गजल: वो स्वराज कद आसी काका

कितरो कूड़ बुलासी काका
कित्ती कसमां खासी काका
गिणतां गिणतां घिस्या पेरवा,
वो स्वराज कद आसी काका।

आंख्यां सगळो भेद उघाड़्यो,
अब किम साच छुपासी काका।
मिंदर बण्या न पुजारी आया,
कद तक घंट घुरासी काका।

नोट वोट पर भारी पड़ग्या,
लोकतंत्र लूट जासी काका।
ओजूं एक चुनाव आयगो,
गाँव गींड करवासी काका।

गोचर दाब छापली ग़ोहरां,
ओ है पंथ विकासी काका।
मरै जकां रा किसा मुहूरत,
के मगहर के काशी काका।

फरज छोड़ सुन्नत गळ भागै,
किण गत जन्नत पासी काका।
भायां सूं लेवै भचभेड़्यां,
अड़ी पड़्यां पछतासी काका।

कद सरपंच विधायक सांसद,
साचो फरज निभासी काका।
ओ तूंबां रो भारो थारो
है खारो, खिंड जासी काका।

दोय मेट, मस्टोल एक है,
कुण नैं नाम लिखासी काका।
देखी सो ‘गजराज’ दाख दी,
गौर कियां गुण गासी काका।।

~~डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’ नाथूसर

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