जोगण जूनी जाळ
आभ धरा अवलंब, खंभ खरो जगदंब थूं।
थूं टेको थूं थंब, आखा जग रो आवडा॥1
रमती चाळकराय, मन रँग थळ में मावडी।
सुकवि रहै सहाय, बीस हथी वरदायिनी॥2
जोगण जूनी जाळ, प्रतपाळक पुहमी तणी।
चाळकने चरिताळ,आप बिराजी आवडा॥3 […]
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आभ धरा अवलंब, खंभ खरो जगदंब थूं।
थूं टेको थूं थंब, आखा जग रो आवडा॥1
रमती चाळकराय, मन रँग थळ में मावडी।
सुकवि रहै सहाय, बीस हथी वरदायिनी॥2
जोगण जूनी जाळ, प्रतपाळक पुहमी तणी।
चाळकने चरिताळ,आप बिराजी आवडा॥3 […]
गीर रा गाढ ओरण रे मांय एक जगह है जिणरो नाम सांप नेस है। उठै भगवती आवड जी रो थान है। मैं मारी रचना “आवड आखै आसिया” रे मांय उण जगह री प्राकृतिक छटा रो वर्णन दोहा , सोरठा, तुंबेरा दोहा अर बडा दूहा रे माध्यम सुं करण री कोशिश करी है। आप सब लोगों सारू औ रचना सादर । […]
» Read moreनाम लेय नामी भयी,जग बाजी जगदंब।
उण करनल री इष्ट जो,वा वड आवड रंग॥97
जिणनें सब जग में नमें,दीन अर दुखी दबंग।
तखत तेमडै जो तपै,वा वड आवड रंग॥98
लोवड सूर लुकावियो,भाई डसत भुजंग।
खरी खोडली री बहन,मावड आवड रंग॥99
रवि रथ सगती रोकियो,देख’र दुनिया दंग।
चारण कुळ अँजसावणी,मावड आवड रंग॥100[…]
राजस्थानी डिंगल़ साहित्य री साधना में जिकै साहित्य साधक लागोड़ा है वै नाम री नीं काम री वाट बैय रैया है।इणां री रचनावां में राजस्थान रै इतिहास, संस्कृति अर लोक भावनावां री सजोरी व्याख्या होई है।भक्ति ,संस्कृति अर प्रकृति रै पेटै इणां आपरी कलम रो कमाल दिखायो है।म्हारा कीं दूहा ऐड़ै ई साहित्य साधकां नैं समर्पित-
दूहा
गोविंद सुत कवियो गुणी, वसू वडो विद्वान।
गिरा गरिमा गजब्ब री, दाटक शक्तिदान।।१ […]
मढ में आवड मात रे, बजै ढोल तोतींग।
धींगड धींगड धींग ध्रं, धींगड धींगड धींग।।177
मढ में आवड मात रे, मोटो बजै मृदंग।
तिरकिट तिरकिट तुम ततक, तिरकिट तिरकिट तंग।।178
मढ में आवड मात रे, झालर बजै विराट।
झणणण झणणण झणण झण, झणण झणण झणणाट।।179
मढ में आवड मात रे, थाळी वजै अनंत।
थणणण थणणण थणण थण, थणण थणण थण थंत।।180[…]
पंथ विकट पाळो चलण, माथे अनड मुकाम।
हुकम करो हिंगळाज मां, हिये दरस री हाम॥1
मन मंदिर मँह मावडी, करता रोज मुकाम।
महर करो माजी हमें, हिये दरस री हाम॥2
अलख निरंजन री सखी, अनपूरण अभिराम।
धरा कोहला री धणी, हिये दरस री हाम॥3 […]
आदरणीय मोहनसिंहजी रतनू री पंक्ति “हाल पिया हरिद्वार” माथै कीं दूहा -गिरधरदान रतनू दासोड़ी
पाप प्रखालण प्रेम सूं,समझ जीवण रो सार।
दीनबंधु रै दरस कज,हाल पिया हरद्वार।।१
नावण गंगा नेम सूं,धावण माधव धार।
पावन संतां परसवा,हाल पिया हरिद्वार।।२
गंगा पावन लहर गुण,सबरो करै सुधार।
जबरो तीरथ जोयबा,हाल पिया हरिद्वार।।३ […]
रस मय कविता गागरी, छलके दोहा छंद।
डिंगळ री डणकार में, आठ पोर आणंद॥1
मन रो नाचै मोरियौ, आठ पोर अणमाप।
डिंगळ री डणकार में, डफ मृदंग री थाप॥2
वीण पाणि वर दायिनी, बसती अठे विशेस।
आठूं पोर उछाळती,कविता रतन हमेश॥3 […]
शबद अमीणौ साइनो, मै शबदां रो पीर।
करुं शबद आराधना, सुरसत रे मंदीर॥1
शबद दरद, अहसास मन, वाणी, ध्वनि, लय, छंद।
यति, गति मय विध रुप धर, उर बगसे आणंद॥2
म्हूं शबदां रो जोहरी, कविता नवलख हार।
पोयी लडियां शबद री, “शारद कर स्वीकार”॥3 […]
आई मोगल चालीसा
(कवि परताप री कही)
जगदंबा जगदीशरी, मोगल मोरी मात।
भव भय हरणी अंबिका, समपी तौने जात॥1॥
देवी चारण जात री, जग पुजाती बाइ।
ओखा धर उजवाळवा, मोगल प्रगटी आइ॥2॥
आद भवानी इशरी, प्रगटी जिण दन वार।
भगतां रो मंगळ हुओ, जग मांहि जयकार॥3॥ […]