ग़ज़ल – जब जब मौसम – राजेश विद्रोही (राजूदान जी खिडिया)

जब जब मौसम में तब्दीली होती है।
सुबह सुरीली शाम नशीली होती है।।
मंजिल से बाबस्ता होती जो राहें।
वो राहें अक्सर पथरीली होती हैं।।
जब जब मेरी दांयीं आंख फड़कती है।
मां की आंखें तब तब गीली होती है।।[…]