पांडव यशेन्दु चन्द्रिका – चतुर्दश मयूख

।।चतुर्दश मयूख।। कर्णपर्व (उत्तरार्द्ध) दोहा अर्जुन के द्रष्ट न पर्यो, धर्मपुत्र ध्वजदंड। कह्यो भीम तैं शोधि करि, कित हैं नृप बलबंड।।१।। संजय बताने लगा कि हे राजा! दुःशासन के वध के पश्चात् अर्जुन ने रणभूमि में चारों ओर देखा और जब उसे युधिष्ठिर का ध्वजदंड नजर नहीं आया तो उसने भीमसेन से पूछा कि हे भाई! बलवान धर्मराज कहाँ हैं? जाओ उनकी खबर लाओ। भीमोवाच मो अरि भर्गल मानिहैं, तुम ही शोधहु तात। आयो डेरन बीच रथ, लखि नृप चित हरखात।।२।। यह सुन कर भीमसेन ने कहा कि हे भाई! मेरे जाने से शत्रु यह कहेंगे कि मैं भाग गया […]

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आज जीवन गीत बनने जा रहा है !

आज जीवन गीत बनने जा रहा है !
ज़िंदगी के इस जलधि में ज्वार फिर से आ रहा है !

छा गई थी मौन पतझड़ की उदासी,
गान जब से बन गए मेरे प्रवासी !
आज उनको मुरलिका में पुनः कोई गा रहा है !
आज जीवन गीत बनने जा रहा है ![…]

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पांडव यशेन्दु चन्द्रिका – त्रयोदश मयूख

।।त्रयोदश मयूख।। कर्णपर्व (पूर्वार्द्ध) वैशंपायन उवाच दोहा लखि द्वै दिन को युद्ध पुनि, संजय परम सयान। कहि नृप तैं तव पुत्र को, कट्यो कर्न तनत्रान।।१।। वैशंपायन कहने लगे, हे जन्मेजय! फिर दो दिन का युद्ध देख कर परम सुजान संजय ने हस्तिनापुर में आ कर, धृतराष्ट्र से कहा कि तुम्हारे पुत्र का कवच वह कर्ण आज फट (मारा) गया। संजय उवाच कवित्त भीम वाडवागि जाको नेक हू न कीनो भय, सात्यकि तिमिंगल को त्रास हू न मान्यो राज। नकुल सहदेव धृष्टद्युम्न रु शिखंडी जैसे, महाबाहु ग्राहन को चिंत्यौ ना कछू इलाज। किरीटी के कोप वायु चंड खंड खंड कीनी, गांजिव […]

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भव का नव निर्माण करो हे !

भव का नव निर्माण करो हे !
यद्यपि बदल चुकी हैं कुछ भौगोलिक सीमा रेखाएँ;
पर घिरे हुए हो तुम अब भी इस घिसी व्यवस्था की बोदी लक्ष्मण लकीर से !
रुद्ध हो गया जीवन का अविकल प्रवाह तो;
और भर गया कीचड़ के लघु कृमि कीटों से गलित पुरातन संस्कृति का यह गन्दा पोखर ![…]

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Learning

🌺डोकरी – गज़ल🌺 नरपत आसिया “वैतालिक” बैठी घर रे बार डोकरी! किणनें रही निहार डोकरी! हेत हथाई अपणायत री, टाबर रे रसधार डोकरी! गिरधरदान रतनू “दासोड़ी” थाकी बैठी आज डोकरी। राखी घर री लाज डोकरी।। वडकां बांधी, भुजबल पोखी। काण कायदै पाज डोकरी।। डॉ गजादान चारण “शक्तिसुत” हाथां पकड़्यो भाल डोकरी मोडा खाग्या माल डोकरी हेत जताकर जमीं हड़प ली, फंसी कुजरबी चाल डोकरी।

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पांडव यशेन्दु चन्द्रिका – द्वादश मयूख

।।द्वादश मयूख।। द्रोणपर्व (उत्तरार्द्ध) युधिष्ठिर उवाच कवित्त तेरे काज बन ही मैं कहतो किरीटी मोसों, सात्यकि के जो ही तैं शत्रुन कौं मारिहौं। कृष्ण बलदेव जोपै होहिं न सहाय तो हू, एक शयनेय ही तैं सबै काज सारिहौं। सोई काज आज कोस द्वारश लौं द्रौनव्यूह, तो बिन तरैया को है ताहितैं पुकारिहौं। देवदत्त गांजिव को घोष ना सुनौंहौं तेरे, गुरु बिना पृथा कौं मैं का मुख दिखारिहौं।।१।। युद्धभूमि में अर्जुन की शंख ध्वनि नहीं सुनाई देने से, युधिष्ठिर व्याकुल हो कर सात्यकि से कहने लगे कि हे युयुधान (सात्यकि)! हम जब वनवास में थे तब अर्जुन तुम्हारे लिए कहता था […]

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आ बतलाऊँ क्यों गाता हूँ ?

आ बतलाऊँ क्यों गाता हूँ ?

नभ में घिरती मेघ-मालिका,
पनघट-पथ पर विरह गीत जब गाती कोई कृषक बालिका !
तब मैं भी अपने भावों के पिंजर खोल उड़ाता हूँ !
आ बतलाऊँ क्यों गाता हूँ ?[…]

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पांडव यशेन्दु चन्द्रिका – एकादश मयूख

।।एकादश मयूख।। द्रोणपर्व (पूर्वार्द्ध) वैशंपायन उवाच दोहा पांच दिवस लखि द्रोण जुध, हथनापुर में आय। द्रोण पतन पांडव बिजय, संजय कहत सुनाय।।१।। वैशंपायन बोले हे जन्मेजय! संजय ने द्रोणाचार्य के पाँच दिन का युद्ध देखा। उनकी मृत्यु और पांडवों की विजय देखी। वही अब पूरा हाल सुनाता है। शार्दूल विक्रीडित छंद गेहे यस्य श्रुति: पठन्ति नितरां, नाना स्वरैर्ब्राह्मणा। वीराणां हि श्रणोति घोष मुदितं, ज्याकर्षिता धन्विनां। उच्चैर्वेणु रवादि वाद्य विविधै, नृत्यन्ति वाराङ्गना। हा हा! द्रोण कुतोसि तस्य सदने, वाक्यं समुद्दीर्यताम्।।२।। जिस गुरु द्रोणाचार्य के घर से नित्यप्रति विविध प्रकार के ब्राह्मण-स्वरों में वेदवाणी सुनाई देती थी। जिसके घर से धनुष की […]

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पांडव यशेन्दु चन्द्रिका – दशम मयूख

।।दशम मयूख।। भीष्मपर्व वैशंपायन उवाच दोहा द्वैपायन रिख नागपुर, सुत समुझावन आय। कहत सभा बिच शांतिहित, जो उत्पात लखाय।।१।। वैशंपायन कहने लगे, हे जन्मेजय! कौरव तथा पांडव जब परस्पर लड़ने को तैयार हुए तभी मुनि वेदव्यास हस्तिनापुर आए और उत्पात देख कर राज सभा में गए। वहाँ वे सुलह शान्ति के लिए धृतराष्ट्र को समझाने लगे। व्यास वचन कवित्त द्यौषचारी कूकै निशा निशाचारी कूकै द्यौष, बनचारी नग्र नग्रचारी बन धावै हैं। आम बीच फूलै कंज कंज मैं लगे है केरी, काल देश वस्तु को विरोध सो लखावै हैं। बिना पौन तूटै ध्वजा जलै ना आहूति होम, गृद्धन के झुंड कुरु […]

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पांडव यशेन्दु चन्द्रिका – नवम मयूख

नवम मयूख उद्योगपर्व (उत्तरार्द्ध) युधिष्ठिर उवाच दोहा सूत गये बहु दिन भये, पीछे नाहि सँदेश। तृतीय बसीठी कृष्ण तुम, गजपुर करहु प्रवेश।।१।। वैशंपायन कहते हैं कि हे जन्मेजय! युधिष्ठिर श्री कृष्ण से पूछते हैं कि संजय को गये इतने दिन हो गए परन्तु उस ओर से कोई समाचार नहीं आया, इसलिए हे कृष्ण! अब आप सुलह का तीसरा प्रस्ताव ले कर स्वयं हस्तिनापुर पधारो। मात पिता बृध अंध मम, सोइ मोहि शोक असाध। तीजे उ माने नाहिं तो, का मेरो अपराध।।२।। मेरे माता पिता (गांधारी और धृतराष्ट्र) दोनों वृद्ध और अंधे हैं, इसका मुझे असाध्य शोक है (रंज है) पर […]

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