रंग! रे दोहा रंग! – हंस की अन्योक्ति

आज कल सोशियल मीडिया साहित्यिक ज्ञान के आदान प्रदान का एक सशक्त माध्यम बना हुआ है। सोशियल मीडिया पर ट्वीटर पर हाल ही में प्रताप सोमवंशी साहब जो कि दैनिक हिंदुस्तान में वरिष्ठ संपादक है और देश के बहुत ही उम्दा शायरों में शुमार एक शायर हैं, नें कुछ दिन पूर्व जब एक लोक दोहा जो हंस पर था वह शेयर किया जो उन्होंनें 1959 में कुतुर्उरल एन हैदर द्वारा लिखी किताब “आग का दरिया” में पढा था। दोहा कुछ यूं था।
ताल सूख पत्थर भयो, हंस कहीँ न जाय।
पीत पुरानी कारणे, चुन-चुन कांकर खाय।।
तो इस दोहे की वजह से उनसे साहित्यिक संवाद का स्वर्णिम अवसर मिला और मुझे लगा कि क्यों न हंस पर लिखे अन्य अन्योक्ति परक प्राचीन दोहे जो मेरे संज्ञान में है सुधि पाठकों के बीच साझा किये जाएँ ?[…]
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