माताजी के कवित्त – अज्ञात कवि
जाके सुर शरन को वंदत चरन मुनी निगम नाहिं गम वाके नर नारी की।
खगपति बैलपति कमलयोनि गजपति गावै पै न पावै गति जग महतारी की।
एरे मन मोरे बोरे काहे को उदास होत धरे क्यों न आश अम्बेदास सुखकारी की।
दोय भुज वारे नर शरन बचाय लेत गही है शरन मैं तो बीसभुज वारी की।। […]