कवित्त – मालव मुकुट बलवंत ! रतलामराज

मालव मुकुट बलवंत ! रतलाम राज,
तेरो जस जाती फूल खोलैं मौद खासा कों।
करण, दधिचि, बलि केतकी गुलाब दाब,
परिमल पूर रचै तण्डव तमासा कों।
मोसे मधुलोभिन कों अधिक छकाय छाय,
महकि मरन्द मेटै अर्थिन की आसा कों।
चंचरीक सु कवि समीप तैं न सूंघ्यो तो हू,
दूरि ही सों दपटि निवाजें देत नासा कों।।७८।।[…]

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चित्तौड़ का साका और राव जयमलजी – राजेंन्द्रसिंह कविया (संतोषपुरा-सीकर)

जोधपुर के संस्थापक राव जोधाजी के पुत्र दूदाजी के वंश के जयमलजी मेड़तिया युध्द विद्या में प्रवीण विसारध हुए जो प्रतापी राव मालदेव से अनेक युध्द करके उनके हमलों व अत्याचारों से तंग आकर मेड़ता छोड़कर उदयपुर महाराणा उदयसिंहजी की सेवा में चले गए एवं वहां पर अपनी शौर्य वीरता दिखाकर स्वर्णिम इतिहास में नाम कायम कर दिया। आज भी यदा कदा चित्तौड़ की वीरता की गाथाओं के साथ जयमलजी का नाम जरूर आता है।

जयमलजी वीर के साथ साथ भगवान चारभुजा नाथ के बहुत बड़े भक्त भी थे। भक्तमाल मे भी उनका वर्णन आता है किः…..

जै जै जैमल भूप के,
समर सिध्दता हरी करी।।
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मेड़ता आदि मरूधर धरा,
अंस वंस पावन करियौ।
जयमल परचै भगत को,
इन जन गुन उर विस्तरियो।।

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वींजै बाबे रा छंद – जनकवि वृजलाल जी कविया

🌸छंद रोमकंद🌸
नर नारिय ऊठ सदा सिर नावत ,पावत भोजन नीर पछै।
चढ़वाय कपूर चढै सिर चन्नण, सामिय ध्यावत मान सचै।
परभातांय सांझ समे कर पूजन,जोगिय नाम वींजांण तपै।
धुन एकण ध्यांन लग्यो धणी धावत, तापस मेर वड़ाल़ तपै।
जिय तापस नग्ग वड़ाल़ तपै।।१[…]

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🌺रातै भाखर बाबै रा छंद🌺 – जनकवि ब्रजलाल जी कविया

संतो पीरों और मुरशिदों की वंदना स्तवन हमारी कविता की एक परंपरा रही है। कवि ब्रजलाल जी कविया बिराई के थे।आप नें जालंधरनाथ की एक जगह जो कि पश्चिमी राजस्थान में रातै भाखर बाबे के नाम से जानी जाती है और उस लाल पहाड़ी पर जालंधर नाथ जी का मंदिर है जिसकी आप नें सरस सरल और सुगम्य शब्दों में वंदना की है।

🌷दूहा🌷
देसां परदेसां दुनी,क्रीत भणें गुण काज।
स्याय करै सह सिष्ट री, रातै गिर सिधराज।।१
वाल़ां री वेदन बुरी,इल़ ऊपर दिन आज।
हे सांमी!संकट हरे, राते गिर सिधराज।।२[…]

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स्वामी स्वरूपदास जी (शंकरदान जी देथा)

स्वामी स्वरूपदास चारण जाति की एक अप्रतिम प्रतिभा माने जाते हैं। इनका जन्म चारणों की मारू शाखा के देथा गोत्र वाले परिवार में हुआ। उन्होंने ३८ वर्ष की वय में वर्ष १८३९ ई. (तदनुसार विक्रम संवत १८९६) में हन्नयनांजन नामक ग्रंथ की रचना रतलाम शहर में की थी। इसके आधार पर उनका जन्म १८०१ ई. (वि.सं.१८५८) में हुआ। उन्होंने अपने ग्रंथ हन्नयनांजन के तृतीय सलाका के अंतिम भाग में स्वयं लिखा है-

महिपत की पंचवीसमी, जन्मगांठि सक जान।
उमर दास स्वरूप की, अष्टत्रिस उनमान।।
राग, रतन वसु चंद्रमा, संवत् विपर्यय रीत।
माघ कृष्ण तृतिया भयो, पूरन ग्रंथ सुप्रीत।।
[मैंने वि.सं.१८९६ की माघ कृष्णा तृतीया के दिन इस ग्रंथ को प्रेम पूर्वक सम्पूर्ण किया। यह अवसर रतलाम नरेश बलवन्त सिंह राठौड़ की पचीसवीं वर्ष गांठ का है और इस समय मुझ स्वरूपदास की वय अड़तीस वर्ष है। ] यदि वि.सं.१८९६ (१८३९ ई.) में ग्रंथ प्रणेता की उम्र अड़तीस वर्ष थी तो इस हिसाब से उनका जन्म वर्ष वि.सं.१८५८ (१८०१ ई.) हुआ।[…]

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कविवर जाडा मेहडू (जड्डा चारण)

कविवर जाडा मेहडू चारणों के मेहडू शाखा के राज्यमान्य कवि थे। उनका वास्तविक नाम आसकरण था। राजस्थान के कतिपय साहित्यकारों ने अपने ग्रंथों में उनका नाम मेंहकरण भी माना है। किंतु उनके वशंधरो ने तथा नवीन अन्वेषण-अनुसंधान के अनुसार आसकरण नाम ही अधिक सही जान पड़ता है। वे शरीर से भारी भरकम थे और इसी स्थूलकायता के कारण उनका नाम “जाड़ा” प्रचलित हुआ। जाडा के पूर्वजों का आदि निवास स्थान मेहड़वा ग्राम था। यह ग्राम मारवाड़ के पोकरण कस्बे से तीन कोस दक्षिण में उजला, माड़वो तथा लालपुरा के पास अवस्थित है। दीर्धकाल तक मेहड़वा ग्राम में निवास करने के […]

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मुकंददास दधवाड़िया की वीरता का गीत

मुकंददासजी जोधपपुर महाराजा अभय सिंह के साथ अहमदाबाद की लड़ाई में शामिल थे और इस युध्द में वीरता प्रदर्शित करते हुये शौर्यपूर्वक वीरगति को प्राप्त हो गये थे।ये एक श्रैष्ठ कवि भी थे। वि.सं. १७८७ मे हुये इस युध्द में इनकी वीरगति पर हिम्मता ढोली बऴूंदा ने इनकी वीरता व शौर्य-प्रदर्शन पर एक गीत बनाया जो निम्न प्रकार है।

।।गीत।।

सतरै संम्वत सितियासियै,
भूप सजै दऴ भारी।
सबऴा करी अभा रै साथै,
त्रिजड़ां बंध तैयारी।।[…]

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नवदुर्गा वंदना – कवि स्व. अजयदान जी लखदान जी रोहड़िया मलावा

शैलपुत्री जय शिवप्रिया, प्रणतपालिनी पाहि।
निज अपत्य टेरत तुझे, त्राहि त्राहि मां त्राहि।।१
जयति जयति ब्रह्मचारिणी, बीज सरूपिणी बानि।
विषम समय पर राखिये, प्रियजन के सिर पानि।।२
चारू चंद्र घंटा सुमति, प्रणति देहु कर प्रीति।
भवभय भंजनी भंजिए, ईति, भीति अनीति।।३
कुषुमांडा बिनती करत, सेवक करहु सुयोग।
कल्याणी अरु काटिये, कल्मष, कष्ट, कुयोग।।४[…]

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रक्षा कवच – करणी सायर कार – कामदार सा. श्री शिवदानसिंह जी हापावत

अबखी पुळ अबखी घडी, हाज़िर विपद हज़ार।
उण संकट में आपरी, करणी सायर कार।।१।।
देश प्रदेशा रात दिन, पग धरतां घर ब्हार।
जांणि अजांणी सब जगां, करणी सायर कार।।२।।
उण्डा पाणी उतरतां, नद्दी नाळा पार।
पग डिगतां बिखमी वखत, करणी सायर कार।।३।।
साँप बिच्छुँ गर गौहिरो, फण जहरी फुफकार।
जाड़ा डाढ़ा जकड़तां, करणी सायर कार।।४।।[…]

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