रँग शीलां रखवाल़िया,जोर झिणकली झाड़!!

एक जमानो हो जद अठै रा नर-नारी मरट सूं जीवण जीवता अर सत रै साथै पत रै मारग बैवता। हालांकै धरती बीज गमावै नीं आज ई ऐड़ा लोग है जद ई तो ओ आकाश बिनां थांभै ऊभो है अर ऐड़ै नर-नाहरां री बातां हालै। पण उण दिनां री बातां बीजी ही। बीसवैं सईकै री बात है भाडली(जैसल़मेर) रा भाटी रुघजी मानसिंहजी रा (रुघराजजी /रुघनाथजी) धाट रै गांम छौल़ रै सोढा संग्रामसिंह अमरसिंह रां रै परण्योड़ा हुता। सोढीजी रो नाम गीतांकंवर हो। उणां री जोड़ायत सोढीजी, एक’र आपरै पीहर छौल़ गयोड़ा हा। रुघजी रै रावल़ै बात चाली कै सोढीजी नै आणो(लेने के लिए) मेलियो जावै। बात तय हुई कै जोगराजजी बीठू नै मेलिया जावै। वै जावै अर सोढीजी नै ले आवै। जोगराजजी नै बुलाय’र मा सा कह्यो कै- “बाजीसा आप ऊँठ लेय’र पधारो अर छौल़ जाय’र बीनणीसा नै ले आवो। आप तो उणरै माईत हो सो नीं उणरै संकोच री बात नीं आपरै।”[…]
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