टाबरियां रो संकट

लारलै पांच-सात-दस महीनां में अखबारां री खबरां अर अठी-उठी घटती घटणावां री बोहळायत रै बीच अेक तथ इयांकलो उभर’र सामी आयो है, जिणरो चिंतण करतां गैरी चिंता में पड़ज्यावां। कानां नै सुणेड़ी पर भरोसो कोनी हुवै तो आंख्यां नै सामै दीखती अर कागजां पर लिख्योड़ी पर भेरोसो कोनी हुवै। मन अर मगज तो जाबक काम करणो छोडद्यै। मिनखा-सभाव अर मिनखा-परगत रा विरोळकारां जकी बातां मिनख अर मानखै नै समझण सारू बताई, अबार तो बै बीतेड़ी बातां सी लागण लागगी। मिनख-मनोविज्ञान वाळां री बातां ई टेम चूकती सी लागै। विकास री आंधी दौड़, तकनीकी री ताबड़तोड़ अर मा-बाप री भागदौड़ रो नतीजो ओ है कै परिवार नाम री संस्था रो सित्यानास होवण लाग रियो है। […]
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