कारगिल युद्ध – डॉ. शक्तिदान कविया

।।छंद नाराच।।
लड़े लड़ाक धू धड़ाक जंग पाक जोवता।
किता कजाक व्हे हलाक हाक बाक होवता।।
धुवां धमाक झीकझाक रुद्र डाक रूंसणा।
बज्राक हिन्द जुद्ध वीर धाक शत्रु धूंसणा।।
जी धाक रिम्म धूंसणा[…]

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श्री हडुमानजी रौ अष्टक – डॉ. शक्तिदान कविया

।।छन्द रोमकंद।।
अतुळीबळ झेल भुजां ब्रिद ऊजळ, सायर लंघ उझेल सची
गजठेल प्रजाळण लंक तणौ गढ़, मारुत नन्दण हेल मची।
नित तेल सिंदूर चढ़ै कपिनायक, भाव अपेल सुं होय भली।
अजरेल जयो हड़ुमांन अणंकळ, बेल करे बजरंग बली।।१[…]

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चमत्कार, पुरस्कार और अभिलेख के धनी: ईसरदास रोहड़िया

चारण महात्मा ईसरदास रोहड़िया (वि. सं. 1515 से वि. सं. 1622) को राजस्थान और गुजरात में भक्त कवि के रूप में आदरणीय स्थान प्राप्त है। उनकी साहित्यिक संपदा गुजरात और राजस्थान की संयुक्त धरोहर है। आचार्य बदरीप्रसाद साकरिया यथार्थ रूप में कहते हैं कि-‘हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में जो स्थान गोस्वामी तुलसीदास और कृष्णभक्त कवि सूरदास का है वही स्थान गुजरात, राजस्थान, सौराष्ट्र, सिन्ध, धाट और थरपारकर में भक्तवर ईसरदास का है।’1 भक्त कवि ईसरदास ने उम्रभर भक्ति के विरल स्वानुभवों और धर्मग्रंथों से प्राप्त ज्ञान का सुंदर समन्वय अपने साहित्य में प्रस्तुत किया है। मगर यहाँ ईसरदास रोहड़िया के जीवन में हुए चमत्कारों, पुरस्कारों और शिलालेखों के संदर्भ में ही बातें करनी अभीष्ट है।[…]

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आणंद करमाणंद मीसण

मरुधरा के अनमोल रत्न: आणंद करमाणंद मीसण

~~डॉ. अंबादान रोहड़िया

गुजरात और राजस्थान में आणंद करमाणंद का नाम जन-जन की जिह्वा पर है। राजस्थान के अनेक प्रतिष्ठित कवियों द्वारा रचित भक्तमाल में आणंद करमाणंद का उल्लेख हुआ है:

ईसरदास अलुनाथ कविया, करमाणंद, आनंद मीसण, सूरदास।
मांडण दधवाड़िया, जीवानंद, भादा, केसोदास गाडण,
माधवदास दधवाड़िया, नरहरिदास बारहठ।।

आणंद करमाणंद मीसण रचित उच्चकोटि की काव्य-रचनाओं के कारण इन्हें चारण कवियों की श्रृंखला में, प्रथम पंक्ति में स्थान दिया जाता है:[…]

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वरसाळे रा छंद – मतवाळ घुरै मुधरो मुधरो – अळसीदान जी रतनू (बारहट का गाँव, जैसलमेर)

॥छंद त्रोटक॥
रुक वाव सियारिय बोल रही।
मतवाल उगो किरणाळ मही।
सुरंगो नभ सोसनिया सबही।
जळ धार अपार भया जबही।
धुरवा सुभराट चढै सखरो।
मतवाळ घुरै मुधरो मुधरो।।1।।[…]

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चारण छात्रावासों की जानकारी

नोट: इस पेज पर सभी चारण छात्रावासों के बारे मे समस्त जानकारी एकत्रित  करके एक जगह उपलब्ध करने का उपक्रम किया जा रहा है। यदि आप कोई भी जानकारी भेजना चाहें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा प्रेषित करें।

1. श्री भूपाल चारण छात्रावास उदयपुर

इतिहास: राजस्थान में चारण छात्रों के लिए शिक्षा का सामुहिक प्रयास सर्वप्रथम उदयपुर में कविराजा श्यामलदास जी के प्रयासों से संवत 1937 (सन 1880) में हुआ। …

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रघुवरजसप्रकास [12] – किसनाजी आढ़ा

— 298 — वारता गीत पालवणी १, गीत झड़लुपत २, गीत दुमेळ ३, गीत त्रबंकड़ौ ४ नै सावक अडल, अे पांच छोटे सांणोर री विखम तुक पै’ली, तुक तीजी अे विखम तुक त्यांरा वणै नै यतरा गीतां रै तुक प्रत सोळै मात्रा हुवै नै मोहरा में तफावत होय। कठे’क गुरु तुकांत कठे’क लघु तुकांत होवै नै यतरा गीत बडा सांणोर री विखम तुकां रा वणै, सावझड़ौ अरध सावझड़ौ आद। तुक प्रत मात्रा बीस होय। पै’ली तुक मात्रा तेवीस होय। अथ गीत बडा सावझड़ा तथा अरध सावझड़ा लछण दूहौ मुण धुर तुक तेवीस मत, अवर वीस रगणंत। मिळ चव तुक वड […]

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रघुवरजसप्रकास [11] – किसनाजी आढ़ा

— 266 — अथ गीत उवंग सावझड़ौ लछण दूहौ सगण सोळ मत प्रथम तुक, दो गुर अंत दिपंत। आंन च. . . वद. . . अख, उभै वीपसा अंत।।१८९ अरथ पै’ली तुक रै आद तौ सगण नै सोळै मात्रा होय। और साराई गीत री पनरै ही तुकां मात्रा चवदै होय। तुकांत दोय गुरु अखिर होय जिण सावझड़ा गीत नै उमंग कहीजै तथा कोई कवि उवंग पण कहै छै। चौथी तुक में दोय वीपसा आवै छै। अथ गीत उवंग सावझड़ौ उदाहरण गीत जगनाथ अंतरतणौ जांमी, गाहणौ खळ गुरड़ गांमी। साच वायक सिया सांमी, भुजां भांमी भुजां भांमी।। थूरण रिण दैतां थोका, […]

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रघुवरजसप्रकास [10] – किसनाजी आढ़ा

— 234 — अथ गीत हिरणझंप लछण दूहौ धुर सोळह दूजी चवद, ती चौवीस तवंत। चौथी पंचम मत चवद, छठ चौवीस छजंत।।१२४ पहली दूजी मेळ पढ, तीजी छठी मिळाप। मेळ चवथी पंचमी, जपै वडा किव जाप।।१२५ धुर बी चौथी पंचमी, भगण नगण यां अंत। तीजी छठी अंत तुक, जगण अहेस जपंत।।१२६ अरथ पै’ली तुक मात्रा सोळै, तुक दूजी मात्रा चवदै, तुक तीजी मात्रा चवदै, तुक चौथी मात्रा चवदै, तुक पांचमी मात्रा चवदै, तुक छठी मात्रा चौवीस होवै। पै’ली दूजी रै पछै नगण। चौथी, पांचमी तुक रै अंत भगण तथा अंत लघु होवै। तीजी छठी तुक रै अंत जगण होवै। दूजा […]

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रघुवरजसप्रकास [9] – किसनाजी आढ़ा

— 200 — गीत वेलिया सांणौर लछण दूहा मुण धुर तुक अठार मत, बीजी पनरह बेख। तीजी सोळह चतुरथी, पनरह मता पेख।।६८ सोळह पनरह अन दुहां, गुरु लघु अंत बखांण। कहै ऐम सुकवी सकळ, जिकौ वेलियौ जांण।।६९ अरथ जिण गीत रै पैहली तुक मात्रा १८ होय, दूजी तुक मात्रा १५ होय, तीजी तुक मात्रा १६ होय, चौथी तुक मात्रा १५ होय। दूजा सारां दूहां मात्रा १६। १५। १६। १५। तुक के अंत आद गुरु अंत लघु आवै, जिण गीत रौ नांम वेलियौ सांणौर कहीजै। अथ गीत वेलिया सांणोर रौ उदाहरण गीत औयण जे रांम स्रीया नित अरचै, सुज चरणै सिव […]

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