चिरजा – मोहन सिंह रतनू

।। चिरजा ।।

मनवा मात सुमर जग मोंही थारो अवसर जाय अकाजा….टेर

दिल सुध सू आवे दुखियारी,देसनोक दरवाजा ।
रोग दोस हर मात रूखाले,तन कर देवे ताजा ।। मनवा….१

ढोल नगारा झालर ढोलक,बाजे नोबत बाजा ।
चिरजा छंद सुणावे चारण,भक्तन के हिय भाजा ।। मनवा….२ […]

» Read more

गोगा गुणमाळा

।।छंद रेंणकी।।
आयो दळ उरड़ गजन रो इळ पर, मुरड़ दूठ हिंदवाण मही।
जबरा जोधार राखिया झुरड़ै, सबळ कितां नै दुरड़ सही।
कितरां नै मुरड़ खायग्यो किलमो, चुरड़ पीयग्यो रगत चठै
भारत रो रिछक गोग भड़ भिड़ियो, जंग छिड़ियो जिणवार जठै।।1[…]

» Read more

मांझल रात अमोल-वैतालिक

सौ कोसां साजन बसे, पूगावै उण पोळ।

सुपना वाळ सुहामणी, मांझल रात अमोल॥1

बालम तौ जालम घणौ, करतौ टाळम टौळ।

(पण) सुपने सजण मिलावती, मांझल रात अमोल॥2

इक चंदौ आकाश में, दूजौ रंग रे म्हौल।

झिल मिल झिल मिल जोसना, मांझल रात अमोल॥3 […]

» Read more

काल़िया के सोरठे-शंभू दान बारठ कजोई

पाल़ै सदा हि प्रीत,अबखी वेल़ा आयने।
मानो साचो मीत,कल़जुग मांही काल़िया।।१।।
गफलत मांय गंवार,लङे अपणोंं सु लोक में।
सम्पती मे ही सार,कल़जुग मांही काल़िया।।२।।
लगनी नित लगाय,हरि ने सिमरे हेत सूं।
निरफल जासी नांय,करणी वांरी काल़िया।।३।। […]

» Read more

साहित्य सेवी अर देवी उपासक श्री मोरारदानजी सुरताणिया रै सम्मान में दूहा

आदरणीय साहित्य सेवी अर देवी उपासक श्री मोरारदानजी सुरताणिया रै सम्मान में कीं दूहा म्हारै कानी सूं भेंट

सत साहित री साधना, सकव करै सतकार।
स्नेह भाव सुरताणियो, मनसुध रखै मुरार।।१

करै साहित री केवटा, सरस ग्रहै मनसार।
सजन साच सुरताणियो, मनसुध रखै मुरार।।२

सैण सँवारै वैण सह, उर में प्रीत अपार।
सौ कोसां सुरणाणियो, नैड़ो लगै मुरार।।३ […]

» Read more

गीत सोहणो, शक्तिदानजी कविया (बिराई) रो

गीत सोहणो, शक्तिदानजी कविया (बिराई) रो गिरधरदान रतनू ‘दासोड़ी’ कृत

गोविंद सुतन बिराई गुणियण, सगत कवि कवियांण सिरै।
मोटा पात वरण सह मांनै, कीरत सारी धरण करै।।
कथिया विमळ कायब इम कवियै, कायम है सो बात कही।
जाझा मांण महि सह जांणै, सारद बगसी बांण सही।।
आगर गुण आखां अनुरागी, गाहक भागी साच गुणां।
पागी कवत्त डींगळा पूरो, सुरसत सागी सुवन सुणां।। […]

» Read more

काळिया के सोरठे

सोरठा
पैला वाल़ी प्रीत ,सबदां में सिमटी परी।
रजवट वाल़ी रीत ,कहण सुणण री काल़िया।।१

सजन बैठ सतसंग,निरमल़ मन कीधो नहीं।
गहर नाय नित गंग ,कारी लगै न काल़िया।।२

आदर रू अपमान,लिखदी विधना लीकड़ी
मनसुध साची मान,कुण लोपेला काल़िया।।३ […]

» Read more

काळिया रा सोरठा

गळ विच गूंजामाळ,मोर पंख रो मौड सिर।
रहजै थूं रखवाळ,करूणा सागर काळिया॥1
कविता बाग-कळीह,सौरम देवै सांतरी।
भावां शबद भरीह,केवूं साची काळिया॥2
अनहद नद बध बध बहै,अंतस होय अणंद।
दूहा सोरठा छंद,कल कल धारा काळिया॥3 […]

» Read more

ख्यात आईनाथ री अनोपो वखाणे-अनोप जी वीठू

श्री सुरसती गणपति वृहसपति शारदा,उकति सम्मपो अन्नदाता।
सापतातम्म री वारता सुणावां,मोतीवाळी हुई जगत माता॥1

हेमाळा पहाड सुं निसरे हालतो,गळियोडा बरफ रो नीर गोटो।
हिंद अर सिन्ध रै बीच मंह होयनै,मोतियां भरोडो पेट मोटो॥2

तिब्बत कम्बोज सुं उतरे ताकडो,हाकडो नांम दरियाव हाले।
घिरोळा देवतो बण्यो घण घमंडी,रतन रतनाकरो मांय राळै॥3 […]

» Read more
1 2 3 4 8