जवानां

जीवण असली जंग जवानां,
जंग जुट्यां ही रंग जवानां।
रण नैं छोडणियां निरभागी,
कोई न वांरै संग जवानां।
जीवटता नैं सौ जग पूजै,
आंकस राखो अंग जवानां।
खाडा, पाथर, काँटा, आंटा,
आं सूं डरै अपंग जवानां।[…]

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क्रोड नमन किरमाल़

खल़ पर खीजै खार कर, खय करवा खुंखार।
भय हरणी रण रंजणी, तनें नमन तलवार।।१
अशरणशरणी अंबिका, हुई सदा रह हाथ।
रे!रणचंडी रीझजै, मनसुध नामूं माथ।।२
धावड बण बिच ध्रागडै, सूरां रखै संभाल़।
रणचंडी! खंडी खल़ां, , करूं नमन किरमाल़।।३[…]

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🌺वाह! जवानां🌺 – कारगिल माथै कवि वीरेन्द्र लखावत कृत एक गजल

कढ करगिल परवांन जवानां वाह जवानां।
भारत री थै शान जवानां वाह जवानां ।
जग ने दियौ जताय भीम भारत री फौजां,
जस चढ्यौ असमान जवानां वाह जवानां।
भुल्यौ भगनी भ्रात बंध्यो हित देश बचावण,
धी रौ कियौ न ध्यान जवानां वाह जवानां।[…]

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सोढै ऊमरकोट रै, सिर पड़ियां बाहीह !

किणी राजस्थानी कवि रो ओ दूहो कितरो सतोलो है कै-

हीरा नह निपजै अठै, नह मोती निपजंत।
सिर पड़ियां खग सामणा, इण धरती उपजंत।।

आजरै संदर्भ में ओ दूहो भलांई केवल एक गर्विली उक्ति लागती हुसी जिणरै माध्यम सूं कवि आपरी मातृभूमि री अंजसजोग बडाई करी है पण जिण कवियां इण भावां रै मार्फत परवर्ती पीढी नै प्रेरणा दी है तो कोई न कोई तो कारण रह्यो ई हुसी। सूर्यमल्लजी मीसण लिखै–

बिन माथै बाढै दल़ां, पोढै करज उतार।
तिण सूरां रो नाम ले, भड़ बांधै तरवार।।[…]

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ચારણ-કન્યા

ચારણ—કન્યા !
ચૌદ વરસની ચારણ કન્યા
ચૂંદડિયાળી ચારણ કન્યા

શ્વેતસુંવાળી ચારણ-કન્યા

બાળી ભોળી ચારણ-કન્યા
લાલ હીંગોળી ચારણ-કન્યા
ઝાડ ચડંતી ચારણ-કન્યા
પહાડ ઘુમંતી ચારણ—કન્યા
જોબનવંતી ચારણ-કન્યા
આગ-ઝરંતી ચારણ-કન્યા
નેસ-નિવાસી ચારણ-કન્યા […]

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वंदनीय वीर बलूजी चांपावत रा छंद

।।छंद रेंणकी।।
चावो गोपाल़ चहुंदिस चांपो, सुतन आठ घर थाट सही।
सांप्रत रजवाट हाट उर साहस, मोद कोम जस खाट मही।
दुसमण दल़ दाट कोट नव दुणियर, भड़ अड़ लीधी आप भलू।
तोड़ण मुगलांण मांण कज तणियो, वणियो मरवा वींद बलू।।1 […]

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कुळ चारण लुळ नमन करै

हल़्दीघाटी अर स्वतंत्रता आंदोलन रै सौदा सूरां नैं समर्पित एक छंद –

।।छंद – रेंणकी।।
पातल रै उपर पातसा अकबर
दूठ जदै गज ठेल दिया।
सधरै पिंडपाण साहस सूं सूरै
लेस बीह बिन झेल लिया।
सौदा तिण दीह वंस रा सूरज
केसव जसियो मरण करै
सौदा परिवार सिरोमण सारै
कुळ चारण लुळ नमन करै।।1[…]

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इणनैं ईज कैता रजपूती

हींणप नहीं लाता संकट में, मन में हद धरता मजबूती।
सिर पड़ियां सूरा रण लड़ता, इणनैं ईज कैता रजपूती।।
पचिया बै देखो दिन रातां, भारत रो गौरव मंडण नैं।
परजा हित रक्षण रण बुवा, बै आततायां नैं डंडण नैं।
झुकिया नीं माथो दे दीनो, पण आंण बांण नैं राखी ही।
रगत सटै इज्जत बा देखो, मा बैनां री राखी ही।
महारिसी त्याग री मूरत, छिड़ियां बै विकराल़ होया।

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महाराणा प्रताप रौ जस – कवि स्व. भँवरदान जी वीठू “मधुकर” (झणकली)

उतर दियौ उदीयाण दिन पलट्यौ पल़टी दूणी।
पातल़ थंभ प्रमाण़ शैल गुफावा संचरीयौ।

मिल़ीयौ मैध मला़र मुगला री लशकर माय।
कलपै राज कुमार मैहला़ चालौ मावड़ी।

महल रजै महाराण कन्दरावा डैरा किया।
पौढण सैज पाखांण हिन्दुवां सुरज हालीया।

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प्रताप पच्चीसी

।।दूहा।।
मुरदा सूता माल़ियां,अकबर वाल़ी ओट।
पौरस धरियो पातलै,कर झूंपड़ियां कोट।।1
धरा केक दे धीवड़्यां,दीन केक बण दास।
आतप मुगलां आपियो,भल़हल़ पातल भास।.2
वसुधा देयर बेटियां,धुर राखी चितधार।
ज्या़ंरो जग म़ें जोयलो,लधै न नाम लिगार।।3

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