कवित्त करणीजी रा

वय पाय थाकी हाकी न केहर सकै शीघ्र
कान न ते सुने नहीं किसको पुकारूं मैं
चखन तें सुझै नहीं संतन उदासी मुख
कौन ढिग जाय अब अश्रुन ढिगारुं मैं
तेरे बिन मेरो कौन अब तो बताओ मात
दृष्टि मे न आत दूजो हिय धीर धारूं मै
कहै गीध चरणन मे छांह मिले थिर
शरण जननी की फिर मन को न मारूं मै १ […]