मृगया-मृगेन्द्र – महाकवि हिंगऴाजदान जी कविया

।।मृगया-मृगेन्द्र।।

।।रचना – महाकवि कविया श्रीहिंगऴाजदानजी।।

अथ मृगया-मृगेन्द्र लिख्यते

।।आर्य्या।।
गंडत्थल मढ लेखा, रजत रोलंभराजि गुंजारन
शोभित भाल सुधान्सु, नमो मेनकात्मजा वन्दन।।1
पर्वतराज की पुत्री के पुत्र गणेश को नमस्कार है जिनके कपोलों पर बहते मद की सुगंध से आकृष्ट हुए भौरों की गुंजार सदा रहती है और जिनके ललाट पर चन्द्रमा सुशोभित है।

।।दोहा।।
गनपति गवरि गिरीश गुरु, परमा पुरुष पुरान।
श्री सरस्वती करनी सकति, देहु उकति वरदान।।2
गणेश, गौर(पार्वती), महादेव, लक्ष्मी, विष्णु, सरस्वती, करणी माता, शक्ति मुझे उक्ति (काव्य रचना) का वर दान दे।
[…]

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मां सूं अरदास – जी. डी. बारहठ(रामपुरिया)

।।छंद-मोतीदाम।।

रटूं दिन रात जपूं तुझ जाप,
अरूं कुण नाद सुणै बिन आप।
नहीं कछु हाथ करै किह जीव,
सजीव सजीव सजीव सजीव।।१।।

लियां तुझ नाम मिटै सब पीर,
पड़ी मझ नाव लगै झट तीर।
तरै तरणीह कियां तुझ याद,
मृजाद मृजाद मृजाद मृजाद।।२।।[…]

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श्री हनुमानजी स्तुति – लींबडी राजकवि शंकरदानजी देथा

।।दोहा।।
संकट मोचन बिरदतें, शोभित परम सुजान।
प्रिय सेवक सियारामके, नमो वीर हनुमान।।

।।छंद मोतीदाम।।
नमो महावीर जली हनुमंत।
धीमंत अनंत शिरोमणी संत।।
नमो विजितंद्रिय वायु कुमार।
अकामि अलोभी अमोहि उदार।।[…]

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रूपग गोगादेजी रो – आढा पहाड़ खान

।।छंद – मोतीदाम।।
वडवार उदार संसार वषाण।
जोधार जूंझार दातार सुजाण।
दला थंभ वीरम तेज दराज।
साजै दिन राजै ऐ सूर समाज।।[…]

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डिंगल़ वाणी में भगवती इंद्र बाई

माँ भगवती लीलाविहारिणी इन्द्रकुँवरी बाईसा का जन्म संवत १९६४ में हुआ था उनके भक्त कवि हिंगऴाजदानजी जागावत ने अवतरण की ऐक प्रसिध्द रचना चिरजा सृजित की है जिसमें विक्रम संवत १९६३ के आश्विन नवरात्रो में माँ हिंगऴाज के स्थान पर सभी देवियों की पार्षद भैरव सहित परिषद लगती है, उस परिषद में भैरव माँ को ज्ञापित करते हैं कि मरूधर देश में अवतार की आवश्कता है, भगवती हिंगऴाज अपनी अनुचरी आवड़ माँ को आदेश देकर सही स्थानादि बताकर मरूधरा में अवतार के लिए प्रेरित करती है व भगवती आवड़ अवतरित हो भक्तवत्सला बनती है अद्भूत कल्पना व शब्दों का संयोजन है रचना में यथाः…..

।।दोहा।।
सम्वत उन्नीसै त्रैसट्यां, साणिकपुर सामान।
शुक्ल पक्ष आसोज में, श्री हिंगऴाज सुथान।।

इसके ठीक नवमास बाद आषाढ शुक्ला नवमी को भगवती का अवतरण निर्दिष्ट स्थान पर हो जाने के बाद विभिन्न कवेसरों ने सहज सुन्दर व सरस सटीक वर्णन किया है यथा कुछ दृष्टान्त:[…]

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मेहाई-महिमा – हिगऴाजदान जी कविया

।।आर्य्या छन्द।।
पुरूष प्रराण प्रकती, पार न पावंत शेष गणपती।
श्रीकरनी जयति सकत्ती, गिरा गो अतीत तो गत्ती।।1।।

।।छप्पय छन्द।।
ओऊंकार अपार, पार जिणरो कुण पावै।
आदि मध्य अवसाण, थकां पिंडा नंह थावै।
निरालम्ब निरलेप, जगतगुरू अन्तरजामी।
रूप रेख बिण राम, नाम जिणरो घणनामी।
सच्चिदानन्द व्यापक सरब,
इच्छा तिण में ऊपजै।
जगदम्ब सकति त्रिसकति जिका,
ब्रह्म प्रकृति माया बजै।।2।।[…]

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हनुमान वंदना

🌺छंद मोतीदाम🌺
असीम! नमो वपुभीम! अनंत!
सुसेवित-सिद्ध-रू-किन्नर संत!
महा वरवीर! महारणधीर!
सदा अनुरक्त-सिया रघुवीर!
कराल! नमो वपु-बाल! कृपाल!
महाभड़! मानस-मंजु-मराल!
महागुणवान! कपीश! महान! नमो हड़ुमान नमो हड़ुमान! १[…]

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सिंझ्या वेळा री माताजी री स्तुति – कवि देवीदानजी खिडीया धामाय कच्छ

॥छंद: मोतीदाम॥
बजे वर मंदिर मैं डफ डाक।
हुवे तित धूपन की धमछाक।
झनंकत झांझ मृदंग बजंत।
घणारव मंदिर घंट बजंत॥1॥
गजे घन आरतीकी घनघोर।
बजै बहु जोरसौ नौबत शोर।
जुरै तित जोगिनी जुथ्थ हजार।
रचे वर मंडल रास अपार॥2॥[…]

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मां सूं अरदास -गिरधारी दान रामपुरिया

छंद – मोतीदाम

रटूं दिन रात जपूं तुझ जाप,
अरूं कुण नाद सुणै बिन आप
नहीं कछु हाथ करे किह जीव,
सजीव सजीव सजीव सजीव ।।1

लियां तुझ नांम मिटे सब पीर ,
पङी मझ नाव लगे झट तीर ।
तरै तरणीह कियां तुझ याद ,
मृजाद मृजाद मृजाद मृजाद ।।2 […]

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