स्वामी स्वरूपदास रचित राजस्थानी महाभारत और उनका काव्य सौंदर्य–तेजस मुंगेरिया

राजस्थानी भाषा की विशालता व समृद्धि की जब बात करें तो स्वामी स्वरूपदास चारण (बड़ली अजमेर, १८०१) का स्मरण प्रथमत: करना ज़रूरी हो जाता है। स्वरूपदास ऐसे चरित्र थे जिन्होंने भारतीय मनीषा के ऋषि शब्द को पूर्ण चरितार्थ किया है। अन्य कई कवियों की भांत वे केवल काव्य में ही ईश-उपासना नहीं करते रहे बल्कि आजीवन साधुता धारण की तथा ईश्वरोपासना में लीन रहे।[…]

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गीत सोशल मीडिया रौ – पुष्पेंद्र जुगतावत वणसूर

गीत – बडो साणोर

अजब फेसबुक वाटसफ टवीटर ओपिया,
ग्राम इंस्टा गजब रचे गोटा।
सोसयल मीडिया तणा रांगड़ सजे,
मचाया मुलक में ख्याल म्होटा।।१[..]

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24 अक्टूबर 1995 का सूर्यग्रहण – पुष्पेंद्र जुगतावत वणसूर

।।गीत – प्रहास साणोर।।
विगत रयो रूढीपणा तणे वड ग्रासगत,
मिळी हिंदवांण नै आज मुगती।
वरण विग्यान रौ चहुंदिश वापर्यौ,
संचरी रिवगरण रूप सगती।।1[…]

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गाय दूय’र गिंडकां ने न्हाकी – सेणीदान देपावत

एक गाँव, गाँव में दसवीं तक रो इसकूल, इसकूल में तीन सौ टाबर पढणने आवै। हेडमास्टर समेत इग्यारे मास्टर जका टाबरां ने हेत अर लगन साथे पढाई करावे।

इसकूल रे साथेई गांव में पटवार-घर अर पंचायत-भवन भी हुया करै है। पटवारी अर गाँव सचिव आपूआप रा काम करै अर इसकूल रा मासटर आपरो।

गाँव रा लोग पटवारी अर गाँव सचिव रो तो आदर माण करे क्यां के आ हूं हरेक रो काम पड़े, काम भलाईं पईसा देर कराओ।

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रघुवरजसप्रकास – किसनाजी आढ़ा

चारण किसनाजी आढ़ा विरचित
रघुवरजसप्रकास
संपादक : डॉ.सीताराम लालस
राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर
वि.सं. २०१७ (ई.सं. १९६०)
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चारण वंशोत्कीर्तनं – सत्येंद्र सिंह चारण झोरड़ा

।।गीत – त्रिकुटबंध।।
शुभ जात चारण सोवणी,
महदेव रे मन मोवणीं,
कंठा’ज शारद भुज भवानी, देवियां री दूत।
खग समर मांही खांचता।
भट ओज आखर बांचता।
कवि गीत डिंगल सृजन कर कर।
कहत दहुकत सबद खर खर।[…]

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