🌹श्री ध्यान चिंतामणि घनश्यामाष्टक🌹
देखत बड भाग लाग, पोत सरस नवल पाग,
अंतर अनुराग जाग, छबि अथाग भारी।
अति विशाल तिलक भाल, निरखत जन हो निहाल,
उन्नत त्रय रेख जाल, काल व्याल हारी।
विलसत भुँह श्याम वंक, चिंतत उर जात शंक,
मृग मद भर बीच पंक, अंक भ्रमर ग्यानी।
जय जय घनश्याम श्याम, अंबुज द्रग क्रत उदाम,
सुंदर सुखधाम नाम, साँवरे गुमानी॥१