणाया सुख आपे।
पीतंबर काटै दुख पासां, थिरके दासां थापे।
रे हरि जापै रे हरि जापै, लाहौ लीजिये।।२३५
२३४. मध-मध्य। मझ-मध्य में। कळा-मात्रा।
२३५. परहर-छोड़ दे। गुण-यश। काय न-क्यों नहीं। जाडौ-बहुत घना। कोय न-कोई नहीं। लाहौ-लाभ। देखै-देखते हैं। त्रिय-स्त्री। बंधव-भाई। धंधव-धंधा, काम। चौरंग-आवागमन का बंधन, युद्ध। मझ-मध्य में। जमहूँत-यमराज से। साहिब-स्वामी। जनां-भक्तों। संबंधौं-संबंध। अवरां-ग्रन्थों। दिसी-ओर, तरफ। म-मत। लिछमण-लक्ष्मण। बंधौ-भाई, बंधु। धू-ध्रुव भक्त। पहलाद-प्रहळाद। सिंधुर-गज। पीतंबर-पीताम्बर वस्त्र धारण करने वाला, विष्णु। जापै-जप, स्मरण कर।
— 287 —
अथ गीत उमंग सावझड़ौ लछण
दूहौ
सोळह मत तुक प्रत सरब, मोहरा च्यारूं मेळ।
सावझड़ौ सगणंत सख, सोय उमंग सचेळ।।२३६
अरथ
घड़ उथल रै पण तुक प्रत मात्रा सोळै होय। अंत गुरु होय नै यूं ही उमंग रै तुक प्रत सोळै मात्रा नै अंत गुरु होय पिण अतरौ भेद छै सौ घड़उथल तौ आधा सूं उलटै नै उमंग सावझड़ौ च्यारूं तुकां मिळै नै उलटै नहीं यौ भेद छै।
अथ गीत उमंग सावझड़ौ उदाहरण
गीत
नर नाग सुरा सुर जोड़ नथी, कथ वेद पुरांण दुजांण कथी।
मुर कीटमधु हण सिंध मथी, रट रे मन राघव दासरथी।।
के नाथ अनाथ सुनाथ किया, सुज जेण वेरी दळ चाप सिया।
वळ रांवण कुंभ जिसा वहिया, है कांम भलौ भज राम हिया।।
मह पाळ सिघां कुळ मित्तारौ, पह पाळक संतां पीसारौ।
जग जाय जमारौ जीतारौ, सुज संभर सायब सीता रौ।।
वाराधिप सेतां बंधण रौ, कुळ राखस जूथ निकंदण रौ।
दिल तूं ‘किसना’ जग बंदण रौ, नहचौ रख कौसळ नंदण रौ।।२३७
२३७. जोड़-बराबर, समान। नथी-नहीं। कथ-कथा। दुजांण (द्विज)-महर्षि, मुनि। कथी-कही। मुर-एक असुर का नाम। कीटमधु-मधुकैटभ। सिंध-समुद्र। दळ-तोड़ कर। चाप-धनुष। सिया-सीता। वहिया-चले गये। भलौ-उत्तम, ठीक। महपाळ-(महिपाल) राजा। सिधां-श्रेष्ठ। कुळ मीत्तारौ-सूर्य का वंश। संभर-स्मरण कर। सायब-(साहिब) स्वामी। वाराधिप-समुद्र। जूथ-समूह। निकंदणरौ-नाश करने वाले का। नहचौ-विश्वास, धैर्य। नंदणरौ-पुत्र का।
— 288 —
अथ गीत यकखरौ (इकखरौ) लछण
सरलोकौ
मात्रा चवदै तुक हेकण मांहै।
आंणै सोळै तुक यण विध ऊछाहै।।
कायब सावझड़ौ रगणांत कीजै।
मोहरा सोळै हीरै रे मेलीजै।।
गीत यकखरौ यण विध कवि गावै।
राघव राजा नै जसकर रीझावै।।
चवजै बीसू मत पद हेकण चोखौ।
लीजौ वरतारौ समझे सरलोकौ।।२३८
अरथ
यकखरा गीत रै सोळै ही तुकां प्रत चवदै मात्रा आवै। तुकंत रगण आवै। सारी ही तुकां प्रत रै यसौ संबोधन रौ एक अखर आवै। मोहरै सौ यकखरौ गीत कहावै। यणरा लछणां रौ छंद सरलोकौ छै। वांणिया, जती तथा भोजक बोहोत पढै छै।
अथ गीत यकखरौ उदाहरण
गीत
कौसिक रिख जग काज रे, जाचिया स्री रघुराज रे।
सुज विदा दसरथ साज रे, मेल्हिया स्री महराज रे।।
गत पंथ तारक गाह रे, सुज सपत दिन जिग साह रे।
हरण खंड की सुबाह रे, मारीच नख दध माह रे।।
जिग जनक आरंभ रांम रे, कर रिखी गवण सकांम रे।
भव सिला गौतम भांम रे, रज पाय तारी रांम रे।।
दस कमळ बळ सुत दैत रे, नृप अवर मांण नमैत रे।
जिग धनंख हण की जैत रे, बर स्रीया जद बांनैत रे।।२३९
२३९. कौसिक-विश्वामित्र। रिख-ऋषि। जिग-यज्ञ। काज-लिए। जाचिया-याचना की। खंड-नाश, ध्वंश। कीध-किया। नख-डाल दिया। दध-समुद्र। मांह-में। रिखी-ऋषि। गवण-गमन। भांम-भामिनी, स्त्री। पाय-चरण। दसकमळ-रावण। अवर-अन्य। मांण-गर्व। हण-नाश कर। बांनैत-वीर।
— 289 —
अथ गीत अमेळ लछण
दूहौ
सरस वेलिया सूहणा, सांमिळ तुकां सझाय।
मोहरा अंत मिळै नहीं, सौ अमेळ सुभाय।।२४०
अरथ
वेलिया गीत री नै सोहणा तथा खुड़द री तुकां सांमिळ होय। अंत मोहरा मिळै नहीं, जिणनूं अमेळ सांणोर कहीजै। यणहीज तरै सुपंखरौ पिण अमेळ वणै छै।
अथ गीत अमेळ सांणोर उदाहरण
गीत
दसरथरा नंद मुकतरा दाता, असुर जुधां घाता असेस।
निज कुळ मुकट जांनकीनायक, सुखदायक सेवगां सही।।
उर भ्रगु लात सुहात अनूपम, जग जाहर विक्रम राजेस।
किती बार महराज त्रविक्रम, राजहूंत तन लाज रही।।
बाढ सुबाह जिगन रखवाळे, महण बीच डाले मारीच।
ताई विमद करे नृप ताखा, विरदाई जांनकी वरी।।
फसण अरस कर आडौ फिरियौ, हुवौ फरसधर तेजविहण।
जग मझ रांम न कौ तौ जेहौ, केहौ भूपत मीढ करां।।२४१
२४१. नंद-पुत्र। मुकतरा-मुक्ति के। दाता-देने वाला। घाता-संहारक। असेस-अपार। अनूपम-अद्भुत। लात-पद-प्रहार। सुहात-शोभा देता है। विक्रम-वीरता। किती-कितनी। त्रविक्रम-त्रिविक्रम। राजहूंत-श्रीमान से। बाढ-काट कर, मार कर। जिगन-यज्ञ। महण-समुद्र। ताई-शत्रु। विमद-गर्वरहित। ताखा-वीर। विरदाई-विरुदधारी। फसण-लड़ने को। अरस-कोप। फरसधर-परशुराम। तेजविहीण-कांतिहीन। मझ-मध्य। कौ-कोई, कौन। तौ-तेरे। जेहौ-जैसा। केहौ-कौनसा। मीढ-समान, तुल्य।
— 290 —
अथ गीत भंवरगुंजार लछण
दूहा
सोळ प्रथम चवदह दुती, ज्यां रै लघू तुकंत।
ती चवदह नव चतुरथी, अख बी गुरु जिण अंत।।२४२
यण हीज विध उत्तर अरध, चतुर सुकवि विचार।
भण जस रस रघुवर भंवर, गीत भंवर गुंजार।।२४३
अरथ
भंवरगुंजार गीत रै तुक आठ मात्रा प्रमांण कहां छां। तुक पै’ली मात्रा सोळै। तुक बीजी मात्रा चवदै। तुक तीजी मात्रा चवदै। तुक चौथी मात्रा नव। तुक पांचमी मात्रा सोळै। तुक छठी मात्रा सोळै। तुक सातमी मात्रा चवदै। तुक आठमी मात्रा नव होय। पै’ली बीजी तुक रा मोहरा मिळै। तुकंत लघु होय। तीजी चौथी सूं भेळी पढी जाय। आठमी तुक रा मोहरा मिळ नै तुकांत दोय गुरु होय। पांचमी छठी तुक रा मोहरा मिळ नै तुकांत लघु होय। सातमी आठमी तुक भेळी पढ़ी जाय। यण प्रकार च्यार ही दूहां प्रत मात्रा होय, जिण गीत रौ नांम भंवरगुंजार कहीजै।
अथ गीत भंवरगुंजार उदाहरण
गीत
रे अधम नर समर रघुबर,
सिया नायक दया सागर।
कड़े दध जिण सुजस कहजै भिड़ै खळ भंजे।।
जंपै सिव रिव सेस जाहर,
वेख की प्रहळाद वाहर।
रूप नाहर धार राघौ गाव रिम गंजे।।
२४३. यण-इस।
२४४. कड़े-तट पर। दध-समुद्र। खळ-असुर। रिव (रवि)-सूर्य। वेख-देख। वाहर-रक्षा। नाहर-नृसिंहावतार। राघौ-श्रीरामचन्द्र। रिम-शत्रु। गंजे-नाश किये।
— 291 —
बळ थियौ दित हरणाक्ष्य अप्रबळ,
तेज मीहर धर रसातळ तांम।
ब्रहम पुकार रघुपत करण मुख कहै।।
गरुड़धुज विप धांम. . . . गिड़,
प्रळय जळ मग गंध सुध पड़।
आण घर घर देत अणघट, विकट अर वहै।।
तन मछ जोजन स्रंग लख तण,
रेण जन सत वरत रखण।
समंद प्रळय विहार स्रीरंग, वेद मुख वांणी।।
वळ चवद रतन उधार हित वप,
कठण पिठ धारी मंद्र कछप।
उदध कर मंथांण अणघट, प्रगट कंज पांणी।।
बळ छळण तन धरि हास बावन,
पुरंदर दृढ कर सपावन।
फरसधर विप धार हरि फिर, खत्र खळ खंड।।
रच रांम तन यर रहच रांमण,
हुवा हळधर बुध दित हण।
वळै की वंकी होण राघव, मही सत्त मंड।।२४४
— 292 —
अथ गीत दूजौ भंवरगुंजार लछण
दूहौ
चवद प्रथम दूजी चवद, सोळ त्रती नव च्यार।
पूब उतर सम अंत गुरु, जुगम भंवर गुंजार।।२४५
अरथ
बीजा भमरगुंजार रै पै’ली तुक मात्रा चवदै। बीजी तुक मात्रा चवदै। तीजी तुक मात्रा सोळै। चौथी तुक मात्रा नव। यूं ही उतरारध री च्यार तुकां होय। पै’ली दूजी रा मोहरा मिळै। अंत गुरु होय। तीजी चौथी भेळी पढ़ी जाय। चौथी आठमी रा मोहरा मिळै। अंत गुरु होय। पांचमी छठी रा मोहरा मिळै। गुरु अंत होय। पूरबारध उतरारध समान मात्रा होय। यूं च्यार ही दूहा होय सौ बीजो भंमरगुंजार गीत कहावै।
अथ गीत बीजौ भंमरगुंजार उदाहरण
गीत
सुभ देह नीरद सुंदरं, साधार सेवग स्रीवरं।
रघुनाथ नाथ अनाथ रहे, हेल अघ हरणं।।
धर सुकर सायक धानुखं, लड़ समर रहचण लखं।
दुज राज गरब विभंज दस्सत, सरब जग सरणं।।२४६
अथ गीत चौटियौ लछण
दूहौ
प्रगट जांगड़ा गीत पर, अधिक मत्त उगणीस।
अंत दु गुरु तुक आंणजै, कवि चौटियौ कहीस।।२४७
अरथ
वैलियो, सूहणौ, खुड़द, जांगड़ौ, यां च्यार ही गीतां छोटा सांणोरां मेहलौ। जांगड़ौ गीत पै’ली तुक मात्रा अठारै। बीजी तुक मात्रा बारै। तीजी तुक मात्रा सोळै। चौथी तुक मात्रा बारै होय। दो गुरु तुकंत होय, पछै सोळै बारै ईं क्रम होय, जीं जांगड़ा गीत रा दूहा रै पांचमी तुक एक मात्रा उगणीस री अधिक होय। दो गुरु तुकंत होय। इण प्रकार सूं च्यार ही दूहा होय, जिणनै चौटियौ गीत कहीजै।
२४६. नीरद-बादल। साधार-सहायक, रक्षक। सुकर-श्रेष्ठ हाथ। सायक-तीर। धांनुखं-धनुष।
२४७. मत-मात्रा। उगणीस-उन्नीस। कहीस-कहेगा। बीजी-द्वितीय, दूसरी। बारै-बारह। ईं-इस।
— 293 —
अथ गीत चौटियौ उदाहरण
गीत
जांमी अघ भांन सुरसरी जेथी, ध्यांन मुनीसां धायौ।
वरणै वेद यसा नग राघव, आं सरणे हूं आयौ।
केसव रावळौ निज दास कहायौ।।
त्रिभुवण मांझ नहीं त्यां तोलै, ओळै सुतअरब्यंदौ।
म्है किव ‘किसन’ हुलासे चितमें, आसे लियौ अमंदौ।
बर-सी राजरै चोटीकट बंदौ।।
रज परसण उदमाद करै रिख, मरै हूंस मघवांणौ।
क्रत दत कौट कियां हूं यधकौ, हरि नग ओट रहांणौ।
कुळमें धन्य हूं किंकर कहांणौ।।
भण चौरासी घेर उदध-भव, नरपत फेर नह नाचूं।
कौसळनंद अडग ‘किसनौ’ कह, जुग जुग याही जाचूं।
राघव रावळा चरणां नित राचूं।।२४८
अथ गीत मंदार लछण
दूहा
तुक धुर बी सोळह मता, मोहरा मेळ गुरंत।
ती अठार चौथी त्रिदस, तेरै कह रगणंत।।२४९
अध पूरब जिम उतर अध, समझौ कवि सुविचार।
क्रीत जेण बिच रांम कह, दाख गीत मंदार।।२५०
अरथ
पै’ली तुक मात्रा सोळै। बीजी तुक मात्रा सोळै। तीजी तुक मात्रा अठारै। चौथी तुक मात्रा तेरै होय। पै’ली बीजी तुक मिळै ज्यांरै गुरंत होय। पूरबारध उतरारध समांन होय। पांचमी तुक मात्रा सोळै। छठी तुक मात्रा सोळै। सातमी तुक मात्रा अठारै और आठमी तुक मात्रा तेरै होय। आठमी के रंगणंत होय सौ मंदार नांम गीत कहीजै।
२४९. धुर-प्रथम। बी-दूसरी। मता-मात्रा। ज्यांरै-जिनके। गुरंत-जिस शब्द के अंत में गुरु वर्ण हो। रगणंत-जिसके अंत में रगण हो।
— 294 —
अथ गीत मंदार उदाहरण
गीत
पण-राखण दास गदापांणी, मझ सौ कथ जाहर भूमांणी।
अपखी प्रहळाद जिसा आतुर, संग्रहिया निज हाथसूं।।
जे जुध हरण कुसनूं जरियौ, धड़ नाहर मांनवचौ धरियौ।
जिण कारण देव दितेस दुजेसर, न्याय नमै रघुनाथसूं।।
पित मात दसा तजया लंकनूं, बित जे चित हूं धू बाळकनूं।
बन जाय करे तप हेत विसंभर, अेक पया दळ ऊपरी।।
घण साधै जोग सधीर घणै, सुर राजा कांपै बात सुणै।
निरधार अधार पधार नरायण, भूप कियौ द्रढ भूपरी।।
दुरवासा डारण स्राप दियौ, लखजे अंबरीख उबार लियौ।
बिच पेट परीछत मीच बचाय’र, थेट हरी जन थापिया।।
बळमीक पुलिंद रिखी बागौ, कीधौ गुरु सुकनाधिप कागौ।
भख अेंठित बोर करां कर भीलण, अेम घणां पद अप्पिया।।
निरधारां ओठम घणनांमी, भुज दीन सीहाय ब्रद भांमी।
नह विसार संभार अहोनिस, जैनूं आठूं जांममें।।
दिल ऊजळ ठाकर दासरथी, कथजे गुण आकर वेद कथी।
कर तूं अभिलाख रदा ‘किसना’ किव, राख सदा चितरांम में।।२५१
— 295 —
अथ गीत झड़लुपत सावझड़ौ लछण
दूहौ
सावझड़ौ रमणी वसंत, तुक धुर बी मिळ बेद।
मोहरौ तुक तीजी अमिळ, सौ झड़लुपत सुभेद।।२५२
अरथ
गीतां रा प्रकरण में पै’ली तीन सावझड़ा कहया। अेक वसंतरमणी, बीजौ जयवंत नै तीजौ मुणाळ, ज्यां में पै’लौ वसंतरमणी नांम सावझड़ौ, जिणरै पै’ली तुक मात्रा अठारै होय नै और सारा ही गीत री सारी ही तुकां में सोळै सोळै मात्रा होय। तुकंत भगण होय सौ तौ वसंतरमणी सावझड़ौ, जिणरी च्यार ही तुकां मिळै नै झड़लुपत री पै’ली तुक दूजी तुक चौथी तुक मोहरा मिळै नै तीजी तुक मोहरौ मिळै नहीं, जिणनूं झड़लुपत कहीजै तथा कोई कवि यणने त्रिमेळ पालवणी पण कहै छै सौ पण सत्य छै।
अथ गीत त्रिमेळ पालवणी तथा झड़लुपत सावझड़ौ उदाहरण
गीत
दत किरमर जोड़ नकौ विरदायक।
घण दळ कौड़ कौंड़ खळ घायक।।
२५३. दत-दान। किरमर-तलवार। जोड़-समान। नकौ-कोई नहीं। विरदायक-विरुदधारी, यशस्वी। घण-बहुत। दळ-सेना, फौज। रोड़-रोक कर। खळ-शत्रु। घायक-संहार करने वाला।
— 296 —
अघ तम दळद तोड़ दुत आसत।
निज कुळ मौड़ जांनकी नायक।।
जुध आचार भार भुज जोपत।
रिमहर मार धजा जय रोपत।।
वदै तमांम वेद मूनीवर।
औ रवि वंस रांम रवि ओपत।।
नृप खग दांन लियां मुख नूर ज।
प्रसणां भांन खित्रीवट पूरज।।
बळबळ प्रथी सुजस सद बोलत।
सूरज तड़ दासरथी सूरज।।
सदन सुकंठ भभीखण सांमंत।
निरख कंठदस भांज अनांमत।।
रे कुळभांण भांण नृप राघव।
कौड़’क भांण लियां मुख क्रांमत।।२५३
— 297 —
अथ गीत त्रिपंखौ लछण
दूहौ
धुर बी तुक मत सोळ घर, ती तुक बीस मताय।
गळ अनियम मिळबौ, अेक त्रिपंखौ गाय।।२५४
अरथ
पै’ली तुक मात्रा सोळै। दूजी तुक मात्रा सोळै होय। पै’ली ही दूजी तुकां रा मोहरा मिळै। तुकांत लघु गुरु रौ नेम नहीं। कठे’क गुरु मोहरा, कठे’क लघु मोहरा होय। तुक तीजी मात्रा बीस होय। मोहरौ मिळै नहीं। गुरु लघु तुकांत नेम नहीं। यण रीत सूं च्यार ही दवाळा होय जिण गीत नूं त्रिपंखौ गीत कहै छै।
अथ गीत त्रिपंखौ उदाहरण
गीत
सारंग हण आया अवधेसर, सेसहूंता पूछै राजेस्वर।
किण-विध न दीसै सीत सूनी कुटी।।
काहिल बांण कूक म्रग कीधी, दौड़ लछण अग्या मौ दीधी।
भूप म्हैं नटै जद कटुक कथ भाखिया।।
अह वायक सुण रांम उचारै, वनिता वयण पुरख न विचारै।
करी वन त्री ढली जका भोळप करी।।
अेह कथ सुण बंधव आगी, जंपै सेस ज्वाळा तन जागी।
सत्र कर भंज हूं आंण बंधव सिया।।
भ्राता कंठ लगाड़ै भाई, स्रीबर सुर कज बात सुणाई।
त्रिलोकीराव नर भाव तन विसतारे।।२५५
२५५. सारंग-हरिण। हण-मार कर। अवधेसर-श्री रामचंद्र भगवान। सेसहूंता-लक्ष्मण से। राजेस्वर-राजेश्वर। किण-विध-किस प्रकार। दीसै-दिखाई देता है। सीत-सीता। काहिल-घायल। कूक-पुकार। कीधी-की। लछण-लक्ष्मण। अग्या-आज्ञा। मौ-मुझको। दीधी-दी। जद-जब। कटुक-कटु, कठोर। कथ-वचन। भाखिया-कहे। अह-लक्ष्मण। वायक-वचन। वनिता-स्त्री। वयण-वचन। पुरख-पुरुष। त्री-स्त्री। ढली-छोड़ी। जका-जो। भोळप-भूल। अेह-यह। कथ-वचन। बंधव-भाई। आगी-अगाड़ी। जंपै-कहता है। सेस-लक्ष्मण। ज्वाळा-कोपाग्नि। तन-शरीर। सत्र-शत्रु। भंज-संहार, ध्वंश। हूं-मैं। आंण-ले आऊँ। बंधव-भाई। सिया-सीता। स्रीबर (श्रीवर)-विष्णु, श्री रामचंद्र। सुर-देवता। कज-लिए। त्रिलोकीराव-श्री रामचंद्र।