गीत – जांगड़ो चंदू माऊ नै अरज

।।गीत  – जांगड़ो।।
मो मन रो सोच मेटजै माता, दादी आगल दाखूं।
हूं तो एक एकेलो हरदम, लारै जुलमी लाखूं।।१

आखूं कथ म्हारी किण आगै, तन लेवै सह टाल़ी।
साच धणी ऊदाई साभल़, पख पूगै झट पाल़ी।।२

सिरकै सिला तूझ सूं सांप्रत, मिटसी गिला मिहारी
दूजां विश्वास करूं न दिल में, थिर आसा इक थारी।।३[…]

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गीत चंदू माऊ नै अरज

प्रहास साणोर
सच साद तूं ऊदाई सांभल़ै सँतरी,जाणगर मरम री सरव जाणै।
शरम नै रखावण आवजै सहायक,ताकड़ो होफरी जोर ताणै।।१

डूबर्यो कवि दुख दधि में डोकरी,छोकरै तणै ओ साद छेलो।
विनासण विघन नै बावड़ै बीसहथ,हांमल़ी मावड़ी सांभ हेलो।।२ […]

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यादों की देवी तुझै

गडियोडो धन थूं सखी, पडियौ मन संदूक।

खडो रहै प्हौरो भरूं, हाथ-कलम-बंदूक॥1

(गडा खजाना तू सखी, पडा मनोसंदूक।

खडा खडा पहरा भरुं, तान कलम -बंदूक॥1) […]

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गीत जात अरटीयो-जगमाल सिंह ‘ज्वाला’ कृत

सोच रहयो हर रोज सीतावर, कैसा खेल रचाया।
मिळे कठे हर खोजो मंदिर,अजु समझ नही आया।1।

लोग कहे ओ मीरां ने लाधो,सुरती जाय समाणी।
आवत जात दिखी नह आँखे,पाणी मिळयो पाणी।2।

ईसर दास तो हतो खुद ईसर,घोडा समद धुमाया।
परभु य आय बांह ते पकड़ी,ले झट गळे लगाया।3। […]

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अनीति सार – जगमाल सिंह ‘ज्वाला’कृत

🌷गीत सोरठियो🌷
करनल सामेय भिड़े कानो ज,भाग थारा भाळ।
मौन होयने य सुणजोय मानव,केम खींचे काळ।1

गामेय सामो ज भगेय गीदड़,मौत नेड़ी मान।
अकल चरवान जाय ऊखरड़ेय,उलट सूझे आन।2।

रावण सरीखोंय कोइ न राजा,घाली सीता घात।
धमरोळ लंकाय दीधी धमचक,वसु अजे विख्यात।3। […]

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शक्ति बाण पर राम की मनोदशा – जगमाल सिंह ज्वाला

पाप कियो विधना तु पशुव्रत, लोक त्रिलोक ज आज सुलाने।
बांह उखाड़ लई मुझ बांधव, बाट करी मुझ काळ बुलाने।
हे ‘जगमाल’ जवाब नही अब, आगळ कोशल नंद उलाने।
काळज काढ़ रुवे करुणाकर, भ्रातज आगळ सोय भुलाने।1। […]

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नर ग्या चढा वँश रै नीर

गीत वेलियो
पत री बह राह अपत नै परहर, सत री कह समझनै सार।
कूड़ी कथ त्याग भजै किरता, सो जन लेवै जनम सुधार।।१

हर रो नाम राख हिरदै में, गलवै मधुर उचारै गीत।
भल वै बज्या सांप्रत भाई, जो वै गया जमारो जीत।।२ […]

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पोकरपुरी बाबै रो छंद

छंद त्रिभंगी
तज मोह संसारी तूं तपधारी, तपियो भारी ताप तदम
देखै दुखियारी हर दुख हारी, जोर विचारी दया जदम
प्रणमै नर नारी आय अपारी, साद उवांरी तुरत सुणै
अरजी सुण आबा लाज रखाबा, पोकर बाबा भीर बणै १ […]

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काव्यमय कुमकुम पत्रिका

कवि नरपत आसिया “वैतालिक” का विवाह ११ दिसंबर १९९९ को सांबरडा गुजरात में सुखदेव सिंह जी रामसिंह जी गढवी की सुपुत्री लता(चेतना) से हुआ। आपका गांव खाण और पारिवारिक नाम नरेश है। पिताजी का नाम आवडदानजी है। नरपत जी चाहते थे कि उनकी शादी की कुमकुम पत्री काव्यमय हो इसी आशय से उन्होंने अपने नाना श्री अजयदान जी लखदान जी रोहडिया मलावा जो स्वयं अपने जमाने के एक सम्मानित कवि रहे हैं  आग्रह किया कि वे उनकी शादी की कुमकुम पत्रिका कविता में बनाकर दे। उनके इस अनुरोध पर नानाजी ने पांच सवैया बनाकर भेजे जो इस प्रकार से हैं। यह […]

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किसै धर्म री बात करै तूं ?

किसै धर्म री बात करै तूं?
बात- बात में घात करै तूं!
मिनख मारणो बोल बेलीड़ा।
किसै देव री जात करै तूं?
ओ तो किसो लांठापो थारो?
खुद सूं खुद नै मात करै तूं!
सोनै रो संसार उजाड़ै !
पीतल़ ऊपर पात करै तूं? […]

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