रँग शीलां रखवाल़िया,जोर झिणकली झाड़!!

एक जमानो हो जद अठै रा नर-नारी मरट सूं जीवण जीवता अर सत रै साथै पत रै मारग बैवता। हालांकै धरती बीज गमावै नीं आज ई ऐड़ा लोग है जद ई तो ओ आकाश बिनां थांभै ऊभो है अर ऐड़ै नर-नाहरां री बातां हालै। पण उण दिनां री बातां बीजी ही। बीसवैं सईकै री बात है भाडली(जैसल़मेर) रा भाटी रुघजी मानसिंहजी रा (रुघराजजी /रुघनाथजी) धाट रै गांम छौल़ रै सोढा संग्रामसिंह अमरसिंह रां रै परण्योड़ा हुता। सोढीजी रो नाम गीतांकंवर हो। उणां री जोड़ायत सोढीजी, एक’र आपरै पीहर छौल़ गयोड़ा हा। रुघजी रै रावल़ै बात चाली कै सोढीजी नै आणो(लेने के लिए) मेलियो जावै। बात तय हुई कै जोगराजजी बीठू नै मेलिया जावै। वै जावै अर सोढीजी नै ले आवै। जोगराजजी नै बुलाय’र मा सा कह्यो कै- “बाजीसा आप ऊँठ लेय’र पधारो अर छौल़ जाय’र बीनणीसा नै ले आवो। आप तो उणरै माईत हो सो नीं उणरै संकोच री बात नीं आपरै।”[…]

» Read more

रे बाजे समदर तीरां

।।गीत जात बुध चित्त विलास।।

रे बाजे समदर तीरां!
मादल़ डफ चंग झांझ मंजीरा!
नवलख संग नित रास रमे रव गूंजे गगन गंभीरा!
घरर घरर समदर घुघवाटे,निरमल़ उछल़त नीरा!
समदर तीरा![…]

» Read more

जोग माया रो गीत सपाखरु – कविराज लांगीदास जी

देवी झंगरेची, वन्नरेची, जळेची, थळेची देवी;
मढेची, गढेची देवी पादरेची माय।
कोठेची वडेची देवी सेवगाँ सहाय करे,
रवेची चाळक्कनेची डूँगरेची राय।।1[…]

» Read more

देवी स्तुति

जय जग जननी! आसुर हननी! विश्व विनोदिनी! अंबा!
जगत पालिनी देवि! दयालिनी!, ललिता! मां! भुजलंबा!!१

विपद विदारिणी! त्रिभुवन तारिणी! नेह निहारिणी! करणी!
पातक हरणी! अशरण शरणी! तारण भव जल तरणी!!२

सिंहारूढ! अगम अतिगूढा! सकल सुमंगल दानी!
वंदन बीसभुजी! वरदायिनि!, भैरवी! भवा! भवानी!!३[…]

» Read more

नवदुर्गा वंदना – कवि स्व. अजयदान जी लखदान जी रोहड़िया मलावा

शैलपुत्री जय शिवप्रिया, प्रणतपालिनी पाहि।
निज अपत्य टेरत तुझे, त्राहि त्राहि मां त्राहि।।१
जयति जयति ब्रह्मचारिणी, बीज सरूपिणी बानि।
विषम समय पर राखिये, प्रियजन के सिर पानि।।२
चारू चंद्र घंटा सुमति, प्रणति देहु कर प्रीति।
भवभय भंजनी भंजिए, ईति, भीति अनीति।।३
कुषुमांडा बिनती करत, सेवक करहु सुयोग।
कल्याणी अरु काटिये, कल्मष, कष्ट, कुयोग।।४[…]

» Read more

मेहाई सतसई – नरपत आसिया “वैतालिक”

मेहाई सतसई

कवि नरपत आसिया “वैतालिक” कृत

अमर शबद रा बोकडा, रमता मेल्या राज।
आई थारे आंगणैं, मेहाई महराज॥
(शब्द रूपी अमर बकरा हे माँ आई मेहाई महराज आपरा मढ रे आंगण में रमता मेल रियो हूँ।)

» Read more

आधशगति उमिया माताजी री स्तुति – कवि मुळदानजी तेजमालजी रोहडिया (जामथडा कच्छ)

।।छंद – सारसी।।
तुंही रुद्राणी, व्रहमाणी, विश्व जाणी, वज्जरा।
चाळळकनेची, तुं रवेची, डुँगरेची, छप्परा।
विशां भुजाळी, वक्र वाळी, त्रिशूळाळी त्रम्मया।
वेदां वदंती, सारसत्ती, आध शगति उमिया।।1[…]

» Read more
1 2 3 4 5 11