नाग अर मिनख

भूंड रो ठीकरो
क्यूं फोड़ै है मिनख नाग रै माथै
नाग इतरो नुगरो नीं होवै!
जितरो अेै ,बोलण वाळा,बता रैया है
आपरै सुगरापणै रो डूरो बैचण सारू
थांनै तो ठाह है शायद
कै
नाग री राख सकां हां निगै
बच सका हां […]

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आखर रा उमराव

आखर रा उमराव रे, नित मन बजै नगाड।
कवित लोग उणने कहै, धींगड धींगड धाड॥1
आखर रा उमराव रे, मन कोलाहल होय।
जिण ने कुछ कहता कवित, ध्वनि प्रदूषण कोय॥2
आखर रा उमराव रे, मन मे नाचै मोर।
मलजी नाठौ मेल ने, गजबण आबू और॥3 […]

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कवि ने सिर कटवाया पर सम्मान नहीं खोया

अक्सर लोग चारण कवियों पर आरोप लगा देते है कि वे राजपूत वीरों की अपनी रचनाओं में झूंठी वीरता का बखाण करते थे पर ऐसा नहीं था| राजपूत शासन काल में सिर्फ चारण कवि ही ऐसे होते थे जो निडर होकर अपनी बात अपनी कविता में किसी भी राजा को कह डालते थे| यदि राजा ने कोई भी गलत निर्णय किया होता था तो उसके विरोध में चारण कवि राजा को हड़काते हुए अपनी कविता कह डालते थे| ऐसे अनेक उदाहरणों से इतिहास भरा है | ऐसा ही एक उदाहरण यहाँ प्रस्तुत है जो जाहिर करता है कि चारण कवि […]

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अपसूंण – चंद्रप्रकास देवल

सईकां लांबी
उण धा काळी रात रै सूटापै
सैचन्नण चांनणै
नाचण रै कोड सूं पग मांडिया ई हा
मादळ रओ आटौ थेपड़ियौ हौ आलौ कर
थाळी सारू डाकौ सोध्यौ हौ
के चांणचक म्हे-
आजादी रै मंगळ परभात
अमंगळ व्हैग्यौ ।

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