एक किस्सो है ‘किनियां री बस्ती’ (किनियां रो गांम, बीकानेर) रो। घणै वरसां पैली किनियां री बस्ती रा चेलोजी किनिया आपरै घोड़े चढिया खेतां सूं गांम कानी जावती बगत आपरो घोड़ो एक नाडियै माथै पावण लागा तो उणां नै अचाणचक एक ओपरी छाया दीसी।
विशालकाय छाया मिनख वाणी में बोली कै ‘चेला तूं लांठो मिनख है भाई ! म्हनै पाणी पा ! वरसां सूं तिस मर रैयो हूं !’
एकर तो चेलेजी रै समझ में नीं आई पण दूजै पल बे समझग्या कै कोई भूता चाल़ो है। चेलोजी बिनां डरियां बोलिया ‘ओ नाडियो थारै आगे पड़ियो, पीवै नीं पाणी। कुण हाथ झालै ?’
‘म्हैं इंयां पाणी नीं पी सकूं, पाणी तो तूं पगां हेठकर फेंकेला जद म्हैं पी सकूंला। ‘ बा छाया बोली।[…]
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